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कृषि में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महिला नहीं कर सकतीः खाद्य नायक

इरीना वासीलियेवा (Irina Vasilyeva), पश्चिमी जॉर्जिया की एक महिला किसान हैं, जिनका कहना है कि कृषि में ऐसा कुछ भी नहीं है जो एक पुरुष कर सकता है और एक महिला नहीं कर सकती।

संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि एजेन्सी (FAO) ने, इरीना वासीलियेवा को 17 खाद्य नायकों में से चुना है।

इरीना इस प्रयोग का एक उत्तम उदाहरण हैं कि तकनीकी ज्ञान और नवाचार तक पहुँच, कैसे छोटे किसानों को बदलाव लाने के लिए सशक्त बना सकती है।

इन खाद्य नायकों (Food Heroes) को, उनके समुदायों और अन्य लोगों को भोजन उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता के लिए मान्यता दी गई है।

विश्व खाद्य दिवस (World food day) प्रतिवर्ष 16 अक्टूबर को मनाया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र समाचार के अनुसार, इरीना वासीलियेवा ने संयुक्त राष्ट्र से बातचीत के दौरान कहा, “मेरा नाम इरीना वासीलियेवा है, और मैं जॉर्जिया के पश्चिमी हिस्से में बगदाती नगर पालिका के प्राचीन गाँव वर्तसिखे में रहती हूँ. यह एक कृषि समुदाय है और यहाँ के परिवार सदियों से खेती करते रहे हैं।”

मेरे पति और दो बच्चे भी खेती करके आजीविका चलाते हैं, लेकिन पिछले साल  कोविड-19 महामारी के कारण पर्यटन और रेस्तराँ व्यवसायों पर बढ़ते प्रतिबन्धों के कारण, मुझे जॉर्जिया के पश्चिमी शहर, कुटैसी के एक बाज़ार में अपनी फ़सल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन उसमें मुझे कोई ख़ास सफलता नहीं मिली।

सौभाग्य से, खाद्य व कृषि संगठन (एफ़एओ) और यूरोपीय संघ की मदद से हमारी स्थिति में सुधार हुआ है।

उन्होंने इस इलाक़े में और विशेष रूप से मेरे गाँव में ‘नए किसान फ़ील्ड स्कूल’ लगाकर और ‘ज़मीनी प्रदर्शनों’ के ज़रिये, हमें नवीन कृषि विधियाँ सिखाईं।

“मुझे जानकारी मिली कि कुछ एफ़एओ कृषिविद पास ही के एक अंकुर उत्पादन सुविधा के दौरे पर आए हैं. तो मैंने भी उस बैठक में भाग लिया और उन्हें अपने खेती के रिकॉर्ड दिखाए. मैं अपनी ज]मीन पर क्या करती हूँ, हमेशा उसका रिकॉर्ड करती हूँ. मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी फ़सलों की गुणवत्ता बढ़ाने के उपाय सीखना चाहती हूँ।

तब मुझे मालूम हुआ कि ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग और बेड फॉर्मेशन सहित अनेक आधुनिक कृषि पद्धतियाँ, मेरे तीन ग्रीनहाउस में खीरे, टमाटर और सलाद पत्तों के उत्पादन में काफ़ी सुधार ला सकती हैं।

मुझे बिल्कुल अन्दाज़ा नहीं था कि मेरे पौधे इतनी अधिक ख़ाद इस्तेमाल कर रहे हैं। ड्रिप सिंचाई और बेहतर हिसाब-किताब के साथ, मैं अब कम खाद का इस्तेमाल करती हूँ। यह लागत में बचत का एक बहुत असरदार उपाय है।

लागत बहुत अहम है, विशेष रूप से जॉर्जिया में महिला किसानों के लिए, जो मेरी तरह, आमदनी का एक स्वतंत्र स्रोत चाहती हैं।

एफ़एओ के साथ काम करने से मुझे यह भी मालूम हुआ है कि कृषि में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो केवल पुरुष ही कर सकते हों, और महिलाएँ नहीं कर सकती हों।

अब, मैं सर्दियों में, ग्रीन हाउस हीटिंग के बिना ही, सलाद पत्ते का उत्पादन कर सकती हूँ। बे-मौसम उत्पादन के कारण, मैं अन्य किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा से बच जाती हूँ। साथ ही, अब कम लागत के साथ उच्च गुणवत्ता वाली उपज बढ़ रही है, जिससे मुझे महामारी की आर्थिक कठिनाइयों से उबरने में मदद मिली है।

अब मेरे गाँव की अधिक से अधिक स्थानीय महिलाएँ पारिवारिक आमदनी बढ़ाने के लिये कृषि का रुख़ कर रही हैं।

एक खाद्य नायक के रूप में, मुझे अपना ज्ञान और अनुभव अन्य लोगों के साथ बाँटने व अपने खेत को कृषि प्रशिक्षण के लिए एक आदर्श के रूप में इस्तेमाल करने में ख़ुशी हो रही है।”

मूल लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें- मूल लेख

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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