
सरकार बताओ! सात माह से निराश्रित क्यों हैं कुंजा ग्रांट के चार बच्चे
देहरादून। देहरादून जिला के कुंजा ग्रांट में रहने वाली 16 साल की एक बिटिया के पिता का करीब सात माह पहले बीमारी के चलते निधन हो गया। उनकी मां का इंतकाल करीब चार साल पहले हो गया था। सात माह से यह बिटिया और उनके तीन भाई बहन निराश्रित हैं। इन बच्चों के सामने जीवन को आगे बढ़ाने की चुनौती है।
पड़ोस में रहने वाले परिवार, जो पहले से ही आर्थिक दुश्वारियां झेल रहे हैं, इन चार बच्चों के लिए राशन की व्यवस्था कर रहे हैं, पर यह मदद कितने दिन तक आगे चलेगी, किसी को कुछ नहीं पता। बदहाली में जी रहे इन बच्चों के पास सरकारी मदद के नाम पर राशन के अलावा कुछ नहीं है।
सवाल यह है कि इनको अब तक संरक्षण क्यों नहीं मिला। क्या इतने समय बाद भी, हम स्पष्ट रूप से यह कह सकते हैं कि इनका बचपन खुशहाल होगा। क्या इनके सुरक्षित आश्रय, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण एवं सामाजिक सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त हो चुके हैं। यह सवाल उस स्थिति में उठाए जा रहे हैं, जब क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि इनके लिए अपनी चिंता व्यक्त करते हैं।
पर, इन बच्चों के संरक्षण की दिशा में देर से ही सही, पर शनिवार को राहत की एक किरण दिखाई दी। फर्स्ट रिस्पांस के तौर पर एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) ने इन बच्चों के घर पर मदद के लिए दस्तक दी। यूनिट इंचार्ज सब इंस्पेक्टर मोहन सिंह बताते हैं कि उनको आज जैसे ही सूचना मिली, इनके घर पहुंचे ।
जनप्रतिनिधियों ग्राम प्रधान सुमनलता और बीडीसी मेंबर की मौजूदगी में उन्होंने इस बिटिया से आवश्यक जानकारियां लीं। यूनिट इंचार्ज को घर पर यह बिटिया और सबसे छोटी करीब साढ़े तीन साल की बहन मिले। छोटा भाई करीब दस साल का है और एक बहन है, जिसकी उम्र लगभग आठ साल होगी। बहन दादा के घर गई है। बताया गया कि भाई आसपास ही कहीं गया है। इन बच्चों के दादा-दादी और चाचा हैं, पर वो यहां से दूर हरियाणा में रहते हैं।
बच्चे यहां अकेले, जिस घर में रहते हैं, वह आधा कच्चा, आधा पक्का और फूस के इस्तेमाल से बना एक कमरा है, जिसमें बिजली का कनेक्शन भी नहीं है। पानी के लिए पास में एक नल लगा है। ग्रामीण बताते हैं कि इन बच्चों को आस पड़ोस के लोग ही खाने का सामान उपलब्ध कराते हैं। पड़ोसी ने अपने घर से पंखा और एक बल्ब जलाने के लिए बिजली की व्यवस्था की है।
सब इंस्पेक्टर मोहन सिंह का कहना है कि उनके लिए बच्चों की सुरक्षा महत्वपूर्ण है। बच्चों के दादा और चाचा, जो हरियाणा में रहते हैं, उनसे बात की गई है। उनको यहां बुलाया गया है। यदि बच्चे निराश्रित वाली श्रेणी में हैं, तो इनको तत्काल रेस्क्यू किया जाएगा। रेस्क्यू के तहत बच्चों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष ले जाएंगे। कमेटी के माध्यम से इनको आयु के अनुसार, बाल निकेतन व शिशु निकेतन में दाखिला कराया जाएगा।
उनका कहना है कि यदि ये निराश्रित वाली कैटेगरी में नहीं हैं तो इनको वात्सल्य योजना का लाभ दिलाने की कार्यवाही शुरू कराई जाएगी। यूनिट इंचार्ज सिंह ने फोन पर बच्चों के चाचा से बात की, जिनको विस्तार से पूरी जानकारी देते हुए कुंजा ग्रांट बुलाया गया है। उनका कहना है कि रविवार को बच्चों के चाचा, दादा से बात की जाएगी।
हमने इस संबंध में ग्राम प्रधान सुमनलता से बात की। ग्राम प्रधान बताती हैं कि उनका पूरा प्रयास है कि बच्चों के पिता को, जो आवास मिलना था, वो बच्चों को मिले। उनका मूल घर यहीं पर है, तो उनको यही पर आश्रय मिलना चाहिए। सरकारी संस्थाओं और ब्लॉक स्तर पर बहुत सारे कार्य करा रहे हैं, जिससे उन बच्चों को आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा मिले।
ग्राम प्रधान का कहना है कि इन बच्चों की जानकारी क्षेत्रीय विधायक सहदेव पुंडीर और अधिकारियों को है। अभी तक कोई अधिकारी बच्चों से नहीं मिले, के सवाल पर ग्राम प्रधान का कहना है कि वहां हमारे कितनी बार चक्कर लगते रहे हैं। बच्चों को बाहर की दुनिया का पता नहीं होता, कौन आ रहा है। हम जाएंगे, उनके लिए वो भी बराबर है और कोई ऑफिसर जाएंगे, वो भी उनके लिए वैसे ही हैं।
कुंजा ग्रांट के इन बच्चों के संबंध में जिला पंचायत सदस्य पूजा रावत का कहना है कि हमने क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास के प्लान पर सरकार स्तर पर मदद मांगी है। पर, वहां से जल्द से कोई रेस्पांस नहीं आता। उनका कहना है कि सरकारी योजनाओं का यहां उपयोग नहीं हो पा रहा है। गांव तक योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं।
एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने तो सूचना मिलते ही सक्रियता से बच्चों की सुरक्षा संबंधी कार्यवाही शुरू कर दी, पर इससे पहले सात माह तक बच्चों को निराश्रित छोड़ देने वाली उस व्यवस्था पर सवाल उठाना तो लाजिमी है, जिस पर बच्चों के कल्याण एवं उनके बहुआयामी विकास की जिम्मेदारी है।
हम यह मान लेते हैं कि बाल विकास व प्रशासन के अधिकारियों ने चार छोटे बच्चों के निराश्रित होने का संज्ञान लिया और वो उनसे मिले। पर, इन बच्चों की सामाजिक सुरक्षा के सवाल पर कोई कार्यवाही मौके पर नहीं दिखती।
अभी तक संबंधित अफसरों ने बच्चों का बाल निकेतन या शिशु निकेतन में दाखिला क्यों नहीं कराया। इन बच्चों को ऐसे ही स्वयं अपने या फिर पड़ोसियों के हाल पर कैसे छोड़ दिया गया। सरकारी स्तर पर संरक्षण का मतलब तो परिवार के लोगों को विधिक रूप से सुपुर्द करने से होता है, न कि पड़ोसियों से मिलने वाली मदद के भरोसे।
हमने ग्रामीणों से बात की। पड़ोसी वहीदा बताती हैं कि इन बच्चों के घर में न तो शौचालय है और न ही बिजली की व्यवस्था। ऐसे में कोई कैसे रह सकता है। इन घर में बिजली का कनेक्शन तो लगाया जाना चाहिए।
यह हालात तब हैं, जब सरकार की ओर से वात्सल्य योजना का लगातार प्रचार किया जा रहा है। पर, बाल संरक्षण के लिए जिम्मेदार सिस्टम की राजधानी से करीब 35 किमी. दूर स्थित इस गांव पर नजर नहीं पड़ी। वो क्या वजह है कि अपने अधिकारों से इन चार बच्चों को अभी तक वंचित रहना पड़ा। बचपन बचाओ की पहल इनके किसी काम क्यों नहीं आ पा रही है या फिर सरकारी तंत्र इस दिशा में कदम नहीं बढ़ा रहा है।
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