हेमू भट्ट ने 19 साल पहले ही गीत लिखकर बता दिए थे आज जैसे हालात
ऋषिकेश। वरिष्ठ पत्रकार, कवि, गीतकार एवं गायक हेमवती नंदन भट्ट हेमू ने 2002 में एक गीत लिखा था, जो उत्तराखंड में बदलते परिदृश्य और राजनीतिक हालातों को बताता है। लगभग 19 साल बाद यह गीत फिर से चर्चाओं में है। वो इसलिए, क्योंकि उन्होंने उत्तराखंड में बदलाव की, जो तस्वीर पेश की थी, वो वर्तमान हालातों से मेल खाती है।
नीलम कैसेट्स ने उत्तराखंड कु हाल शीर्षक वाले इस गीत को 2008 में हेमवती नंदन भट्ट की ही आवाज में रिकार्ड किया और आडियो-वीडियो में जारी किया था। तब से हर शादी विवाह समारोहों और घरों में यह लोगों का मनोरंजन कर रहा है। यहीं नहीं यह राजनीति पर भी कटाक्ष करता गीत है। हाल ही में नीलम कैसेट्स ने इस गीत का वीडियो यूट्यूब पर जारी किया है। इस वीडियो को खूब देखा जा रहा है।
गढ़वाली व अंग्रेजी में लिखा गया गीत उत्तराखंड के वर्तमान हालातों को व्यंगात्मक शैली में बयां करता है।
गीत के बोल हैं- कोल्ड्रिंक बियरबार पाड़ डांडा वार पार कच्ची न पक्क्यूं कि बार मैनिफैक्चरिंग बहार होली मेरा उत्तराखंड मा डेवलपमेंट 2020 मा।
हेमू बताते हैं, देवभूमि उत्तराखंड में समृद्धि एवं आजीविका के साथ राजस्व वृद्धि के बहुत सारे संसाधन हैं, पर राजनेताओं को आबकारी और खनन ही राजस्व के सबसे बड़े साधन दिखते हैं। आबकारी का हाल यह है कि राज्य में ज्यादा से ज्यादा बार खोलने के लाइसेंस दिए जा रहे हैं।
हालात यह हो गए हैं कि पर्वतीय गांवों में रहने वालों को शहर पसंद आ रहे हैं। इसकी वजह उनको गांव में ही रोजगार नहीं मिलना भी है। रोजगार ही नहीं तमाम बुनियादी सुविधाएं गांवों तक नहीं पहुंची हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, परिवहन सहित तमाम जरूरतें पूरी नहीं होने की वजह से लोगों को गांव छोड़ने पड़ रहे हैं।
बढ़ते जनसंख्या दबाव की वजह से शहरों में आवास सहित तमाम जरूरी संसाधन कम पड़ते जा रहे हैं और अपार्टमेंट कलचर तेजी से बढ़ा है।
वो बताते हैं, 2002 में राज्य शैशव अवस्था में था, तब हालात में बदलाव को देखते हुए उन्होंने 20 साल बाद की स्थिति की कल्पना की थी, जो सही साबित हो रही है। जैसा सोचा था, वैसी परिस्थितियां देखने को मिल रही हैं।
हेमू सवाल करते हैं, क्या नया राज्य बनाने की मांग इस अवधारणा पर आधारित थी, शायद नहीं। हम चाहते थे कि हमारा राज्य, जो प्राकृतिक संसाधनों का धनी है, वहां दूरस्थ गांवों तक रोजगार पहुंचे। लोगों को अपने घर-गांव छोड़कर दूर नहीं जाना पड़े। हर व्यक्ति को रोजगार मिले, हर बच्चे को शिक्षा। स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, रोजगार के लिए लोगों को पलायन नहीं करना पडे़, ऐसा सोचा था।
पर, हम जो देख रहे हैं, उसमें से बहुत सारे राजनीतिक फैसले हमारे राज्य के अनुरूप नहीं हैं। हो सकता है, कई लोग मुझसे इत्तेफाक न रखते हों, पर अधिकतर चाहते हैं कि पहाड़ के गांवों को बुनियादी सुविधाएं तो मिलें।