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कहानीः ज्यादा समझदार होते हैं बच्चे

यह लघु कहानी बताती है कि बच्चे कभी-कभी बड़ों से ज्यादा समझदारी का परिचय देते हैं। महान लेखक लियो टॉल्स्टॉय की यह दिलचस्प कहानी है।टॉल्स्टॉय ने कई अच्छी कहानियां लिखीं। उनकी हर कहानी में नैतिकता का संदेश है। प्रस्तुत है उनकी कहानियों में से एक का हिन्दी अनुवाद-रूस में बारिश का मौसम था। एक गांव में सड़क पर बारिश का पानी बह रहा था। थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी। सड़क पर बह रहे पानी में दो छोटी लड़कियां खेल रही थीं। यह त्योहार का समय था। बच्चों ने नये कपड़े पहने थे। इनमें एक का नाम मलाशा और दूसरी का नाम अकुल्या था। मलाशा छोटी थी।मलाशा पानी पर उछल कूद कर रही थी। इससे गंदे पानी की छींटों से अकुल्या के कपड़े गंदे हो गए।

उसी समय अकुल्या की मां वहां से होकर जा रही थी। उसकी मां ने अपनी बेटी की पोशाक को देखा तो काफी गुस्सा आया। उन्होंने अपनी बेटी को डांटा। उन्होंने उससे पूछा, तुम्हारी पोशाक को किसने गंदा किया है। अकुल्या ने कहा, मलाशा ने मेरी ड्रेस को गंदा किया है। गुस्से में अकुल्या की मां ने मलाशा को पकड़ लिया और उसकी पीठ पर दो तीन हाथ जड़ दिए। मलाशा ने जोर से रोना शुरू कर दिया। मलाशा का घर करीब था। मां ने मलाशा के रोने की आवाज सुनी तो वह वहां पहुंची। उन्होंने मलाशा से पूछा, तुम क्यों रो रही हो। मलाशा ने कहा, अकुल्या की मां ने मुझे मारा है। 

मलाशा की मां ने अकुल्या की मां से नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने उनको बुरा भला कहना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में दोनों के बीच जोर-जोर आवाज में विवाद शुरू हो गया। उनका शोर लगातार बढ़ने लगा। आस पड़ोस के लोग भी वहां पहुंच गए। कुछ लोग मलाशा की मां की ओर से और इनमें से कुछ अकुल्या की मां की ओर से बोलने लगे। 

धीरे-धीरे आसपास के घर दो ग्रुप में बंट गए। घरों से पुरुष भी लड़ाई में शामिल हो गए। ऐसा लग रहा था कि यह झगड़ा कभी खत्म नहीं होगा। उसी समय अकुल्या की दादी घर से बाहर आईं। उसने पुरुषों और महिलाओं से लड़ाई खत्म करने को कहा। उन्होंने कहा कि यह त्योहार का समय है। आप लोगों को खुशियां मनानी चाहिएं, न कि एक दूसरे के लिए गलत शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। लेकिन किसी ने भी उनकी बातों को नहीं सुना।

इसी बीच मलाशा और अकुल्या अपने विवाद के बारे में भूल गए। वे फिर से दोस्त बन गए। वे लड़ने वाली भीड़ से दूर चले गए। उन्होंने सड़क पर बह रहे पानी में कागज की नावों को तैराना शुरू कर दिया। अब बूढ़ी महिला ने सभी से कहा- देखो, उन बच्चों को। वे अपने झगड़े को भूल गए हैं। उन्होंने फिर से खेलना शुरू कर दिया है। वे फिर से दोस्त बन गए हैं। लेकिन आप अभी भी झगड़ा कर रहे हो। क्या आप अपनी इस प्रवृत्ति से शर्मिंदा नहीं हैं?  सभी लोगों ने दोनों छोटी लड़कियों की ओर देखा और अपने झगड़े पर शर्मिंदा होकर वापस अपने घरों की ओर लौट गए। बच्चे बहुत आसानी से भूल जाते हैं और माफ कर देते हैं। बड़ों ने छोटी लड़कियों से यह सबक सीखा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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