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लोककथाओं में चावलः अकाल में चीटियों ने बोया धान और लहलहाने लगी फसल

चिड़िया अपनी चोंच में लेकर आई थी धान का बीजः फिलीपीन की लोककथा

न्यूज लाइव ब्लॉग

चावल दुनियाभर में भोजन में प्रमुख रूप से शामिल होता है। चावल की उत्पत्ति कैसे हुई यानी इसके इतिहास के बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारियां मिलती हैं। अभी हम चावल के इतिहास पर बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि चावल के इर्द गिर्द घूमती लोक कथाओं के बारे में चर्चा करने वाले हैं। हमें विश्वभर में चावल से जुड़ी लोककथाएं, दंतकथाएं और कहानियां पता चली हैं।

दुनियाभर में चावल से संबंधित लोककथाएं बताती हैं, कैसे चावल को कई समाजों के सांस्कृतिक ताने-बाने में बुना गया है। ये कहानियां कृतज्ञता, विनम्रता और प्रकृति के उपहारों के जिम्मेदार प्रबंधन के महत्व पर फोकस करती हैं।

“चावल और चींटियाँ” अफ्रीकी लोककथाओं में पाया जाने वाला एक सामान्य विषय है, जो चावल की खेती के संदर्भ में सहयोग, समुदाय और कड़ी मेहनत के मूल्य को दर्शाता है। कहानियाँ, अक्सर क्षेत्र और समुदाय के अनुसार अलग-अलग होती हैं, लेकिन मूल संदेश एक समान रहता है। यहां ऐसी ही एक अफ़्रीकी लोककथा का जिक्र किया गया है-

एक बार की बात है, अफ़्रीका के एक छोटे से गाँव में क्वामे नाम का एक किसान रहता था। क्वामे पूरे गाँव में मेहनती और दयालु होने के लिए जाने जाते थे। उनकी सबसे बेशकीमती संपत्ति उनका चावल का खेत था, जिसकी वो साल-दर-साल लगन से देखभाल करते थे।

एक सीज़न में, जब क्वामे अपना धान बोने की तैयारी कर रहे थे, गाँव में भयंकर सूखा पड़ गया। बारिश नहीं हुई और धान के लहलहाते खेत सूखने लगे। क्वामे, अन्य किसानों की तरह, अकाल को लेकर चिंतित थे। उन्होंने गांव के बुजुर्ग नाना क्वाकू से सलाह लेने का फैसला किया।

नाना क्वाकू बुद्धिमान थे और उन्होंने कई मौसम आते और जाते देखे थे। उन्होंने क्वामे को गाँव में पीढ़ियों से चली आ रही एक प्राचीन कथा के बारे में बताया। किंवदंती के अनुसार, पास के जंगल में रहने वाली चींटियाँ अपने परिश्रम और कठिन समय के लिए भोजन जमा करने की क्षमता के लिए जानी जाती थीं। नाना क्वाकू ने सुझाव दिया कि क्वामे इन चींटियों की मदद लें।

नाना क्वाकू की सलाह मानकर क्वामे जंगल में चले गए। वहाँ, उसे एक बड़ा एंट हिल (बांबी) मिला, जहां चीटियां मेहनत करती दिखाई दीं। क्वामे वहां पहुंचे और चींटियों के नेता से बात की और गांव की गंभीर स्थिति के बारे में बताया।

चींटियों की नेता, एक बुद्धिमान और बुजुर्ग चींटी थी, जो क्वामे और उनके साथी ग्रामीणों की मदद करने के लिए सहमत हो गईं। चींटियों ने स्वयं को कुशलतापूर्वक व्यवस्थित किया। उन्होंने गाँव से चावल के बीज इकट्ठा करने के लिए दल भेजा और फिर क्वामे के खेत में बीज बोने का काम शुरू किया।

दिन पर दिन, चींटियाँ अथक परिश्रम करती थीं, गाँव से चावल के बीज लाती थीं और ध्यान से उन्हें सूखी मिट्टी में रोपती थीं। क्वामे ने आश्चर्य से देखा, जब चींटियाँ अविश्वसनीय टीम वर्क और समर्पण का प्रदर्शन करते हुए एक साथ मिलकर काम कर रही थीं।

जैसे-जैसे दिन बीतते गए, ग्रामीणों ने देखा कि चावल के खेत बारिश के अभाव में भी चमत्कारिक रूप से लहलहाने लगे थे। चींटियों के मेहनती प्रयासों की बदौलत चावल के पौधे लंबे और स्वस्थ हो गए।

जब फसल का मौसम आया, तो चावल के खेत पके, सुनहरे अनाज से भरपूर थे। क्वामे और ग्रामीण अपनी भरपूर फसल का जश्न मनाने के लिए एकत्र हुए और उन्होंने चींटियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।

उस दिन के बाद से, गाँव क्वामे और चींटियों की कहानी को याद करते हैं, और इसे कड़ी मेहनत, एकता और मनुष्यों और प्रकृति के बीच परस्पर निर्भरता को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं।

फिलीपीन की लोककथा

“चावल की उत्पत्ति” को लेकर फिलीपीन में लोकप्रिय कथा है, जो बताती है कि चावल की खेती कैसे अस्तित्व में आई। यह एक ऐसी कहानी है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है, और फिलीपींस के विभिन्न क्षेत्रों में इसकी कहानी में भिन्नताएं हैं।

कहानी फिलीपींस के प्राचीन काल की है, जब चावल के बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी।

बहुत समय पहले, फिलीपींस में, अपोनिबोलिनायेन (Aponibolinayen) और गिमोकुदान (Gimokudan) नाम का एक गरीब, बुजुर्ग जोड़ा रहता था। वो अपने गाँव के बाहरी इलाके में एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। अपनी गरीबी के बावजूद, अपने पड़ोसियों के प्रति दयालुता और उदारता के लिए जाने जाते थे।

एक दिन, जब अपोनिबोलिनायेन अपने घर की सफाई कर रही थीं, उन्होंने पास के एक पेड़ पर चमकदार पंखों वाले एक रहस्यमय पक्षी को देखा। इस पक्षी को सरिमनोक ( Sarimanok) के नाम से जाना जाता था, जो अत्यधिक सुंदरता और जादुई प्राणी था। अपोनिबोलिनायेन ने आश्चर्य से देखा जब सरिमनोक ने अपनी चोंच से चावल का एक दाना जमीन पर गिराया।

उत्सुकतावश अपोनिबोलिनायेन ने चावल का दाना उठाया और अपने पति गिमोकुदान को दिखाया। उन्होंने इसे अपनी झोपड़ी के पास लगाने का फैसला किया। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि चावल तेजी से और प्रचुर मात्रा में उगा, जिससे उन्हें भरपूर फसल मिली।

इस चमत्कारी चावल की बात पूरे गाँव में फैल गई, और जल्द ही, ग्रामीण अपोनिबोलिनायेन और गिमोकुदान के पास आए और अपने खेतों में बोने के लिए चावल के कुछ दाने माँगने लगे। बुजुर्ग दंपत्ति ने उदारतापूर्वक अपना नया खजाना साझा किया, और जल्द ही, पूरा गांव चावल उगाने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, चावल की खेती फिलीपींस के लोगों के लिए जीवन का एक तरीका बन गई, और यह उनकी जीविका का प्राथमिक स्रोत बन गई। चावल बोने, काटने और पकाने का ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा।

अपोनिबोलिनायेन और गिमोकुदान की कहानी और सरिमनोक के जादुई चावल ने दयालुता, साझा करने और मनुष्यों और प्राकृतिक दुनिया के बीच गहरे संबंध के महत्व की याद दिलाई। फिलीपींस में चावल जीवन, जीविका और समुदाय का प्रतीक बन गया।

यह कहानी फिलीपींस में चावल के गहरे सांस्कृतिक और कृषि महत्व को भी दर्शाती है, जहां चावल की खेती सदियों से इतिहास और परंपराओं का एक केंद्रीय हिस्सा रही है। यह कहानी मुख्य भोजन के रूप में चावल की भूमिका का महत्व बताती है, जो लोगों को पोषण देता है और उनके जीवन के तरीके को बनाए रखता है।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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