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Video: गिरते स्तर के बाद भी पत्रकारिता के कई उजले पक्षः जितेंद्र अंथवाल

लगभग 28 साल से मुद्दों की पत्रकारिता को आगे बढ़ा रहे वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र अंथवाल जाना पहचाना नाम हैं। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के समय पत्रकारिता को जनता की आवाज बनाने के लिए चुनौतियों का सामना किया। आपने लगभग तीन दशक पत्रकारिता को दिए और इसके ट्रेंड में व्यापक बदलाव देखे। पत्रकारिता का गिरता स्तर चर्चा में है, पर इसका उजला पक्ष भी है, जो पूरी तरह जनसहयोगी, रचनात्मक और अभिनव है। पत्रकारिता के विविध आयामों पर डुगडुगी ने अंथवाल जी से बात की। उनसे वार्ता के मुख्य अंश-
दो ढाई दशक में पत्रकारिता में बहुत बड़ा बदलाव आया, चाहे तकनीकी स्तर पर हो या फिर संपादकीय के स्तर पर या रंग रूप के स्तर पर। उस समय कंप्यूटर नहीं था, हाथ से लिखते थे। खबरें टाइप होती थी। मोबाइल फोन नहीं होते थे। लैंडलाइन से  फोन करना होता था। 90 के दशक के मध्य में पत्रकारों ने कंप्यूटर पर टाइप करना सीखा। 90 के दशक के अंत में मोबाइल आने लगे। मोबाइल पर सूचनाएं आने लगीं।  अब इंटरनेट ने पत्रकारिता में काफी बदलाव ला दिया।

आज की अधिकांश पत्रकारिता व्हाट्सएप आधारित हो गई है। खबरें, विज्ञप्तियां व्हाट्सएप पर आ रही हैं। अब लोग अखबारों के दफ्तरों में कम ही आ रहे हैं। टाइप करके सूचनाएं भेज रहे हैं। कई बार तो अखबारों में किसी खबर की हेडिंग भी एक ही होती है। मैटर भी चेंज नहीं होता।
खबरों के संपादन के स्तर पर चेंज नहीं आया। जहां से जो ट्रेंड चल गया, सब उसको फॉलो कर रहे हैं। जैसे- कुंभ को महाकुंभ लिखा जा रहा है, सूचना विभाग, पर्यटन विभाग भी इसे कहीं कुंभ तो कहीं महाकुंभ लिख रहे हैं। अखबारों में भी यही हो रहा है। अखबारों में पहले संपादन बहुत सीनियर लोग करते थे। डेस्क पर संपादन करने वाले रिपोर्टर की कागज पर लिखी कॉपी को फाड़ देते थे। काफी झुंझलाहट होती थी, पर यह हमारे काम आया और गलतियों की गुंजाइश काफी कम होने लगी। आज बहुत जूनियर डेस्क पर बैठ कर संपादन कर रहे हैं, जिससे कुछ एक अखबारों को छोड़ दें तो बड़ी गलतियां मिलती हैं।
कंटेंट विश्वसनीय हो। आपका लिखा हुआ एक-एक शब्द समाज में आग लगाने से लेकर समाज में शांति बनाने तक का काम करते हैं। रिपोर्टिंग के बाद डेस्क की जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण है। पत्रकारों के लिए शब्दों का ज्ञान होना जरूरी है। डेस्क पर बैठने वालों को क्षेत्र की समग्र जानकारी होनी जरूरी है।
हमने अपने सामने अखबारों में संपादक नाम की संस्था को बहुत कमजोर होते हुए देखा है। संपादक हैं ही नहीं अखबारों में। एक या दो नाम छोड़कर संपादकों में कोई नाम याद नहीं आता। न्यूज मैनेजर के तौर पर प्रबंधन की भूमिका में संपादक आ गए हैं। विज्ञापन एवं तमाम तरह के दबाव में हैं। तटस्थ भाव से खबरों को सामने रखना होता है, यह किसी के पक्ष में होता है और किसी के नहीं। दुर्भाग्य से यह स्थिति है कि गलत कार्यों को मीडिया जस्टिफाई करने लगा है, इसका कारण सरकारों की ओर से विज्ञापन का दबाव है और उन पर मैनेजमेंट भी हावी होने लगा है।
सूचनाओं को क्रास चेक करना चाहिए। रिपोर्टिंग में हमें मौके पर होना चाहिए। 99 फीसदी कोशिश हो कि मौके पर पहुंचे। नई जानकारियां मिलती हैं। आपकी खबर दूसरों सेे अलग होगी। अब व्हाट्सएप पर विज्ञप्तियां जारी होती हैं। अखबारों में हेडिंग समान होती है।

राज्य निर्माण आंदोलन के समय हम लोगों के पास न तो फोन होते थे और न ही दुपहिया। कई कई स्थानों पर लाठीचार्ज की सूचनाएं मिलती थीं। हम लोग पुलिस के वायरलैस सेट्स के आसपास घूमते रहते थे। वहां से सूचनाएं मिलने पर किसी तरह एक दूसरे को सहयोग करके मौके पर पहुंचने की कोशिश करते थे। उत्तराखंड आंदोलन के समय में संघर्ष करने वाले पत्रकारों को सरकार ने पहचान नहीं दी। इनमें से बहुत पत्रकारों को सरकार से मान्यता तक नहीं मिली।
इलेक्ट्रानिक मीडिया ने पत्रकारिता के रंग रूप को बदला। इसको देखते हुए प्रिंट ने भी मजबूरी में बदलाव किया। चैनल्स को 24 घंटे तक का कंटेंट चाहिए। चैनल्स पर बहस चल रही हैं, उनमें शोरगुल हो रहा है। जो जितना ज्यादा चीख रहा है, उस चैनल को उतने ज्यादा लोग देख रहे हैं। उस शोरगुल में जन मुद्दों की पत्रकारिता हाशिए पर चली गई।
उत्तराखंड में पत्रकारिता के धार कुंद होती जा रही है। रिएक्शन गायब हो गया है। सत्ता की अदला बदली हो रही है। सभी के बीच तय है कि किस लेवल तक विरोध करना है। पब्लिक में रिएक्शन सिरे से गायब है। जब रिएक्शन नहीं हो रहा है तो पत्रकार स्टेनोग्राफर बन गए।
पत्रकारिता का स्तर गिर गया। पत्रकार में पहले किसी न किसी के प्रति झुकाव था, पर यह खबरों में नहीं झलकता था। अब राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता सत्ता और विपक्ष में बंट गई।

रियल टाइम में ब्रेकिंग का काम प्रिंट मीडिया में भी आ गया। खबरों को पुष्टि किए बिना सोशल मीडिया सहित अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों पर प्रसारित किया जा रहा है।  एक संस्कृतिकर्मी के निधन की झूठी खबर इसका उदाहरण है, बिना पुष्टि किए इस बात को सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया। समाचारों को जल्दी भेजने के चक्कर में ऐसा हो रहा है। हमारा मानना है कि खबर कितनी भी बड़ी हो, छूट जाए, पर बिना पुष्टि के प्रसारित न हो।
पत्रकारिता का उजला पक्ष कोविड 19 संकट काल के समय सामने आया था। पत्रकारों ने भी कोरोना वारियर्स की भूमिका निभाई है। पर, उनकी सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान नहीं गया। उनका कार्य बोझ बढ़ गया। उनकी नौकरियां चली गईंसरकारों में मीडिया सलाहकारों ने भी पत्रकारों की स्थिति पर बात नहीं की। उनके पास पत्रकारों से संबंधित आंकड़ें तक नहीं हैं।
पत्रकारों ने हाईरिस्क में काम किया और समाज की मदद की। वरिष्ठ पत्रकार गौरव मिश्रा सपरिवार अस्वस्थ रहते हुए भी लोगों की मदद करते रहे। युवा साथी पत्रकार चांद मोहम्मद ने मेडिकल और हेल्थ में बहुत सारे लोगों को सहयोग किया। उन्होंने लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराने से लेकर उनकी सुविधाओं का ध्यान रखा। पत्रकारों को सरकारों से कोई सहयोग नहीं मिला।
देहरादून में पत्रकारों ने एक पहल करते हुए व्हाट्सएप ग्रुप, आओ मिलकर जीतेंगे यह जंग, बनाया, जो उत्तराखंड ही नहीं, दिल्ली एनसीआर, चंड़ीगढ़ सहित नेटवर्क बना गया। इस नेटवर्क ने बड़ी संख्या में लोगों की मदद की।
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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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