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दुनिया में 81 करोड़ से अधिक भूखमरी से जूझ रहे, खाने की बर्बादी रोकना बहुत जरूरी

संयुक्त राष्ट्र ने सचेत किया है कि भोजन की कमी, भुखमरी और कुपोषण की समस्या से दुनिया का हर देश पीड़ित है, इसलिए भोजन की हानि व बर्बादी रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की जानी होगी। खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वर्ष 2019 में उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कुल भोजन का 17 फ़ीसदी हिस्सा फेंक दिया गया और वह बर्बाद हो गया।

क्या आप जानते हैं-

29 सितम्बर, को ‘भोजन की हानि व बर्बादी पर अन्तरराष्ट्रीय जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है।

खाद्य एवं कृषि संगठन की खाद्य एवं पोषण शाखा के आर्थिक व सामाजिक विकास विभाग की उप निदेशक नैन्सी ऐबुर्तो के अनुसार, भोजन की बर्बादी एक वैश्विक समस्या है और यह महज़ धनी देशों तक सीमित नहीं है। खाद्य असुरक्षा, भुखमरी और कुपोषण, विश्व में हर देश को प्रभावित कर रहे हैं और कोई भी देश इससे अछूता नहीं है।

दुनिया में 81 करोड़ से अधिक लोग भूखमरी से पीड़ित हैं, दो अरब लोगों में सूक्ष्म पोषक तत्वों (micronutrient) की कमी है और लाखों बच्चे नाटेपन का शिकार हैं, जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पा रहे हैं।

भोजन की बर्बादी को रोकने के लिये देशों को नवाचारी उपाय अपनाने की आवश्यकता है। इसके तहत भोजन ग्रहण करने की अवधि को बढ़ाने के लिए उसकी नई तरह से पैकेजिंग करना, स्मार्टफ़ोन ऐप के ज़रिये उपभोक्ताओं और किसानों को नज़दीक लाना और फ़सल की कटाई व उसे प्लेट तक पहुँचाने के बीच के समय में कमी लाने सहित अन्य उपाय हैं।

भोजन की हानि और बर्बादी में कमी लाकर, कृषि-खाद्य प्रणालियों को बेहतर बनाया जा सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा, संरक्षा व गुणवत्ता हासिल करने में मदद मिलेगी।

इस साल, फलों और सब्ज़ियों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष के दौरान, यूएन एजेंसी ने खाद्य व पोषण सुरक्षा और टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करने में उनकी भूमिका को रेखांकित किया है।

भोजन की हानि व बर्बादी में कमी लाकर खाद्य प्रणालियों को मज़बूत बनाया जा सकता है और ऐसा करने से, ग्रह के स्वास्थ्य में बेहतरी लाने में भी मदद मिलेगी।

खाद्य प्रणालियों की दक्षता में वृद्धि, और भोजन की हानि व बर्बादी में कमी लाने के लिये नवाचार, टैक्नॉलॉजी व बुनियादी ढाँचे में संसाधन निवेश की आवश्यकता है।

बर्बाद भोजन को कूड़ा-खाद (composting) के रूप में इस्तेमाल करना, उसे कचरा-भराव क्षेत्र (landfill) में ले जाने से बेहतर है। मगर, भोजन की बर्बादी को पहले से ही रोकने के प्रयास करके, पर्यावरण पर इसके असर को कम किया जा सकता है।

साभार- संयुक्त राष्ट्र समाचार

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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