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खजाना पोषण काः बड़े काम के होते हैं अरबी और उसके पत्ते

यदि हम अपने आसपास ध्यान दें तो दैनिक आवश्यकता के लगभग सभी पोषक तत्व सामान्य वनस्पतियों से ले सकते हैं। भारत में ऐसे बहुत सारे पौधे पाए जाते हैं, जिनके कंद, पत्ते, जड़ भी खाए जाते है, इन्हीं में से एक है अरबी
अरबी के हर भाग को खाया जा सकता है। अरबी का वैज्ञानिक नाम कोलोकेसिया एस्क्युलेंटा (Colocasia Esculenta ) है। आमतौर पर इसकी खेती कंद के लिए की जाती है, जिसकी सब्जी बनती है। अरबी के पत्तों को कोलोकेसिया लीव्स (Colocasia leaves) या टारो लीव्स (Taro leaves) के नाम से भी जानते हैं।
अरबी की तासीर ठण्डी होती है। इसमें भरपूर मात्रा में स्टार्च पाया जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर इसके पत्तों से स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। अरबी का कंद कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसके कंदो में स्टार्च की मात्रा आलू तथा शकरकंद से कहीं अधिक होती है।
इंडिया साइंस वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अरबी की पत्तियों में विटामिन ए ,खनिज लवण जैसे फास्फोरस, कैल्शियम व आयरन और बीटा कैरोटिन पाया जाता है। इसके प्रति 100 ग्राम में 112 किलो कैलोरी ऊर्जा, 26.46 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 43 मिली ग्राम कैल्शियम, 591 मिली ग्राम पोटेशियम पाया जाता है। अरबी की फसल को गर्म तथा नम जलवायु और 21 से 27 डिग्री सेल्सियस तापक्रम की आवश्यकता होती है।
अधिक गर्म व अधिक सूखा मौसम इसकी पैदावार पर विपरीत प्रभाव डालता है। जहां पाले की समस्या होती है, वहां यह फसल अच्छी पैदावार नहीं देती है।
जिन स्थानों पर औसत वार्षिक वर्षा 800 से 1000 मिलीमीटर तथा समान रूप से होती है, वहाँ इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
छायादार स्थान में भी पैदावार अच्छी होती है, इसलिए फलदार वृक्षों के साथ अन्तवर्तीय फसलों के रूप में अरबी उगाई जा सकती है।
इसकी नर्म पत्तियों से साग तथा पकोड़े बनाए जाते हैं। हरी पत्तियों को बेसन और मसाले के साथ रोल के रूप में भाप से पका कर खाया जाता है, जिसे पतौड़ कहा जाता है। पत्तियों के डंठल को टुकड़ों में काटकर तथा सुखा कर सब्जी बनाई जाती है।

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नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (बागवानी), डॉ. आनंद कुमार सिंह के अनुसार, ‘अरबी के हरे पत्ते β-कैरोटीन, एस्कॉर्बिक एसिड, फोलिक एसिड, राइबोफ्लेविन, बी-विटामिन, विटामिन ए, β-साइटोस्टेरॉल और स्टेरॉयड जैसे खनिज और कैल्शियम, पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम का एक समृद्ध स्रोत हैं।
अरबी के पत्तों में फ्लेवोनोइड्स, फाइटोकैमिकल्स और एंथोसायनिन होते हैं।
भारत में अरबी के पत्तों के औषधीय गुणों पर बड़े पैमाने पर शोध किया गया है। अरबी के पौधे के कंद, पत्ते,डंठलों में विभिन्न औषधीय गुण होते हैं। इसके पत्तों में फ़िनोलिक फ्लेवोनोइड वर्णक एंटीऑक्सिडेंट जैसे c-कैरोटीन और क्रिप्टोक्सैंथिन, विटामिन ए के साथ होते हैं’।
एक सौ ग्राम ताज़ा अरबी के पत्तों में दैनिक आवश्यकता के लिए 4825 IU या 161% विटामिन ए पाया जाता है।
अरबी के पत्‍तों में मौजूद थियोनिन नामक एमिनो एसिड की अच्‍छी मात्रा होती है। यह कोलेजन और इलास्टिन के गठन में मदद करता है। स्वस्थ त्वचा और दृष्टि के लिए इन यौगिकों की आवश्यकता होती है।
नमक के साथ अरबी के पत्तों के डंठल निकालने का उपयोग ग्रंथियों में सूजन ठीक करने के लिए किया जाता है।
सौ ग्राम अरबी आहार फाइबर की दैनिक आवश्यकता का 4.1% या 11% प्रदान करती है। इसके पत्ते फाइबर की उच्‍च मात्रा होने के कारण पाचन तंत्र में बहुत ही मदद करते हैं। इसमें मौजूद फाइबर मल की भारीता को बढ़ाता है और शौच को सामान्‍य करता है।
यह कुछ पाचन समस्‍याओं जैसे पेट का दर्द, आंतों की ऐंठन और कब्‍ज आदि को रोकता है। इसके अलावा यह पेट में होने वाले कोलन कैंसर की संभावना को भी कम करता है।
आयरन अनिवार्य खनिजों में से एक है, क्‍योंकि यह लाल रक्‍त कोशिकाओं के विकास में मदद करता है। लाल रक्‍त कोशिकाएं शरीर के अंगों में ऑक्‍सीजन परिवहन का कार्य करती हैं।
जिन लोगों को खून की कमी होती हैं उनके लिए अरबी के पत्ते फायदेमंद होते हैं। क्‍योंकि इसमें आयरन की उच्‍च मात्रा होती है।
अरबी के पत्तों में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है। यह रक्तवाहिकाओं के संकुचन और विश्राम को नियंत्रित करता है। यदि परिसंचरण तंत्र अच्‍छी तरह से चलता है तो रक्‍तचाप को सामान्‍य स्‍तर पर नियंत्रित किया जा सकता है।
इस तरह अरबी के उपयोग से आप उच्‍च रक्‍तचाप के दुष्प्रभाव कम कर सकते है, क्‍योंकि यह न केवल प्रचूर मात्रा में आयरन उपलब्‍ध कराता है, बल्कि थकान, कमजोरी जैसे अन्‍य लक्षणों को भी रोकने में भी सहायता प्रदान करता है।
इसमें कुछ महत्वपूर्ण खनिज जैसे जस्ता, कैल्शियम, मैग्नीशियम, तांबा, लोहा और मैगनीज की प्रचूर मात्रा पाई जाती है। ताजे और पके हुए अरबी के पत्तों का सेवन कैंसर के प्रभाव को कम कर सकता है। ऐसा उनमें मौजूद विटामिन सी की अच्‍छी उपस्थिति के कारण होता है।
विटामिन सी एक सुरक्षात्‍मक और शक्तिशाली एंटीऑक्‍सीडेंट है, जो सामान्‍य बीमारियों जैसे सर्दी, खांसी और कुछ प्रकार के कैंसरों को रोक सकता है।
हड्डियों और जोड़ों के उचित विकास के लिए भी विटामिन सी आवश्‍यक होता है। यह शरीर के समग्र स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने के साथ ही प्रतिरक्षा तंत्र को भी बढ़ाता है।
अरबी के पत्तों में विटामिन ए की मौजूदगी आंखों के लिए बहुत प्रभावी, औषधीय-पौष्टिक खाद्य पदार्थ बना देती है। नियमित रूप से अरबी के पत्तों का उपभोग मायोपिया, अंधापन और मोतियाबिंद जैसी समस्‍याओं को रोकने में सहायक होता है।
अरबी के पत्तों में एमिनो एसिड की अच्छी मात्रा होती है। एमिनो एसिड पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या को बढ़ाने में मदद करते हैं।
अरबी के पत्तों में वसा की मात्रा बहुत ही कम होती है और प्रोटीन की मात्रा उच्च होती है।  अरबी के पत्तों का नियमित रूप से प्रयोग करने से अपना वजन कम कर सकते हैं।
अरबी में फोलेट एसिड की उच्‍च मात्रा होती है। यह भ्रूण, मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए आवश्‍यक होता है।
गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जाती है कि अरबी के पत्तों का सेवन करने से पहले इन्‍हें अच्छी तरह से पका लेना चाहिए।
अरबी की कम लोकप्रियता का एक कारण यह है कि इसमें कैल्शियम ऑक्सालेट क्रिस्टल जैसे पोषण विरोधी कारक होते हैं, जो खाना पकाने के दौरान ठीक से संसाधित नहीं होने पर जलन पैदा करेंगे।
भारत में जन-जन के लिए पर्याप्त पोषण उपलब्ध कराने की दृष्टि से विभिन्न पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर अरबी के उपयोग को लेकर व्यापक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। (इंडिया साइंस वायर)

 

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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