एक पत्रकार, जो गंगा को बचाने के लिए लड़ रहा है
पार्थिव शरीर को गंगा में जल समाधि देने वालों को रोकते हैं वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर गौड़
हरिद्वार। बुधवार (23 फरवरी, 2022) की दोपहर वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर गौड़ को सूचना मिलती है कि हरिद्वार भूपतवाला में कुछ लोग एक संत का पार्थिव शरीर लेकर गंगा में जलसमाधि देने के लिए पहुंचे हैं। वो तुरंत गंगा घाट पर पहुंचते हैं और पार्थिव शरीर लाने वाले लोगों को समझाते हैं कि जलसमाधि से पावन गंगा का जल प्रदूषित होगा। जीवनदायिनी गंगा का जल प्रदूषित होने का मतलब है, इंसानों के जीवन से खिलवाड़।
विभिन्न मीडिया समूहों के लिए लेखन एवं फोटोग्राफी करने वाले 50 वर्षीय स्वतंत्र पत्रकार रामेश्वर गौड़ ने बताया, काफी समझाने पर लोगों ने संत के पार्थिव शरीर को जलसमाधि देने की बजाय दाह संस्कार करने का फैसला लिया। वो पार्थिव शरीर को दाहसंस्कार के लिए ले गए।
वरिष्ठ पत्रकार गौड़ जिला स्तरीय गंगा संरक्षण समिति के सदस्य भी हैं। वो बताते हैं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश अनुसार गंगा में प्रदूषण फैलाने पर 50 हजार से एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। आदेश का बार-बार उल्लंघन करने की दशा में संबंधित व्यक्ति को पांच वर्ष की सजा के साथ जुर्माने का प्रावधान है।
न्यूज लाइव ने गौड़ से गंगा संरक्षण के लिए उनके प्रयासों पर बात की। वो बताते हैं, जब भी हरिद्वार शहर का नाम जेहन में आते है, हमारा ध्यान अविरल गंगा की ओर जाता है। देश विदेश के करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र गंगा नदी के संरक्षण की पहल न केवल सरकारी स्तर पर बल्कि हर व्यक्ति के स्तर पर होनी चाहिए। वो 2005-06 से गंगा नदी के संरक्षण के लिए छोटी छोटी पहल कर रहे हैं।
31 जनवरी, 2022 को उन्होंने गंगा में भागीरथी बिन्दु के पास एक शव उतराता हुआ देखा। पुलिस को सूचना देकर इसका दाहसंस्कार कराया गया। यह बात लोगों को समझनी चाहिए कि गंगा या किसी भी नदी में कुछ भी ऐसा प्रवाहित न किया जाए, जिससे नदी प्रदूषित होती हो। उनके अनुसार, पहले भी कई बार ऐसा हुआ, जब लोग पार्थिव शरीर को गंगा में जलसमाधि देने लाए। उन्होंने लोगों को समझाकर वापस भेजा। उनसे आग्रह किया गया कि गंगा में जलसमाधि देने की बजाय दाहसंस्कार किया जाए। पार्थिव शरीर को भू समाधि दी सकती है।
बताते हैं, पूर्व में जिलाधिकारी सी रविशंकर के कार्यकाल में हरिद्वार शहर के उन नालों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे, जो पंपिंग स्टेशन से जुड़े हैं। उनकी पहल पर जिलाधिकारी के आदेश पर 11 कैमरे लगे थे। इन कैमरों के माध्यम से वो अपने मोबाइल पर नालों की स्थिति को चेक कर सकते हैं। यदि कोई नाला सीधा गंगा में गिर रहा होता है, तो वो सीधे मौके पर पहुंच जाते हैं। गौड़ बताते हैं, बिजली जाने की स्थिति में भी पंपिंग स्टेशन बाधित नहीं होना चाहिए, बल्कि ऑटोमेटिक जैनरेटर चालू हो जाना चाहिए। उन्होंने कई बार कुछ पंपिंग स्टेशन पर चेक किया कि बिजली गुल होने पर जेनरेटर चालू नहीं होता और दूषित पानी सीधा गंगा में बहता है।
गौड़ बताते हैं, जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गंगा संरक्षण के प्रयासों की समीक्षा के लिए हर माह में दो बार समिति की बैठक होना चाहिए, पर हरिद्वार में ऐसा नहीं हो पाता। नगर निगम की सूची के अनुसार, उनके क्षेत्र में गंगा किनारे 106 छोटे बड़े नाले हैं, जबकि नमामि गंगे की सूची में नालों की संख्या 22 बताई जाती है।
वरिष्ठ पत्रकार गौड़ का कहना है कि हो सकता है, नमामि गंगे ने बड़े नालों को सूचीबद्ध किया है। पर, उनके अनुसार हरिपुर कलां, जो देहरादून जिला में ऋषिकेश तहसील का हिस्सा है, से लेकर हरिद्वार के ज्वालापुर तक छोटे बड़े लगभग सौ नाले हैं, जो सीधे गंगा में गिर रहे हैं। कई छोटे नाले तो गंगा में गिरते हुए नहीं दिखते। उनको अक्सर शिकायतें मिलती हैं, कि हरिपुरकलां के पास सीवेज, गौशालाओं का गोबर भी गंगा में मिल रहा है। नियमित रूप से गंगा स्नान करने वाले इस क्षेत्र के लोग काफी परेशान हैं। वो इस समस्या का समाधान चाहते हैं।
गंगा में नाले गिरने के बाद भी समुचित कार्यवाही नहीं होने के विरोध में उन्होंने हरिद्वार में सिटी मजिस्ट्रेट दफ्तर के समक्ष कई बार धरना दिया। पैदल यात्रा की, सांकेतिक रूप से भिक्षा मांगी, ताकि लोग गंगा संरक्षण के लिए जागरूक हो जाएं। सरकारी सिस्टम की आंखें खुल जाएं। उन्होंने दिल्ली में जंतर मंतर पर परिवार के साथ गंगा संरक्षण के लिए धरना दिया।
रामेश्वर गौड़ बताते हैं, प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे के तहत जगजीतपुर एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) से गांव रानी माजरी (लक्सर) तक दस किलोमीटर की पाइप लाइन बिछाई गई थी, जो लोकार्पण के बाद ही ध्वस्त हो गई। यह प्रोजेक्ट लगभग 24 करोड़ का था, पर सिस्टम लापरवाह बना है। इस मामले में उनकी लड़ाई जारी है। हाल यह है कि सीधे सीधे भ्रष्टाचार के इस मामले में कार्रवाई नहीं की जा रही है। किसानों तक सिंचाई का पानी नहीं पहुंच पा रहा है और जिस पानी को खेतों में जाना था, वो गंगा में गिर रहा है। वो कहते हैं, उनका संघर्ष जारी रहेगा।