88 की हो गईं दादी मां, नौ साल की उम्र में जल से भरे लोटे संग हुए थे फेरे
सास बहुत प्यार करती थीं, बच्चों की तरह ख्याल रखती थीं, दूध में रोटी भात मिलाकर खिलाती थीं,
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
मंगसीरी देवी की शादी नौ साल की आयु में हो गई थी। बारात के साथ दूल्हे की जगह, जल से भरा लोटा भेजा गया था। लोटे के साथ ही उनके फेरे हुए थे। शादी के समय दूल्हा अपने घर पर ही था।
अब अपनी आयु चार बीसे आठ बरस (88 साल) बताने वालीं दादी खुद भी खुश रहती हैं और दूसरों को भी हंसाती रहती हैं। गिंवाला गांव की संतोषी बताती हैं, दादी खूब मजाक करती हैं, जिस दिन गांव में नहीं रहती, उस दिन किसी को भी अच्छा नहीं लगता। दादी के बिना गांव सुनसान रहता है। दूसरों की प्रसन्नता का ख्याल रखने वाली दादी का जीवन कैसा रहा, उन्होंने किन चुनौतियों का सामना किया, पर हमने उनसे बात की।
रुद्रप्रयाग के गिंवाला गांव की रहने वालीं दादी मंगसीरी देवी की शादी को 79 साल हो गए। दादी गढ़वाली बोली में अपने विवाह के बारे में बताती हैं। उनके साथ हमारे संवाद को संतोषी हिन्दी में अनुवाद करती हैं।
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उनके अनुसार, दादी की शादी के समय बारात में दूल्हे की जगह जल से भरा लोटा भेजा गया था। दूल्हा उस समय अपने घर पर ही रहा। शादी के मंडप में थाली में जल से भरा लोटा और जलता हुआ दीया रखा गया था। ब्राह्मण ने इस लोटे के साथ दादी के फेरे कराए थे। वो बचपन के दिन सहेलियों के साथ खेलने कूदने, स्कूल जाने के थे, पर उस आयु में दादी के लिए मायके से ससुराल जाने की बेला थी।
दादी बताती हैं, ” लड़का कुछ लोगों के साथ मुझे देखने के लिए गांव में आया था, उस समय हम चार लड़कियां खेल रही थीं। हमें यह बताया गया था कि ये लोग गाय देखने आए हैं। अगर, हमें पता चलता कि ये शादी के लिए लड़की देखने आए हैं, तो हम छिप जाते। हमारे परिवार के ही किसी एक ने मेरे को हाथ से हल्का सा धक्का देकर कहा, कहां है वो गाय। इसका मतलब यह था कि वो लड़की देखने वाले लोगों को इशारा करके बता रहे थे कि यही है वो लड़की, जिसकी शादी होनी है। ”
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” हमारी पसंद का कोई सवाल ही नहीं था, उस समय ऐसा नहीं होता था,” दादी मंगसीरी देवी का कहना है।
” मेरे पिता ने मना कर दिया था कि लड़का बड़ा है और लड़की बहुत छोटी है। यह लड़के की दूसरी शादी थी, पर उन लोगों ने मेरे पिता को बरगलाकर हां करा दी। उस समय एक बार, हां हो जाती थी, तो फिर जुबान से फिरने का कोई मतलब नहीं था। मेरी शादी हो गई।मैंने स्कूल नहीं देखा। बचपन में शादी हो गई, हम तो ससुराल में बच्चों के साथ खेलते रहते थे। हम झूला खूब झूलते थे। सास बहुत प्यार करती थी,” मंगसीरी देवी बताती हैं।
बुजुर्ग मंगसीरी देवी कहती हैं, ” सास मुझे दूध में रोटी, भात खिलाती थीं, जो मैं नहीं खाती थी। जब मुझे नींद आती थी, तो सास मुझे सुला देती थीं। वो हमें बहू नहीं, बल्कि अपनी छोटी बेटी की तरह मानती थीं। सास बहुत अच्छी थीं, वो जानती थीं कि ये छोटे बच्चे हैं, वो हमें बहू नहीं समझते थे, बल्कि अपनी बेटी मानती थीं।”
” मेरे पति बहुत अच्छी मुरली बजाते थे। उन्होंने भी स्कूल कहां जाना था, वो तो पूरे गांव में घर-घर जाकर लोगों को मुरली सुनाते थे। वो पशुओं को चराने जाते थे। खेतीबाड़ी करते थे। 50 वर्ष की आयु में पति की मृत्यु हो गई, उस समय मेरी आयु 30 साल थी,” उनका कहना है।
उनका मानना है, ” पहले का जमाना फिर भी अच्छा था, उस समय खेती खूब होती थी। पहले आज की तरह बंदर भी ज्यादा नहीं थे, सूअर थे। जंगली जानवर खेती को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते थे। हमने दो गांवों की खेती की। अब तो लोग बाजार से राशन ला रहे हैं, खेती को बंजर रखा है। हमने खूब अनाज बेचा, खाया भी खूब। काकड़ी (खीरा), मूंगरी( मक्का) खूब होता था। अगस्त्यमुनि में जागर के लिए आने वाले लोग हमारे से काकड़ी, मूंगरी लेकर जाते थे।”
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हमारे एक सवाल पर वो कहती हैं, “मैं हमेशा खुश रहती हूं, बारात में जाती हूं। बाजार का कुछ नहीं खाती। मुझ पर वन देवता आते हैं। हम घर का खाना खाते हैं। मैं जहां जाती हूं, लोगों को खूब हंसाती हूं। मुझे सभी याद रखते हैं। सौड़ी गांव जाती हूं तो वहां सभी हंसाती हूं। जब यहां आती हूं, तो सौड़ी गांव में मेरे मायके वाले कहते हैं, यहां आओ। जब वहां जाती हूं, तो यहां के लोग बुलाते हैं।”
दादी एक किस्सा सुनाते हुए जोर से हंसती हैं, ” मैंने किसी व्यक्ति को यह सोचकर प्रणाम कर दिया कि वो मेरे नाती का ससुर है। पर, बाद में पता चला कि वो कोई और है।”
” हमारे जमाने में कोई क्रीम नहीं होती थी। हम चेहरे और सिर पर सरसों का तेल लगाते थे। भीमल की छाल को पत्थर से कूटकर उससे बाल धोते थे। पहले का जमाना बढ़िया था। अब टीवी कहां से देखें, आंखों से दिखना कम हो गया है। श्रीनगर में आंखों को सुधरवाया था,” दादी कहती हैं।
उस समय नहीं था दहेज का ज्यादा चलन
गिंवाला गांव निवासी सुनदेई देवी 61 वर्ष की हैं। उनकी शादी 13 साल की उम्र हो गई थी। बताती हैं, उनके फेरे भी जल से भरे लोटे के साथ हुए थे। फेरे के समय दूल्हा अपने घर पर था। उस समय दहेज में दुल्हन के इस्तेमाल का सामान दिया जाता था, जिसमें कांसे की थाली, लोटा, छोटा बक्सा दिया जाता था। माता पिता की सामर्थ्य होती थी तो जेवर देते थे, नहीं तो जेवर नहीं देते थे। शादी के समय लड़की के हाथ में कोई आठ आने, कोई चार आने, कोई दस पैसे, अधिक से अधिक कोई एक रुपया रखता था। मुझे कुल मिलाकर 18 रुपये मिले थे। सुनदई देवी को टीवी पर समाचार सुनने, कथा और गाने सुनने पसंद हैं।