ElectionFeaturedPoliticsUttarakhand

सवाल तो बनता है, क्या सच में मान गए हरक सिंह ?

देहरादून। उत्तराखंड की सियासत में चुनाव से पहले दो बड़े नेताओं की नाराजगी की खबरें तेजी से फैलीं। और फिर, अपनी पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात के बाद वो बहुत खुश दिखाई दिए। इन दोनों नेताओं के नाम दबाव की राजनीति से जोड़े जाते हैं। उत्तराखंड की राजनीति में ये दो बड़े नाम हैं, कांग्रेस के हरीश रावत और भाजपा के हरक सिंह रावत।
उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अपने विधानसभा क्षेत्र कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए दबाव बनाए हैं। हरक सिंह यह मैसेज दे रहे हैं कि उनको अपनी विधानसभा क्षेत्र की कितनी चिंता है।
पर, बात यही पर पूरी नहीं होती। आगे की बात जानने के लिए हमें हरक सिंह रावत के सियासत के तरीके को समझना होगा। यह उनके विधानसभा चुनाव में सीटों के ट्रेंड से काफी हद तक स्पष्ट होता है। उन्होंने उत्तराखंड में 2002 का चुनाव लैंसडौन, 2007 में फिर लैंसडौन और 2012 में रुद्रप्रयाग व 2017 का चुनाव कोटद्वार सीट से लड़ा।
2002 में कांग्रेस के टिकट पर लैंसडौन सीट पर हरक सिंह रावत ने भाजपा के भारत सिंह रावत को 468 वोट से हराया। 2007 में कांग्रेस के टिकट पर लैंसडौन सीट पर हरक सिंह ने भाजपा के भारत सिंह रावत को 3818 वोट से हराया। एक ही सीट पर लगातार दो बार विजय और वो भी ज्यादा वोटों के अंतर से, स्पष्ट करता है कि हरक सिंह के कार्यकाल को लोगों ने पसंद किया था।
वहीं, 2012 में हरक सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर रुद्रप्रयाग सीट पर भाजपा के मातबर सिंह कंडारी को 1326 वोट से हराया। 2017 में उन्होंने रुद्रप्रयाग सीट छोड़कर भाजपा के टिकट पर कोटद्वार में चुनाव लड़ा और कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी को 11,318 वोट से हराया था।
सवाल यह है कि क्या हरक सिंह रावत अपना अगला चुनाव कोटद्वार से ही लड़ेंगे या फिर किसी और सीट से। अभी तक के ट्रेंड को देखकर यह सवाल तो बनता है। हालांकि उनके कोटद्वार सीट छोड़ने की चर्चा हो रही है।
माना जा रहा है कि हरक सिंह डोईवाला या श्री केदारनाथ या फिर लैंसडौन सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनकी नाराजगी को इनमें से किसी एक सीट पर टिकट की इच्छा के तौर पर भी देखा गया है। पिछले दिनों डोईवाला विधायक एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुबानी जंग के समय से ही यह चर्चा जोरों पर है कि हरक सिंह डोईवाला सीट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।
रही बात, कोटद्वार में मेडिकल कालेज को लेकर उनकी नाराजगी की, तो वो इसके सहारे यह मैसेज भी देना चाहते हैं कि हरक सिंह को अपने विधानसभा क्षेत्र की बहुत चिंता रहती है और जनता के लिए वो कैबिनेट मंत्री के पद से भी इस्तीफा दे सकते हैं। मीडिया के जरिये उनके इस्तीफे की खबर जितनी तेजी से फैली, उतना ही उनका यह मैसेज भी।
इस्तीफे की खबर मीडिया में तेजी से प्रसारित हुई और हरक सिंह ने अधिकारिक रूप से कोई वक्तव्य जारी नहीं किया। जबकि राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में अपनी बात कहने के लिए किसी प्रेस कान्फ्रेंस या विज्ञप्ति लिखने या मीडिया के दफ्तर दर दफ्तर जाने की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया पर एक लाइन लिखकर भी अटकलों को रोका जा सकता था। पर, हरक सिंह रावत ने इन खबरों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, इससे साफ है कि वो त्यागपत्र वाली खबरों को बिना किसी अधिकारिक पुष्टि के फैलने देना चाहते थे।
दरअसल, हरक सिंह रावत अपनी दबाव की राजनीति के तहत चुनाव के दौर में भाजपा और प्रदेश सरकार को बार-बार असहज करना चाहते हैं। उनके पूर्व के बयान इस बात की पुष्टि करते हैं- कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने 100 यूनिट फ्री बिजली की घोषणा की, वो भी मुख्यमंत्री की किसी सहमति के बिना।
उन्होंने अपने कार्यकाल को सबसे ज्यादा निराशाजनक करार देकर एक बार फिर सरकार पर निराशा साधा।उन्होंने कहा था कि इस सरकार में काम हुए नहीं है और किसी ने करने भी नहीं दिए हैं।
कैबिनेट मंत्री रावत को लेकर उस समय भी बहुत चर्चाएं हुईं, जब यशपाल आर्य कांग्रेस में वापस लौटे थे। उनके और कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह के एक ही विमान से दिल्ली जाने की खबर ने भी सियासी गलियारों में चर्चाएं बटोरी थी। इन खबरों से भाजपा असहज हुई।
इस्तीफे की खबरों के बाद, अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ बैठक में हरक सिंह की नाराजगी दूर हो गई। वो इतना प्रसन्न हो गए कि धामी की जमकर प्रशंसा की। हरक ने धामी को करुणावतार बता दिया। यह भी कहा कि उत्तराखंड को पहली बार एक मानवीय दिल वाला सीएम मिला है। उनका एक वीडियो मीडिया में चल रहा है, जिसमें वो कह रहे हैं, छोटे भाई पुष्कर को मेरा आशीर्वाद है कि उनके नेतृत्व में भाजपा पूरे बहुमत से फिर सरकार बनाए। पुष्कर ने उनके हर बुरे वक्त में एक छोटे भाई की तरह उनका पूरा सहयोग किया। उनके बारे में कोई कुछ भी कहे पर उनका 35 साल का सियासी अनुभव कहता है कि वे कहीं गलत नहीं है।
हरक सिंह का यह नया रूप सियासी गलियारों में खासी चर्चा में है। इस सवाल पर खूब चर्चा हो रही है कि क्य़ा हरक सिंह अपनी इस नई बात पर कब तक कायम रहेंगे। या फिर, किसी और बात पर उनकी नाराजगी मीडिया में सुर्खियां बनेंगी।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button