राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग
“उस समय आयु भी सेना में भर्ती होने वाली नहीं थी। शिक्षक के रूप में सेवाएं दे रहा था। मैं शिक्षक बनना चाहता था, शिक्षक बन गया था। कभी भी नहीं सोचा था कि सेना में ट्रेनिंग लेने जाऊंगा। एक दिन, पंडित जी को परिवार ने मेरी जन्मपत्री देकर कहा, इनके बारे में बताओ। पंडित जी ने जन्मपत्री का अध्ययन करके कहा, इनका तो सेना में ट्रेनिंग लेने का योग बन रहा है। मैंने हंसते हुए कहा, शायद पंडित जी से जन्मपत्री देखने में कोई गलती हो रही है। अब सेना में शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है। वो भी इस उम्र में…, मैं लगभग 34 साल का हो गया था।”
कॉमर्स के शिक्षक रहे, वर्तमान में श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य मेजर गोविंद सिंह रावत जीवन के अनुभवों और खास किस्सों को साझा कर रहे थे। मेजर रावत बचपन से लेकर अधिकतर समय ऋषिकेश में ही रहे, इसलिए उन्होंने बदलते ऋषिकेश पर भी बात की। आपको वर्ष 2017 में उत्तराखंड सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार से सम्मानित किया था।
मेजर रावत बताते है, “2001 में श्रीभरत मंदिर इंटर कॉलेज में, उस समय प्रधानाचार्य रहे आईडी जोशी जी ने मुझसे कहा, क्या आप विद्यालय में एनसीसी को ज्वाइन करोगे। मैंने उनसे कहा, जरूर, मैं सहमत हूं। विद्यालय में एनसीसी की सीनियर डिवीजन है। शिक्षक ही सेना से आवश्यक प्रशिक्षण के बाद विद्यालय में एनसीसी की बागडोर संभालते हैं। उन्होंने मेरे नाम का प्रस्ताव एनसीसी को भेज दिया, जहां से मुझे तीन माह से प्रशिक्षण के लिए कामठी, नागपुर जाने का बुलावा भेजा गया।”
“शिक्षक को तीन माह का प्रशिक्षण मिलने के बाद सेकंड लेफ्टिनेंट का रैंक प्रदान किया जाता है। मेरा इससे पहले एनसीसी से कोई नाता नहीं था। मैंने कभी एनसीसी का प्रशिक्षण भी नहीं लिया था। इसलिए मुझे तीन माह की ट्रेनिंग लेनी थी, जो शिक्षक एनसीसी के ‘सी’ सर्टिफिकेट धारक होते हैं, उनके लिए यह ट्रेनिंग एक माह की होती है। जब मैंं ट्रेनिंग के लिए जा रहा था, तब पंडित जी की बात याद आई कि वो एकदम सत्य कह रहे थे।”
बताते हैं, ” फौज की ट्रेनिंग हासिल करके मेरा जीवन बदल गया। यह ट्रेनिंग व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक रूप से मजबूत करती है। अनुशासन, समयबद्धता एवं दृढ़ निश्चय की भावना का विकास होता है। 2021 में प्रधानाचार्य पद मिलने पर एनसीसी की जिम्मेदारी छोड़ दी।”
श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज के बारे में, संक्षेप में
तीर्थनगरी ऋषिकेश में महन्त श्री परशुराम जी महाराज ने श्री भरत मंदिर परिसर में सन् 1941-42 में विद्यालय स्थापित किया। यह विद्यालय पूर्व में प्राथमिक रहा तथा बाद में सन् 1943 में श्री भरत मंदिर आंग्ल हिन्दी माध्यमिक विद्यालय के रूप में पंजीकृत कर दिया गया। सन् 1943-44 में पंजीकृत श्री भरत मंदिर स्कूल सोसायटी,ऋषिकेश से संचालित इस विद्यालय को शिक्षा विभाग ने वर्ष 1944 में कक्षा 8 तक स्थायी मान्यता प्रदान की । सन् 1947 में हाईस्कूल एवं सन् 1951 में इंटरमीडिएट की मान्यता प्राप्त हुई। बालक-बालिकाओं के इस विद्यालय में वर्तमान में छात्र संख्या लगभग डेढ़ हजार है। विद्यालय की प्रार्थना सभा की खूब तारीफ होती है।
इसी विद्यालय से किया हाईस्कूल
मेजर गोविंद सिंह रावत ने 1982 में इसी विद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। इसके बाद, आप 12वीं कक्षा के लिए पंजाब सिंध क्षेत्र इंटर कॉलेज में चले गए। उस समय विद्यालय में इंटरमीडिएट में कॉमर्स विषय नहीं था। एमकॉम, बीएड के बाद आपने विद्यालय में शिक्षक के रूप में शुरुआत की।
ऋषिकेश बदल रहा है
ऋषिकेश शहर में होते बदलाव पर चर्चा करते हुए, प्रधानाचार्य मेजर रावत पुराने दिनों को याद करते हैं। बताते हैं, “मई जून के महीनों में दोपहर दो बजे तक बाजार में गिनती के लोग ही दिखते थे, जिनको बहुत जरूरी काम होता होगा। सड़कों पर बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी। हराभरा था शहर, मैदान खूब थे। जनसंख्या घनत्व बढ़ गया। कई बार सड़क पार करना मुश्किल हो जाता है। हरियाली गायब, खाली स्थान गायब हो रहे हैं, इमारतें बन रही है। यह विकास का एक आयाम हो सकता है, पर पहले वाला समय कुछ और ही था।”
हमने खेल को लेकर यह धारणा बदल दी…
कहते हैं, “मैं एथलीट रहा हूं। वॉलीबाल को छोड़कर सभी खेल खेले। क्रिकेट, फुटबॉल, रेस… में खूब हाथ आजमाया। पहले, पूरा दिन खेल के मैदान में, इसी स्कूल के मैदान में बीतता था। बचपन में, वो जमाना कुछ और था, खेलकर घर लौटते तो पिटाई हो जाती थी। परिवार वाले कहते थे, खेलने वाले बच्चे, पढ़ने में अच्छे नहीं होते। खेलने से पढ़ाई का नुकसान होता है।”
“हमने इस बात को चुनौती के तौर पर लिया, हम पढ़ने में भी अच्छे रहे। खेलकूद में हिस्सा लेने वाले बच्चे, अन्य किन्हीं खराब गतिविधियों में नहीं होंगे। नशे जैसी बुराइयों से वो बचे रहेंगे। हमने जीवन में बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू और अन्य कोई नशा नहीं किया। हमारा सभी बच्चों और युवाओं से कहना है, खेलकूद में जमकर हिस्सा लो, जिस जुनून से खेलते हो, उसी तरह मेहनत से शिक्षा पर भी ध्यान दो। आप जीवन में सफल हो जाओगे।”