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डोईवाला के तेलीवाला गांव में अंग्रेजों के जमाने की दुकान, यहां की बरफी के चर्चे दूर दूर तक

कलाकंद के नाम से जाने जानी वाली यह मिठाई मावे और चीनी से बनाई जाती है

राजेश पांडेय। डोईवाला

देहरादून जिले में डोईवाला शहर से लगभग सात किमी. दूर तेलीवाला गांव में पालिका के चुनाव पर बात हो रही है। बातचीत में युवाओं के साथ बुजुर्ग भी शामिल हैं पर जिस दुकान में चाय पर चर्चा चल रही है, वो अंग्रेजों के जमाने से बताई जाती है। इस दुकान तक हमारे पहुंचने की वजह भी यही थी कि हम यहां की पहचान खास तरह बरफी पर बात करना चाहते थे। कलाकंद के नाम से जाने जानी वाली यह मिठाई मावे और चीनी से बनाई जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दुकान पर बरफी बनाने और चाय के लिए खपत होने वाला दूध गांव के ही पशुपालकों से खरीदा जाता है। कुल मिलाकर यह दुकान गांव की आर्थिकी को मजबूत बनाने का काम भी कर रही है।

हमने स्थानीय युवा मोहम्मद कैफ के साथ सलमान स्वीट शॉप पर मौजूद इमरान से बात की। करीब 27 साल के मोहम्मद सलमान बताते हैं, “यह दुकान उनके परदादा कुतुबुद्दीन ने शुरू की थी। पहले यहां सिर्फ चाय, पकौड़ी और यह बरफी ही बनती थी। उनके बाद दादा कमरुद्दीन और फिर उनके पिता मोहम्मद कासिम ने दुकान का जिम्मा संभाला। पिता से यह दुकान हमें मिली है। करीब आठ साल से वो दुकान संभाल रहे हैं।”

मोहम्मद कैफ के अनुसार, यह दुकान गांव के लोगों के लिए किसी मुद्दे पर चर्चा करने, एक कप चाय पीकर खुद के तनाव मुक्त करने का ठिकाना है।

“रोजाना लगभग 25 से 30 किलो तक बरफी बनाते हैं, जितनी भी बनती है पूरी बिक जाती है। उनकी दुकान पर प्रतिदिन लगभग 50 किलो दूध की खपत है, जो गांव के ही पशुपालकों से खरीदते हैं। पकौड़ी, समोसे, मठरी, ब्रेड पकोड़े और चाय भी हमारी दुकान पर बनते हैं,” मोहम्मद सलमान बताते हैं।

युवा मोहम्मद कैफ बताते हैं, “जो भी रिश्तेदार गांव आते हैं, यहां की बरफी, जिसको हम कलाकंद बोलते हैं,जरूर ले जाते हैं। इसकी खासियत यह है कि यह मिलावटी नहीं है, क्योंकि यहां गांव से ही दूध खरीदा जाता है। यह सभी के भरोसे की दुकान है। शाम होने से पहले ही सारी बरफी बिक जाती है। यह स्वादिष्ट मिठाई है और गांव की सबसे पुरानी दुकान का उत्पादन है।”

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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