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COVID-19: साढ़े चार साल का Tyson Bull नहीं होता तो बड़ी दिक्कत हो जाती

डेयरी फार्मिंग में Sexed Semen पर निर्भरता बढ़ गई है। Sexed Semen इसलिए भी, क्योंकि डेयरी फार्मर्स Male पशु नहीं चाहते। इसकी सबसे बड़ी वजह Male पशुओं का उपयोग नहीं होना है। वहीं, खेतीबाड़ी के लिए पशुओं की जगह मशीनों ने ली है। अधिकतर डेयरी फार्मर्स Sexed Semen से पशुओं का प्रजनन कराते हैं, जिसमें अधिकांश संभावना बछिया के जन्म की होती है।

पर, कोविड-19 संक्रमण के दौर में डेयरी फार्मर्स के लिए दिक्कतें खड़ी हो गईं, क्योंकि वो अपने पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) नहीं करा पा रहे थे।
उत्तराखंड के देहरादून जिला के नकरौंदा स्थित जीरो प्वाइंट पर लगभग 20 वर्ष से डेयरी फार्मिंग ( Dairy Farming) से जुड़े शरद शर्मा (Sharad Sharma) बताते हैं कि उस दौर में डेयरी की ब्रीडिंग पॉलिसी (breeding Policy) भी प्रभावित होने लगी। पर हमारे पास Jersey Breed का साढ़े चार साल का Tyson Bull है, जिसने उस दौर में डेयरी फार्मिंग को बड़ा योगदान दिया।

वो बताते हैं, इसने नेचुलर सर्विस प्रोवइडर का काम किया। यदि उनके पास बुल नहीं होता तो डेयरी प्रभावित हो जाती।
उन्होंने बताया, Jersey Breed के Tyson Bull को Conventional semen से तैयार किया गया है। इसका डेयरी में बहुत बड़ा योगदान रहा है। इससे 60-65 के आसपास पशुओं का गर्भाधान हुआ। वहीं आधे से ज्यादा बछिया ने जन्म लिया। उस समय तो बस यही चाहते थे कि किसी तरह पशुओं का गर्भाधान हो जाए।
ब्लड लाइन (Blood line) प्रभावित नहीं हो, इसलिए इसको (Tyson) किसी अन्य डेयरी में ट्रांसफर कर दिया जाएगा। क्योंकि यहां अधिकतर बछियों ने इसके सीमेन से जन्म लिया है। इसलिए उनका इससे Insemination नहीं कराएंगे। बताते हैं, Tyson Bull मित्रतापूर्ण व्यवहार करता है। बिल्कुल भी आक्रामक नहीं है। यह सब ब्रीड का कमाल होता है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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