अंतरराष्ट्रीय महिला दिवसः क्या आप कमला देवी को जानते हैं
बीज बचाओ आंदोलन को आगे बढ़ाना संभव नहीं होता है यदि कमला देवी मदद नहीं करतींः जड़धारी जी
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी, जिनको हम बीजों के गांधी भी कहते हैं, की प्रेरणा हैं कमला देवी। सादगी पसंद सरल स्वभाव की कमला देवी से जब हम खेतीबाड़ी में दिक्कतों के बारे में पूछते हैं, तो उनका कहना है खेतीबाड़ी में दिक्कतें तो आती ही हैं, पर हमें खेती को नहीं छोड़ना चाहिए।
जड़धारी जी. हमें बताते हैं, चिपको और बीज बचाओ आंदोलन में हर कदम पर कमला देवी ने उनको सहयोग किया। आज भी खेतीबाड़ी में जितने भी प्रयोग किए हैं, बीजों के संरक्षण के लिए जो भी कार्य करते हैं, उनमें कमला देवी हरकदम उनके साथ हैं। कमला देवी उनकी प्रेरणा हैं।
अपनी पुस्तक बारहनाजा की प्रस्तावना में जड़धारी जी लिखते हैं, सामाजिक क्षेत्रों में अनेक आंदोलनों व संघर्षों में हिस्सा लेते हुए विविधता एवं बारहनाजा संरक्षण व संवर्धन को आगे बढ़ाना संभव नहीं होता, यदि मेरी सहधर्मिणी कमला मदद नहीं करतीं। उन्होंने अपनी बेटियों को खेती के संस्कार देने की कोशिश की है और बेटियों ने खेती की विविधता के संरक्षण में मेरी भरपूर मदद की है।
वो कहते हैं, उनकी मेहनत या संघर्ष धरा धराया रह जाता यदि बुजुर्गों ने पीढ़ी दर पीढ़ी खेती के पारंपरिक ज्ञान को आगे न बढ़ाया होता। पहाड़ के पशुपालकों, किसानों और मातृशक्ति ने दिनरात कठोर परिश्रम करके इस पंरपरा को आगे बढ़ाया है।
हमने कमला देवी से बात की, उन्होंने बारहनाजा के साथ नौरंगी, राजमा के बीजों के बारे में बताया। बगैर खाद की खेती की जानकारी दी। बताती हैं, उनके जड़धार गांव स्थित खेतों में सिंचाई के लिए पानी नहीं है, लेकिन नागणी के खेतों के लिए सिंचाई नहर है। बताती हैं, वर्षों से खेती कर रहे हैं, पर अब उनसे खेतीबाड़ी के काम नहीं हो पाते।
हमारे पूछने पर उनका कहना था, जंगली जानवरों ने पूरी फसल को नुकसान पहुंचा दिया है। हम क्या कर सकते हैं, बंदर, जंगली सुअर फसल को खत्म कर रहे हैं।
कमला देवी चिपको आंदोलन को याद करती हैं, जब पेड़ों को बचाने के लिए महिलाएं इकट्ठा होती थीं। आपको मालूम होगा, चिपको आंदोलन में जड़धारी जी भी काफी सक्रियता से जुड़े रहे। कमला देवी बताती हैं, उन्होंने पुरानी टिहरी में पुल के पास सुंदरलाल बहुगुणा जी के साथ धरना दिया।