मनोकामना पूरी करने वालीं मां मनसा देवी की पौराणिक कथाएं
भगवान शिव की मानस पुत्री मां मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार के बिलवा पहाड़ पर स्थित है
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
हरिद्वार में तीन प्रमुख सिद्धपीठ मां मनसा देवी, मां चंडी देवी और मां माया देवी हैं। तीनों सिद्धपीठों के मंदिर त्रिभुज में स्थापित हैं। मां माया देवी का मंदिर गंगाजी के तट पर है। मां मनसा देवी का मंदिर शिवालिक पर्वत श्रृंख्ला के बिलवा पहाड़ तथा मां चंडी देवी का मंदिर नील पर्वत पर है। देश विदेश से आने वाले श्रद्धालु हरिद्वार में गंगा स्नान करने के बाद दर्शनों के लिए इन मंदिरों में जाते हैं। प्रस्तुत है मां मनसा देवी की पावन कथा-
हरिद्वार के प्रमुख सिद्धपीठ मां मनसा देवी की कथा का श्रवण करना श्रद्धालुओं के जीवन में सुख- समृद्धि में वृद्धि करने वाला है। मनसा का अर्थ होता है, सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाली मां। सद्भावना एवं सच्चे हृदय से की गई हर मनोकामना को मां पूर्ण करती हैं। मनोकामना करने वाले श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित वृक्ष पर धागा बांधते हैं और कामना पूर्ण होने पर धागा खोलने आते हैं।
मान्यता है कि मां मनसा देवी का जन्म भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में हुआ, जबकि कुछ प्राचीन ग्रंथों के अनुसार मां मनसा कश्यप ऋषि की पुत्री हैं। मां मनसा को नाग राजा वासुकी की बहन भी माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच संग्राम के समय समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मंथन से कालकूट नाम का विष निकला था। इसके प्रभाव से सभी देव और दानव जलने लगे। वो अपने प्राणों की रक्षा के लिए भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनके समक्ष प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने लोक कल्याण के लिए कालकूट नाम के विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। इससे भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। विष का प्रभाव इतना तेज था कि इससे भगवान शिव को भी पीड़ा होने लगी।
भगवान शिव ने अपने मन से एक नाग कन्या को उत्पन्न किया, जिन्होंने भगवान के मुंह में प्रवेश करके सारा विष खींच लिया और भगवान को पीड़ा से मुक्ति दिलाई। तभी से लेकर आज भी माता मनसा देवी श्रद्धालुओं के जीवन के सभी कष्टों को दूर कर रही हैं। माता मनसा देवी काल सृप दोष से भी श्रद्धालुओं की रक्षा करती हैं।
शिवालिक पर्वतमाला स्थित मंदिर में मां भगवती मनसा देवी की स्वयंभू प्रतिमा महिषासुरमर्दिनी के रूप में है। कथा के अनुसार, दैत्य महिषासुर देवताओं पर अत्याचार कर रहा था। देवताओं ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव की शरण ली। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के शरीर से एक-एक किरण पुंज अवतरित हुआ। इन तेज किरण पुंज के मिलने से मां भगवती दुर्गा मां का अवतार हुआ। देवताओं की रक्षा के लिए मां ने महिषासुर का वध किया। इस प्रकार माता ने देवताओं की मनोकामना को पूर्ण किया, उसी तरह आज भी माता अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूर्ण कर रही हैं।
माता की मूर्ति में दो शक्तियों का वास है, एक महिषासुर मर्दिनी और दूसरी नाग माता मनसा। नाग माता मनसा भक्तों को कालसर्प दोष से मुक्ति प्रदान करती हैं।
मां महिषासुरमर्दिनि 18 भुजाओं में विराजमान हैं, जो पर्वत से स्वयं प्रकट हुई हैं। काली मां गायत्री के पांच मुख और दस भुजाएं हैं। पुराने समय में बलिप्रथा को बंद करने के लिए मां गायत्री की प्रतिष्ठा की गई थी।
इन नामों से भी होता है मां मनसा का पूजन
अनादि काल से माता मनसा का पूजन किया जा रहा है। माता विषहरण करने वाली हैं। बिहार में मनसा माता का पूजन विषहरी के नाम से किया जाता है। परमात्मा के मन से अवतरित देवी मां मनसा के नाम से प्रसिद्ध हैं। तीन युगों तक तप करके भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने पर माता का नाम वैष्णवी सिद्ध योगिनी भी है। स्वर्ग में, नागलोक में, पृथ्वी में, ब्रह्मलोक में सभी जगह माता की पूजा होती है। इनको जगद्ग गौरी नाम से भी सर्वत्र पूजा जाता है। भगवान शिव की शिष्या होने पर माता को शैवी भी कहा जाता है। भगवान विष्णु की भक्ति की वजह से माता को वैष्णवी कहते हैं। नागों की प्राण रक्षा करने पर माता नागेश्वरी नाम से सुविख्यात हैं। बंगाल में मनसा मंगल के नाम से प्रसिद्ध हैं। तपस्वी महर्षि आस्तीक की माता हैं और मुनि जरत्कारू की पत्नी हैं। माता की पूजा करने वाले को नाग का भय नहीं रहता। हरिद्वार में भ्रमण करने वाले हर व्यक्ति को माता के दर्शन करने चाहिए।
मां मनसा ने इंद्र और तक्षक की रक्षा की
राजा परीक्षित एक दिन शिकार खेलते हुए मृग के पीछे दूर तक निकल गए। राजा को भूख प्यास लगी तो राजा शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। ऋषि समाधि में लीन थे, उन्हें राजा के आश्रम में आने का पता नहीं चला। राजा ने कहा, जहां मान न हो, वहां नहीं रुकना चाहिए। राजा वापस जाने लगे, अचानक एक मृत सर्प वहां दिखा। राजा ने सर्प को धनुष के सहारे उठाकर महर्षि शमीक गले में डाल दिया। तब ऋषि के पुत्र ऋंगी ऋषि ने उनको श्राप दिया कि आज से सातवें दिन यही तक्षक तुम्हें डसेगा। महर्षि शमीक की समाधि खुली, उन्होंने यह सब देख लिया। पुत्र ने राजा को श्राप दे दिया, यह जानकर ऋषि को दुख पहुंचा और उन्होंने राजा परीक्षित को सूचना भेज दी कि मेरे पुत्र ने आपको श्राप दिया है। राजा ने सहर्ष स्वीकार किया और कहा, मेरे अपराध का दंड मुझको मिलना ही चाहिए। एक सप्ताह बाद राजा परीक्षित को तक्षक ने डस लिया। राजा पंचतत्व को प्राप्त हो गए।
राजा जन्मेजय ने उनके मृतक कर्म संपन्न होने के बाद सर्पयज्ञ किया। इस यज्ञ से बहुत से सर्प भस्म हो गए, लेकिन तक्षक नहीं मरा। तक्षक भयभीत होकर इंद्र की शरण में चला गया। तब ब्राह्मणों ने इंद्र और तक्षक को बुलाया। ब्राह्मणों के मंत्रों से इंद्र का आसन डोलने लगा। इंद्र भयभीत होकर देवताओं के साथ मां मनसा देवी की शरण में पहुंचे। सबने माता से प्रार्थना की। माता ने इंद्र को भयभीत देखकर अपने पुत्र आस्तीक को यज्ञ भूमि पर भेजा। आस्तीक ने जन्मेजय को उपदेश देकर इंद्र व तक्षक की रक्षा की और यज्ञ को संपन्न कराया। इसके बाद, ब्राह्मण, मुनि, देवता ने विधिविधान से मां मनसा देवी की पूजा अर्चना की।
इंद्र की पूजा व भक्तिभाव से प्रसन्न होकर आकाश से मां मनसा पर पुष्पवर्षा हुई। ब्रह्मा, विष्णु, शिव की आज्ञा से प्रसन्न होकर इंद्र ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से मां भगवती मनसा की प्रार्थना की, जो पुरन्दर उवाच स्तोत्रं में वर्णित है। इसमें कहा गया है, जो मनुष्य आषाढ़ की संक्रांति या पंचमी तिथि या माह के अंतिम दिन श्रद्धा भक्तिभाव से मां भगवती मनसा देवी का पूजन करता है, उसको संतान की प्राप्ति होती है। उसको यश, कीर्ति, विद्या, धन एवं समृद्धता में वृद्धि होती है। मां भगवती का नित्य पूजन करने वाले का सदा कल्याण होता है।
सबसे प्रथम श्री गणेश जी का पूजन, तब सूर्य देव, अग्नि देव, फिर भगवान विष्णु, शिव और पार्वती माता का पूजन करें, तब बाद में मां मनसा देवी का पूजन करें।
सूरज कुंड की कथा
मां मनसा देवी मंदिर के उत्तर में सीढ़ियों से होते हुए लगभग 500 मीटर की दूरी पर पौराणिक स्थल सूरज कुंड है। यहां शिवरात्रि और श्रावणमास में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस स्थान पर माता अनुसुइया ने कई वर्षों तक घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य देव ने उनको दर्शन दिए और उनको मोक्ष प्रदान किया। माता अनुसुया की तपस्या से यहां एक तप्त कुंड उत्पन्न हुआ था, जिसका नाम सूरज कुंड एवं सिद्ध कुंड है। मान्यता है कि इस कुंड में मकर संक्रांति में स्नान करने से कुष्ठ रोग समाप्त हो जाता है। बच्चों में सूखा रोग भी नहीं रहता।
मंदिर तक कैसे पहुंचें
हरिद्वार शहर से माता मनसा देवी के मंदिर के लिए रास्ता जाता है। पहाड़ पर स्थित मंदिर का पैदल चढ़ाई वाला रास्ता लगभग डेढ़ किमी. का है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हैं, जिनकी संख्या 786 बताई जाती है। श्रद्धालु केबल कार, जिसे उड़न खटोला कहा जाता है, से भी मंदिर पहुंच सकते हैं।
मंदिर ट्रस्ट के कार्य
श्री मनसादेवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी जी महाराज के निर्देशन में मंदिर में श्रद्धालुओं की सुविधा एवं सुरक्षा के प्रबंध किए गए हैं। श्रीमहंत रविंद्र पुरी जी की इच्छा है, मां मनसा देवी मंदिर तक का मार्ग सरल हो जाए। मंदिर तक कार और बस भी पहुंचने लग जाएं। इस दिशा में ट्रस्ट कार्य कर रहा है।
ट्रस्ट के अंतर्गत संचालित संस्थाएं लोककल्याणकारी कार्य कर रही है। इसमें प्राथमिक चिकित्सालय, विश्रामगृह, भंडारा अन्नक्षेत्र, स्वास्थ्य शिविर, गरीब कन्याओं का विवाह, शिक्षा में सहयोग किया जा रहा है। पेयजल सुविधा के विस्तार, मार्गों के सुधारीकरण, नई गौशाला निर्माण, पर्यावरण सुरक्षा एवं दैवीय आपदाओं से मंदिर भवन की सुरक्षा की योजनाओं पर काम हो रहा है।
स्रोतः श्री मनसादेवी मंदिर ट्रस्ट की पुस्तक श्रीमनसा देवी महात्मय