उत्तराखंड चुनावः 16 सीटों पर अपने लिए खतरा मान रही कांग्रेस
हरीश रावत बोले, मैंने, प्रीतम और गोदियाल ने आपस में बांट ली हैं चुनौती वाली सीटें
देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 16 सीटों पर खतरा दिखाई दे रहा है। इसके लिए कांग्रेस हाईकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित अन्य नेताओं को जिम्मेदारियां सौंपी हैं। कांग्रेस नेता इन सीटों पर रणनीति में जुट गए हैं। कांग्रेस ने अभी दो बार में 64 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की है, बाकी छह सीटों पर भी आज शाम तक घोषणा होने की संभावना है। वहीं, किसी भी सीट पर प्रत्याशियों में बदलाव की संभावना नहीं है।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन में काफी सतर्कता बरतते हुए फैसला किया है। इसलिए प्रत्याशियों की घोषणा में देरी भी हुई है। नामांकन की अंतिम तारीख नजदीक है, पर भाजपा ने 11 और कांग्रेस ने अभी तक छह सीटों पर प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं। दोनों ही दलों को विरोध और बगावत को झेलना पड़ रहा है। कांग्रेस ने अभी सल्ट, टिहरी, नरेंद्रनगर, चौबट्टाखाल, हरिद्वार ग्रामीण और रुड़की विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी रामनगर सीट पर विरोध झेलना पड़ रहा है, पर रावत ने 28 जनवरी को नामांकन करने की घोषणा की है। कुछ सीटों पर प्रत्याशियों के विरोध पर कांग्रेस नेताओं का मानना है कि समय रहते सभी उनके साथ होंगे और कांग्रेस के लिए काम करेंगे।
इस बीच हरीश रावत के एक बयान से कांग्रेस में पार्टी के स्तर पर सीटों की स्थिति साफ हो गई है। उनके अनुसार, 16 सीटों पर पार्टी को खतरा दिखाई दे रहा है। हालांकि रावत इस चुनौती से निपटने के लिए जिम्मेदारी सौंपे जाने की जानकारी देते हैं।
कांग्रेस नेताओं की बैठक के बाद एक समाचार एजेंसी से हरीश रावत ने कहा, यह चुनाव की तैयारियों को लेकर बैठक थी। हमने टिकटों की घोषणा के बाद अपनी स्थिति देखने के लिए सीटों की समीक्षा की है। 16 सीटें ऐसी हैं, जहां हमारे सामने चुनौती है, इसलिए हमने ऐसी सीटों को आपस में बांट लिया है, मैं आठ सीटों पर ध्यान दूंगा, प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल 4-4 सीटों पर ध्यान देंगे। उनका कहना है, हम बाकी सीटों पर अच्छी स्थिति में हैं।
हरीश रावत के बयान से साफ है कि कांग्रेस किसी भी स्थिति में टिकट वापस नहीं लेगी। सभी घोषित प्रत्याशियों को ही चुनाव लड़ाएगी।यदि कहीं कोई संकट या चुनौती होती है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता स्थिति को संभालने में जुट जाएंगे।