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किसान को फिर नुकसान, धान के बाद अब गन्ने पर रोग का संकट
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कास्तकार कुंदन सिंह चौहान ने 30 बीघा खेत में गन्ना बोया है। गन्ना कटाई के लिए तैयार खड़ा है, पर उसमें रोग लग गया। रोग लगने से पत्तियों में लाल धब्बे दिख रहे हैं और पत्तियां सूखने लगी हैं। तीन उपज देने वाले गन्ने की यह पहली फसल है। अभी इसे रोग की शुरुआत बताया जा रहा है।
कुंदन सिंह चौहान देहरादून जिला के सिमलास ग्रांट में रहते हैं। डोईवाला ब्लाक में वर्षों से खेती कर रहे चौहान बताते हैं, उनके सामने पहले इस तरह का कोई संकट नहीं आया था। इस बार तो लगता है गन्ने को पहली उपज के बाद जड़ से उखाड़ना पड़ जाएगा। इसमें लगभग दो लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान झेलना पड़ेगा।
वो बताते हैं कि इसमें शुरुआत में कीट लगने के लक्षण दिखे थे। कृषि विभाग की सलाह पर उपचार किया गया था, पर अब तो सारे पत्ते सूख रहे हैं। इस बार तो उपज को बांधने तक के लिए अगोला (गन्ने का पत्तियों वाला हिस्सा) भी नहीं मिलने वाला।
गन्ने की एक खास किस्म में ही यह समस्या पेश आ रही है। गन्ना की कटाई करने वाले अगोला ले जाते हैं। अगोला पशुओं को भी खिलाया जाता है। पशुओं के लिए चारा भी मुश्किल हो जाएगा।
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उनका कहना है कि सभी किसानों ने कृषि विभाग से प्रमाणित बीज ही बोया। फसल में रोग के लिए विभाग की भी जिम्मेदारी बनती है।
उन्होंने हमें खेत में ले जाकर फसल में लगे रोग के लक्षण दिखाए। फिर से बीज बोना पड़ेगा, अगर इसमें रोग नहीं लगता तो दो उपज और मिल जाती। अब पूरी फसल उखाड़कर फिर से बोनी पड़ेगी।
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कास्तकार धन सिंह बोरा,भी सिमलास ग्रांट में रहते हैं। उनके पास भी गन्ने का लगभग 30 बीघा खेत है। गन्ने में कीट लगने से निराश धन सिंह बोरा, बताते हैं कि कृषि विभाग के अधिकारियों को सूचना दी है। कीट से पत्तियां सूख चुकी हैं। पत्तियों से ही तो गन्ने का पौधा अपना भोजन तैयार करता है। ऐसे में पौधा भी पर्याप्त ऊंचाई नहीं ले पाएगा और धीरे-धीरे सूख भी सकता है।
बुल्लावाला के किसान संजय शर्मा ने इस बार 15 बीघा में गन्ना बोया है। बताते हैं, उन्होंने भी को.शा. 88230 ही बोया है। इस प्रजाति में ज्यादा दिक्कत आ रही है। उनको भी कटान के बाद गन्ने की पूरी फसल को जड़ से उखाड़ना पड़ेगा। मिट्टी और बीज की जांच करानी होगी। इसके बाद ही गन्ना बोएंगे।
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संजय शर्मा के अनुसार, एक बीघा गन्ना बुआई में लगभग छह हजार रुपये का खर्चा आता है। एक बीघा में लगभग छह कुंतल गन्ना बीज बोया जाता है। आप यह मान लो, जितना बीज बोया जाता है, उससे लगभग दस गुना उपज हासिल हो जाती है। एक बीघा में लगभग साठ कुंतल गन्ना मिल जाता है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कृषि विभाग के अधिकारी इसको बीज और भूमि जनित रोग बता रहे हैं। उन्होंने किसानों से सतर्क होकर समय से रोग का निदान करने की सलाह दी। साथ ही कहा,जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञों की सहायता ली जाए। अधिकारी का कहना है कि विभाग इस बीमारी से फसल के बचाव के लिए जरूरी उपाय कर रहा है।
वहीं, सहकारी गन्ना किसान समिति, डोईवाला के सचिव गजेंद्र रावत बताते हैं कि कल मंगलवार को ढकरानी से कृषि वैज्ञानिकों की टीम डोईवाला पहुंचकर गन्ने में रोग की जांच करेगी। बताते हैं कि डोईवाला में लगभग 85 फीसदी गन्ना प्रजाति को.शा.88230 ही बोई गई है। इसी में रोग की शिकायतें मिल रही हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, डोईवाला क्षेत्र में लगभग 2700 हेक्टेयर में गन्ना क्षेत्र में नुकसान हुआ है। इस संबंध में समिति के सचिव रावत का कहना है कि सुपरवाइजर्स को आकलन करने के लिए कहा गया है। जल्द ही प्रभावित क्षेत्र की रिपोर्ट मिल जाएगी।
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”हमने मौके पर जाकर जांच की, लेकिन इसे लाल सड़न (Red Rot) रोग कहना जल्दबाजी होगी। शुरुआती जांच में यह पानी की कमी या न्यूट्रिएंट्स की कमी से जनित रोग हो सकता है। अभी हमें वैज्ञानिक जांच का इंतजार करना चाहिए,” समिति के सचिव रावत बताते हैं।
सहकारी गन्ना किसान समिति के अध्यक्ष मनोज नौटियाल बताते हैं कि गन्ना में लगे रोग से निपटने के लिए हरसंभव कदम उठाए जाएंगे। हम किसानों के साथ खड़े हैं।
सहकारी गन्ना किसान समिति के सदस्य प्रगतिशील किसान उमेद बोरा भी सिमलास ग्रांट में रहते हैं। बताते हैं, सिमलास ही नहीं, कई इलाकों में गन्ना की फसल को रोग से नुकसान पहुंचा है। किसानों ने चीनी मिल, किसान समिति, कृषि विभाग को इस संबंध में सूचना दी है।
हमने गन्ने की फसल के फोटो कृषि एवं औद्यानिकी विशेषज्ञ डॉ. आरपी कुकसाल को भेजे। उनका कहना है कि प्रारंभिक लक्षणों के अनुसार, यह लाल सड़न रोग है। उन्होंने हमें लाल सड़न रोग के लक्षणों के बारे में जानकारी दी।
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वहीं उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के अनुसार, लाल सड़न रोग कोलेटोट्राइकम फलकेटम नामक फफूंद से होता है। इस रोग के लक्षण जुलाई-अगस्त से दिखाई देना शुरू होते हैं और फसल के अंत तक दिखाई देते हैं।
ग्रसित गन्ने की अगोले की तीसरी से चौथी पत्तियॉं एक किनारे अथवा दोनों किनारों से सूखना शुरू हो जाती हैं तथा धीरे–धीरे पूरा अगोला सूख जाता है।
गन्ने को लम्बवत फाड़ने पर इसके तने का गूदा लाल रंग का दिखाई देता है, जिसमें सफेद धब्बे दिखाई पड़ते हैं।
फटे हुए भाग में सिरके जैसी गन्ध आती है तथा गन्ना आसानी से बीच से टूट जाता है।
कभी–कभी गन्ने की पत्ती की मध्य शिरा पर लाल रंग के धब्बे पाए जाते हैं। बाद में ये धब्बे पूरी मध्यशिरा को घेर लेते हैं। कभी–कभी भूरे लाल रंग के धब्बे गन्ने की पत्ती पर पाए जाते हैं।
लाल सड़न गन्ने की फसल को नुकसान-
इस रोग के कारण जमाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कम जमाव से उपज में हृास होता है। अगोला सूखने से कृषक को चारे के लिए अगोला उपलब्ध नहीं हो पाता है।
गन्ने में इस रोग के लगने पर वैज्ञानिकों को वह प्रजाति सामान्य खेती से हटानी पड़ती है। साथ ही नई रोगरोधी जाति विकसित करनी पड़ती है।
गन्ने में चीनी बनते समय गॉंठों में ब्याधिजन होने के कारण इन्वर्टेज नामक इन्जाइम पैदा होता है, जिससे सुक्रोज, ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज में टूट जाता है। ये दोनों शर्कराएं क्रिस्टल के रूप में जम नहीं पाती हैं। अत: इससे शीरे की मात्रा बढ़ती है तथा चीनी की परत घटती है।
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इस महामारी के समय पूरे के पूरे खेत सूख जाते हैं, जिससे कृषक को उपज नहीं मिल पाती है। इसके अतिरिक्त फसल में रोग का आपतन होने पर उपज में हृास होता है, जो कि 44 प्रतिशत तक हो सकता है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार उत्तराखंड में कुल कृषि का नौ फीसदी गन्ना क्षेत्र है। पर्वतीय क्षेत्र में गन्ना उत्पादन नहीं होता है। राज्य में मैदानी हिस्सों में ही गन्ना उत्पादन होता है।