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कबीले में चुनाव-4ः बड़े महाराज की भट्टी पर पानी फेंक गए बड़कू महाराज

जैसे-जैसे कबीले में चुनाव के लिए सियासी माहौल बदलता जा रहा है, वैसे ही ज्यादा से ज्यादा सूचनाओं के लिए खरगोश और हिरन की उत्सुकता भी बढ़ रही है।

चौथे दिन की मुलाकात में हिरन ने वही पुराना सवाल किया, आज क्या खबर है दोस्त।

खरगोश बोला, बड़े महाराज की सुलगाई भट्टी में पानी फेंककर चले गए बड़कू महाराज।

हिरन बोला, मैंने सुना था बड़कू महाराज ने बड़े महाराज को चुनौती दी है। कह गए, कहीं भी आकर बहस करो, तुमने क्या किया कबीले के लिए और हमने क्या किया।

खरगोश बोला, शाबास, तुम भी सूचनाएं इकट्ठी कर रहे हो। सियासत पर निगाह रखना जरूरी है। निगाह रखोगे तो यह तुम पर हावी नहीं हो पाएगी।

हिरन बोला, तुम मुझे बड़कू महाराज के मन की बात बताओ।

खरगोश बोला, वो भ्रमणकारी हैं। यह यंत्र उनके मन तक मुश्किल से ही पहुंच पाएगा। फिर भी कोशिश करता हूं।

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खरगोश ने यंत्र को हिलाया और फिर कान पर लगाया। अचानक से खरगोश के चेहरे पर खुशी तैरने लगी।

हिरन बोला, लगता है काम हो रहा है।

खरगोश ने कहा,  बड़कू महाराज के मन की बात तो ज्यादा नहीं पढ़ पाया, पर उनके गुट की चाल समझ में आ गई। तुम समझो, वो बड़े महाराज पर भारी पड़ गए। तुम तो जानते हो, बड़े महाराज बहुत चतुर हैं। उनकी एक-एक बात के कई मतलब होते हैं। वो पूरे कबीले में घूम-घूमकर गुणी महाराज के विरुद्ध माहौल बना रहे हैं।

इसके लिए उन्होंने बड़बोले महाराज को खूब उकसाया। जैसे-जैसे बड़बोले महाराज के बोल फूटते, गुणी महाराज का गुट बेचैन हो जाता। गुणी महाराज, केवल बड़बोले महाराज से   सेनहीं औरों से भी दुखी हैं। ये और यानी उनके अपने गुट से ही हैं। तुम उन सबको जानते हो, जो पर्दे के पीछे माहौल खेल कर रहे हैं।

बड़े महाराज ने अपने फायदे के लिए उसी बगावत और बागियों को हथियार बनाया, जो कभी उनको नुकसान पहुंचा चुके हैं। वो बार-बार कहते हैं, बागियों को माफ नहीं करेंगे। बागियों को अपने गुट में नहीं आने देंगे।

इस पर बड़बोले महाराज को गुस्सा आ जाता है, वो यही भूल जाते हैं कि वो बगावत नहीं, सियासत करके आए थे। सियासी लोगों के लिए बगावत कोई बुरी बात नहीं होती है। सियासत में उठापटक, उथलपुथल, भागमभाग चलती रहती है। यहां आगे बढ़ने के लिए दूसरों को धक्का देने के अंक मिलते हैं। सियासत वो खेल है, जहां कोई नियम नहीं है और न ही कोई अपना-पराया। वक्त पर दोस्त को दुश्मन बना दो, दुश्मन को दोस्त बना लो। सियासत में सबकुछ स्वार्थ के लिए, यहां परमार्थ की कोई जगह नहीं है।

बड़े महाराज ने बड़बोले महाराज को इतना अस्थिर कर दिया कि वो खुद को ही कोसने लग गए। उनसे पहले बदलू महाराज अपने पुत्र के साथ गुणी महाराज को छोड़कर बड़े महाराज की शरण में आ गए थे। इससे गुणी महाराज के चुनावी दस्ते ने भगदड़ को नुकसान से जोड़ लिया। उनको लगा कि अपना जहाज डूबने की तैयारी कर रहा है।

अभी कुछ हुआ नहीं है, पर बड़े महाराज को तो भट्टी पर चढ़े खाली बरतन में उस समय तक छोंक लगाने में महारत है, जब तक कि बरतन ही जलकर गंध न छोड़ने लग जाए। इस गंध से बड़े महाराज को एक फायदा हुआ, उनका चुनावी दस्ता, जो आधी नींद में था, अचानक से जाग उठा। उन्होंने अपने दस्ते को नींद से उठाया ही नहीं, बल्कि उसको विश्वास भी दिलाया कि गद्दी इस बार हमारी होगी। पर, राजा तो मैं ही बनूंगा।

बड़कू महाराज को जैसे ही यह पता लगा, वो सीधे हमारे कबीले में पहुंच गए। उन्होंने बड़े महाराज के खेल को समझ लिया है। उन्होंने बड़बोले महाराज को साथ बैठाकर अपने चुनावी दस्ते को यह संदेश दिया कि हमारे यहां कोई भगदड़ नहीं मचने वाली। बड़बोले महाराज कोई बगावत नहीं करेंगे, क्योंकि हमने इनको ऐसा कोई मौका ही नहीं दिया कि ये हमें बुरा भला कहकर भागमभाग करें। वो समझ गए थे कि बड़बोले महाराज को किसी मौके की तलाश है, जिसको आधार बनाकर वो अपना खेल करना चाह रहे थे।

वहीं, बड़कू महाराज ने बड़े महाराज को चुनौती दे डाली कि हमारे दस्ते के किसी भी युवा से कभी भी, कहीं भी बहस कर लो, कि तुमने क्या किया और हमने क्या किया। ऐसा करके उन्होंने अपने चुनावी दस्ते का मनोबल बढ़ा दिया। जो अभी तक निराश थे, उदास थे, उनको पूरे जोश से चुनावी रण के लिए तैयार कर दिया।

अभी चलता हूं, मुझे लक्कड़बग्घे को यह सब बताना होगा।

जारी…

*यह कहानी काल्पनिक है, इसका किसी से कोई संबंध नहीं है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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