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हिंसालु-हिंसोलः पौष्टिक गुणों की खान

डॉ. राजेन्द्र डोभाल महानिदेशक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्, उत्तराखंड

यूं तो उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक फल पाये जाते हैं, मगर उनमें से एक प्रसिद्ध परम्परागत फल हिंसर है जो कि सिर्फ जंगलों तथा पहाड़ी रास्तों में स्वतः ही उगता है। उत्तराखण्ड में हिंसर का उपयोग केवल राहगीर तथा बचपन में दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में स्कूल जाने वाले बच्चों द्वारा किया जाता रहा है।हिंसर यलो रसबेरी, हिमालयन रसबेरी, एनसेलर आदि नाम से विश्व प्रसिद्ध है। हिंसर का वैज्ञानिक नाम रूबस इलिप्टिकस, जो कि रोसेसी (Rosaceae) कुल का पौधा है। यह हिमालयीय क्षेत्र में लगभग 750 से 1,800 मीटर समुद्र तल की ऊंचाई तक पाया जाता है, वैसे तो हिंसर का उदगम स्रोत साउथ एशिया है लेकिन हिंसर आस्ट्रेलिया, मॉरीसस, नेपाल, फिलिपीन्स तथा वियतनाम में भी पाया जाता है। विश्वभर मे Rosaceae कुल का Rubus सबसे बडा जेनरा है जिसमे लगभग 1500 प्रजातियां पाई जाती हैं, केवल Southwestern China मे ही विश्व की 70 प्रतिशत प्रजातियां पाई जाती है।

हिंसर में अच्छे औषधीय अवयवों के पाये जाने के कारण इसे विभिन्न रोगों के निवारण के लिये परम्परागत औषधीय के रुप मे भी उपयोग किया जाता है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान तक हिंसर का सम्पूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण तथा परीक्षण के उपरांत ही हिंसर को एटीऑक्सीडेंट, एंटीट्यूमर, घाव भरने तथा UTI संक्रमण के निवारण के लिये भी प्रयोग किया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार हिंसर की पत्तियों को Centella asiatica तथा Cynodon dactylon के साथ मिलाया जाय तो यह Peptic ulcer के निवारण के लिये बेहतर पाया जाता है। 

विभिन्न शोधों के अनुसार, हिंसर में फीनोलिक्स अवयवों तथा एसकारविक एसिड की अच्छी मात्रा के कारण इसकी प्रबल एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी पायी गयी है। Applied and Natural Resources Journal के 2016 के अध्ययन के अनुसार हिंसर मे 49-5µg/ml Antioxidants की मात्रा पाई जाती है, जिसके कारण इसे विभिन्न कैंसर सम्बन्धी रोगों के उपचार हेतु नयी औषधीय रूप में विकसित किया जा रहा है।

अच्छी फार्माकोलॉजी एक्टिविटी के साथ-साथ हिंसर में पोषक तत्वो जैसे कार्बोहाइट्रेड, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक तथा एसकारविक एसिड प्रचुर मा़त्रा मे पाये जाते हैं। विटामिन सी 32 प्रतिशत, मैगनीज 32 प्रतिशत, फाइबर 26 प्रतिशत तथा सबसे मुख्य रूप से हिंसर में low-glycemic जिसमें शुगर की मात्रा केवल 4प्रतिशत तक आंकी गयी है। औषधीय तथा पोषक से भरपूर होने के कारण हिंसर का उपयोग औद्योगिकी रूप से विभिन्न जैम, जेली, विनेगर, वाइन तथा चटनी आदि बनाने में भी किया जा रहा है। यह Malic एसिड, सिटरिक एसिड, टाइट्रिक एसिड का भी अच्छा स्रोत है। भारत व विश्व में हिंसर के एंटी फर्टीलिटी प्रभाव को देखते हुए एंटी फर्टीलिटी दवाइंया बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है।

विश्वभर में हिंसर का लगभग 578.2 टन उत्पादन किया जाता है। जिससे कि लगभग 143 टन सिर्फ रूस में उत्पादित किया जाता है। इसके अलावा 121 टन पौलेण्ड, 91.3 टन यूनाइटेड स्टेट, 68.5 टन सर्बिया तथा 30.4 टन मेक्सिको अन्य देशो द्वारा उत्पादन किया जाता है। आज विश्वभर Nutraceuticals की बढती मांग को देखते हुये उत्तराखण्ड मे पाये जाने वाले विभिन्न जंगली फलों को, जो पोषक तथा औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण Nutraceuticals industry मे बेहतर उपयोग किये जा सकते है। इससे प्रदेश की आर्थिकी तथा रोजगार के बेहतर साधन उत्पन्न हो सकते है तथा Nutraceuticals मे Value added उत्पाद के रुप मे बेहतर साधन बन सकते है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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