उत्तराखंड चुनावः यह आंकड़ा चिंता में डालता है, पर नहीं हो रही बात
यूएन एजेंसी एन्वायरन्मेंट प्रोग्राम ने हरिद्वार को लेकर किया एक ट्वीट
हरिद्वार। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में राजनीतिक दल दिनरात एक किए हैं। सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक जमकर सियासत हो रही है। पर, इस बीच हरिद्वार ही नहीं बल्कि हम सभी के लिए एक आंकड़ा चिंताजनक स्थिति पेश करता है। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी एनवायरन्मेंट प्रोग्राम ने एक ट्वीट के जरिये इस आंकड़े की ओर ध्यान दिलाया है, पर उत्तराखंड में जनहित के नाम पर राजनीति करने वालों ने कभी यहां कि नदियों, पर्यावरण की सुरक्षा को मुद्दा नहीं बनाया, जबकि उत्तराखंड के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा है, वो इसलिए क्योंकि यहां की भौगोलिक एवं जलवायु परिस्थितियां तथा कृषि एवं स्थानीय उपज समेत आजीविका से जुड़े विभिन्न संसाधन इसी पर निर्भर करते हैं।
Haridwar 🇮🇳 generates close to 11 tonnes of plastic waste as untreated waste & litter on a regular day.
Now is the time to #FaceThePlasticTruth of the reality of plastic pollution in Asia’s 🌏 most beautiful rivers.#BeatPlasticPollution for #CleanSeas: https://t.co/j1JvEvWKQF pic.twitter.com/lm8sqRnUxZ— UN Environment Programme (@UNEP) January 25, 2022
इस ट्वीट के अनुसार, हरिद्वार में नियमित रूप से प्रतिदिन में लगभग 11 टन प्लास्टिक अनट्रीटेड कूड़ा-कचरा के रूप में पैदा होता है। FaceThePlasticTruth हैशटैग के साथ कहा गया है कि अब समय आ गया है कि एशिया की सबसे खूबसूरत नदियों में प्लास्टिक प्रदूषण की वास्तविकता का सामना करने का यानी चुनौतियों से पार पाने का। #BeatPlasticPollution for #CleanSeas
हरिद्वार प्रमुख तीर्थस्थल है और यहां वर्षभर देशविदेश से यात्रियों का आवागमन रहता है। गंगा नदी की पूजा अर्चना करके, स्नान करके हम समृद्धि एवं मोक्ष का आशीर्वाद मांगते हैं, पर फिर उसमें प्लास्टिक कचरा डाल देते हैं। हरिद्वार ही नहीं, पूरा उत्तराखंड प्लास्टिक कचरे का सामना कर रहा है, लेकिन किसी भी चुनाव में यह मुद्दा नहीं बना।
तमाम सरकारी एवं गैर सरकारी अभियानों के बाद भी हम गंगा को स्वच्छ एवं निर्मल नहीं बना पाए। यही नहीं, गंगा किनारे बसे शहरों के लिए तमाम योजनाएं राज्यों एवं केंद्र सरकार के बजट से चलाई जाती हैं, पर फिर भी आंकड़े चिंताजनक स्थिति में बता रहे हैं।
नदियों में प्लास्टिक कचरे के स्रोत को समझने के लिए हाल ही में उत्तर भारत के तीन शहरों हरिद्वार, आगरा एवं प्रयागराज में एक सर्वे किया गया था। इसकी रिपोर्ट के अनुसार, 10 से 25 फीसदी प्लास्टिक कचरा न रिसाइकल होता है न ही उसका सही तरीके से निपटारा होता है। यह कचरा शहर के प्रमुख स्थानों पर फेंका जाता है जो कि मानसून की बारिश के साथ बहकर नदियों में जा मिलता है। नदियां, इन कचरों को बहाकर समुद्र तक ले जाती हैं, या यूं कहें कि ये नदियां प्लास्टिक कचरा ढोने के लिए हाइवे की भूमिका निभाती हैं। इस कचरे में प्लास्टिक के पैकेट, बोतल, चम्मच, नायलॉन के बोरे और पॉलीथिन बैग आदि शामिल हैं। हाल ही में इसको लेकर एक अध्ययन सामने आया है।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर की कुछ चुनिंदा और प्रमुख जीवनदायिनी नदियां कुल 1,404,200 टन प्लास्टिक कचरे का बोझ सहन कर रही हैं। चीन की यांगत्जे नदी के बाद भारत की गंगा नदी दुनिया में प्लास्टिक कचरे की दूसरी सबसे बड़ी वाहक है।
जुलाई, 2021 में एक रिपोर्ट में बताया गया कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने उत्तराखंड की छह प्रदूषित नदियों के पुनरूद्धार के लिए नई परियोजनाओं को मंजूरी दी। स्वीकृत की गई परियोजनाओं के तहत “इंटरसेप्शन एंड डायवर्जन और छह एसटीपी का कार्य शामिल है। परियोजना के अनुसार, प्रदूषित हो चुकी भेला, ढेला, किच्छा, कोसी, नंधौर, पिलाखर और काशीपुर नदियों को फिर से जीवंत किया जाएगा। परियोजना कुमाऊं क्षेत्र में छह प्रदूषित नदियों को कवर करेगी। शेष तीन प्रदूषित हिस्सों में से गंगा परियोजना के तहत हरिद्वार के जगजीतपुर स्थित हिस्सों को पहले से ही चालू कर दिया गया है और शेष दो हिस्सों पर नमामि गंगे परियोजना के तहत कार्य पहले से ही चल रहा है।
गंगा में प्रदूषण रोकने की परियोजना में भ्रष्टाचार
गंगा में प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारी गंभीरता का एक ताजा नमूना है, नमामि गंगा का एक प्रोजेक्ट, जो प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे के तहत जगजीतपुर एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) से गांव रानी माजरी (लक्सर) तक दस किलोमीटर की पाइप लाइन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका ऑनलाइन लोकार्पण किया, लेकिन लगभग 24 करोड़ की यह परियोजना अपने शुरुआती दिनों में ही ढह गई, पर अफसर दोषियों पर कार्रवाई करने की बजाय जांच के बाद जांच के खेल होता रहा। यह स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस ड्रीम प्रोजेक्ट की है, जिसके तहत गंगा नदी को स्वच्छ बनाने की कवायद केंद्र से लेकर राज्य तक है।
यह मामला उठाने वाले वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि डोभाल बताते हैं, वर्ष 2017 में 24 करोड़ रुपये की धनराशि इस योजना के लिए आवंटित की गई थी। पाइप लाइन बिछाने की यह योजना वर्ष 2020 में पूरी हो गई, लेकिन योजना का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल से पहले ही ढह गया। उनके पास इस बात के पुख्ता साक्ष्य हैं कि योजना का स्ट्रक्चर सही तरीके से खड़ा नहीं किया गया। पाइप लाइन को पिलर पर से आगे बढ़ाना था, पर यहां ऐसा नहीं किया गया।
बताते हैं, जांच दल ने स्थलीय निरीक्षण किया था। हालांकि अभी जांच रिपोर्ट नहीं मिली। पर, यहां तो साफ तौर पर ढही हुई पाइप लाइन दिख रही है, जो साफ तौर पर भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है। पर, यह समझ से परे है कि एक साल से किसी भी जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह पूरे 24 करोड़ की पाइप लाइन का मामला है। लोकार्पण के बाद से इसमें एसटीपी से निकला शोधित पानी नहीं बहा। अगर, यह योजना सही तरीके से बनती तो दस गांवों की खेती को बड़ा फायदा मिलता।
एनजीटी के आदेश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने करीब पांच साल पहले उत्तराखंड में हरिद्वार-ऋषिकेश से उत्तरकाशी तक गंगा किनारे प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। गंगा किनारे प्लास्टिक के कैरी बैग, प्लेट, चम्मच और गिलास के निर्माण, भंडारण, बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाई थी। आदेश का उल्लंघन करने पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने उत्तराखंड सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि गंगा नदी या इसकी सहायक नदियों में बिना शोधन के कचरा प्रवाहित नही किया जाए और राज्य में पर्याप्त संख्या में सीवेज शोधन संयंत्र बनाए जाएं। हर निगम स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम के साथ ही निगरानी प्रकोष्ठ का गठन करने के भी निर्देश दिए गए हैं।
चुनाव में नहीं बनता मुद्दा
हरिद्वार में वरिष्ठ पत्रकार मेहताब आलम का कहना है, चुनाव में गंगा की स्वच्छता एवं पर्यावरण मुद्दा नहीं है। यह किसी भी राजनीतिक दल के चुनावी एजेंडे में प्रमुखता से नहीं है, जबकि गंगा नदी का संरक्षण और हरिद्वार शहर का विकास एकदूसरे के पूरक हैं। कुंभ आयोजन में हजारों करोड़ों का बजट आता है। यदि बजट का सही तरीके से स्थाई प्रकृति के कार्यों एवं गंगा संरक्षण के लिए इस्तेमाल होता तो स्थिति यह नहीं होती और आंकड़ा पर्यावरण के लिहाज से सुखद होता।
” इस बार भी उन्हीं पुराने मुद्दों , जैसे- शहर का विकास, स्वास्थ्य एवं शिक्षा व्यवस्था में सुधार…, पर चुनाव लड़ा जा रहा है। ये मुद्दे हमेशा से रहे हैं, समाधान की ओर नहीं बढ़े, मेहताब आलम बताते हैं। “