
गढ़वाल के श्रद्धालु की प्रार्थना पर जाखराजा जी ने नेपाल में कराई थी बारिश
गुप्तकाशी से लगभग नौ किमी. दूरी पर है श्रीजाख देवता का मंदिर
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
देवशाल गांव स्थित जाखराजा जी के मंदिर में बुधवार को जामू गांव के लोग पूजा करने आए। उन्होंने श्री जाख देवता के समक्ष गेहूं की नई फसल का भोग अर्पित किया। ग्रामीण कहते हैं, जाखराजा उनके गांवों की रक्षा करते हैं। जब भी किसानों ने उनके समक्ष बारिश के लिए प्रार्थना की, उनकी मुराद जरूर पूरी हुई।
देवशाल गांव रुद्रप्रयाग जिला में है। यह श्रीकेदारनाथ मार्ग पर गुप्तकाशी से लगभग आठ किमी. की दूरी पर है। यहां मंदिर में 14 गांवों- नारायणकोटि, देवशाल, कोठेड़ा, त्यूड़ी, बणसूं, खुमेरा, भैंसारी, ह्यूंण, नाला, रुद्रपुर, गुप्तकाशी, देवर, सांकरी, सैमी के लोग वर्ष में दो बार गेहूं और धान की नई फसल का भोग चढ़ाने आते हैं।

“करीब 15 साल पहले की बात थी, हम सभी ग्रामीण जाखराजा जी के समक्ष बारिश की प्रार्थना लेकर पहुंचे थे। उस बार खेती को सूखे का सामना करना पड़ रहा था। पहाड़ में अधिकतर गांवों में खेती वर्षा पर निर्भर है, बारिश नहीं होने से फसल खराब होने की चिंता रहती है। जाखराजा जी ने अवतरित होकर कहा, बारिश हो जाएगी, पहले आप सभी लोग भोजन कर लो। पर, ग्रामीणों ने कहा, पहले हमें बारिश चाहिए। इसके बाद ही भोजन करेंगे। कुछ ही देर में इतनी बारिश हुई कि लोग भोजन भी नहीं कर पाए। यह बात मुझे अच्छी तरह से याद है,” 69 साल के अब्बल सिंह रावत बताते हैं।

मंदिर के पुजारी प्रियदत्त भट्ट ने संक्षेप में मंदिर की कथा सुनाई, उनके अनुसार, नारायणकोटि गांव के कुछ लोग बकरियों के साथ उर्गम घाटी की ओर जा रहे थे। रास्ते में उनको लिंगाकार पत्थर मिला। उन्होंने समझा कि यह पत्थर उनकी ऊन को साफ करने में काम आएगा और उन्होंने पत्थर को कंडी में डाल दिया। रास्ते में पत्थर कंडी में भारी होने लगा, उन्होंने सोचा कि यह छोटा सा पत्थर इतना भारी कैसे हो सकता है। शाम को घर जाकर इसको कंडी से बाहर निकालना चाहा।
उसी रात भगवान उनके सपने में आए और कहा, मैं तेरी कंडी में प्रवेश कर चुका हूं, कल से मैं हल्का हो जाऊंगा, लेकिन जहां पर कंडी की रस्सी टूट जाएगी, वहां मेरी स्थापना कर देना। बकरियों को चराते हुए, जहां कंडी की रस्सी टूटी थी, वो स्थान यही है, जहां मंदिर है। उन्होंने भगवान की आज्ञा के अनुसार, लिंग की स्थापना कर दी। भगवान ने उनको बताया कि मैं जाखराजा हूं और अपनी पूजा अर्चना के पूरे विधिविधान की जानकारी दी।
पंडित प्रियदत्त भट्ट के अनुसार, संवत 1111 में स्थापना के बाद से ही, हर वर्ष 14 व 15 अप्रैल को भगवान जाखराजा जी का भव्य मेला लग रहा है। 12 अप्रैल से यहां एक गोष्ठी का आयोजन होता है। प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति नंगे पैर घर से चलकर जंगल से लकड़ियां लेकर आता है, जो हवन में प्रयोग की जाती हैं। भगवान जाखराजा की पूजा पूरे विधिविधान से की जाती है। हवनकुंड का पूजन किया जाता है। दो गते बैशाख में भगवान अपने पश्वा पर अवतरित होते हैं। पूजन विधान के बाद सभी श्रद्धालुओं के सामने भगवान दहकते हुए अंगारों में प्रवेश करते हैं और अग्नि में सभी को दर्शन देते हैं। वर्तमान में नारायणकोटि के शेषानंद पुजारी भगवान के पश्वा हैं। भगवान भक्तों को प्रसाद बांटते हैं और सच्चे हृदय से प्रार्थना करने पर सभी की मनोकामना पूरी करते हैं।

पंडित प्रियदत्त भट्ट बताते हैं, भगवान जाखराजा साक्षात यक्ष हैं, धर्मराज हैं, साक्षात नारायण हैं। जिस तरह भगवान विष्णु के सर्वांग में चंदन लगता है, उसी तरह भगवान जाखराजा को भी चंदन लगता है।
उन्होंने बताया, मंदिर की देखरेख एवं मेले के आयोजन के लिए इन सभी 14 गांवों की समिति बनी थी। कुछ समय तक प्रदेश सरकार ने मेले के लिए 50-50 हजार रुपये का सहयोग दिया था, लेकिन कुछ वर्षों से पैसा नहीं मिल रहा है। इन गांवों के लोग ही अपने स्तर से ही मेले का आयोजन कर रहे हैं।
पंडित प्रियदत्त भट्ट, एक बहुत पुराना किस्सा सुनाते हैं- गढ़वाल के बहुत सारे लोग श्रम के लिए नेपाल गए थे। नेपाल में बारिश नहीं हो रही थी, सभी लोग काफी परेशान थे। वहां के राजा जानना चाहते थे कि प्रजा बारिश नहीं होने को लेकर क्या कह रही है। राजा के मंत्री ने गढ़वाल के एक व्यक्ति को यह कहते सुना कि, हमारे यहां की बात होती तो जाखराजा जी से प्रार्थना करते और बारिश हो जाती।
यह बात राजा तक पहुंची तो उन्होंने उस व्यक्ति को बुलाकर कहा, हमारे नेपाल के लिए भी अपने देवता से प्रार्थना करो। यदि तुम्हारे देवता ने यहां बारिश नहीं कराई तो तुम्हें बंदी बना लिया जाएगा। अब वो व्यक्ति घबरा गया, उसने जाखराजा जी से बारिश के लिए प्रार्थना की। पंडित प्रियदत्त भट्ट के अनुसार, नेपाल में बहुत बारिश हुई। अत्यधिक बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। राजा ने उस व्यक्ति से कहा, अपने देवता से प्रार्थना करो कि बारिश रुक जाए। उनसे हमारी तरफ से क्षमा मांगो। व्यक्ति की प्रार्थना पर बारिश रुक गई।

बताते हैं, नेपाल के राजा ने प्रसन्न होकर मंदिर को दो सुंदर घंटियां भेंट कीं। कांस्य की बजाने और तेल रखने वाली दो घंटियां आज भी मंदिर में रखी हैं। इसी घंटी की ध्वनि के साथ भगवान की पूजा अर्चना की जाती है।
साभार- रेडियो केदार