मोहित उनियाल ने डोईवाला के गांवों में जाकर क्यों कहा, हम शर्मिंदा हैं…
पर्वतीय गांवों की दिक्कतों को लेकर मोहित चला रहे हैं 'हम शर्मिंदा हैं' अभियान
देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में डोईवाला सीट पर दो बड़ी सियासी घटनाएं हुईं। पहली पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने टिकटों के बंटवारे से पहले ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी। त्रिवेंद्र यहां से तीसरी बार के विधायक हैं। दूसरी सियासी घटना कांग्रेस में हुई, जिसमें मोहित उनियाल को दो दिन का प्रत्याशी बनाकर बाद में उनको टिकट काट दिया गया।
इस सीट पर त्रिवेंद्र अपने सियासी साथी बृजभूषण गैरोला को चुनाव लड़ा रहे हैं और कांग्रेस ने गौरव चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। इस बार डोईवाला में कांग्रेस और भाजपा ने नये चेहरों को मैदान में उतारा है। भाजपा में जितेंद्र नेगी ने टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर दी और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
वहीं, कांग्रेस में मोहित उनियाल ने कोई बगावत नहीं की और न ही विरोध किया। मोहित राजीव गांधी पंचायत राज संगठन के उत्तराखंड प्रदेश संयोजक हैं और एनएसयूआई व युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय पदों पर जिम्मेदारी निभा चुके हैं। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों से किसी भी तरह के विरोध से दूर रहने को कहा है। उनका कहना है, संगठन सर्वोपरि है, इसलिए संगठन के लिए काम करें।
चुनाव से पहले से ही मोहित एक अभियान चला रहे हैं, जिसकी टैग लाइन है- हम शर्मिंदा हैं। उनका कहना है, डोईवाला नगर पालिका और देहरादून राजधानी क्षेत्र से सटे पर्वतीय गांवों की ओर आज तक कोई ध्यान नहीं दिया गया।
टिकट कटने के दूसरे दिन ही वो बड़कोट गांव पहुंचे, जहां बिजली और सड़क नहीं हैं। कच्चे व एक तरफ पहाड़, दूसरी तरफ खाई वाले रास्ते पर बाइक भी नहीं चल सकती। पलायन की पीड़ा झेल रहे इस गांव में केवल एक परिवार रहता है। एक बिटिया को घर से स्कूल जाने के लिए 16 किमी. पैदल चलना पड़ता है। उसके साथ मां को भी उसकी शिक्षा के लिए रोजाना 16 किमी. पैदल चलना पड़ रहा है।
वो कहते हैं, इन गांवों की स्थिति को देखते हुए सवाल उठता है, सरकार कहां हैं। नाहीकलां मोटर मार्ग की मांग वर्षों से हो रही है। यहां के विधायक चार साल मुख्यमंत्री रहे। विकास के हालात आप देख सकते हैं। बिजली, पानी, सड़क और रोजगार वर्षों से मुद्दे बने हैं। इन पहाड़ों पर विकास दिखना चाहिए था, वो नहीं हो रहा। सनगांव में कई परिवार सुविधाएं नहीं होने पर मजबूरी में पलायन कर गए। स्वास्थ्य सेवाएं यहां से बहुत दूर हैं। किसी भी पार्टी की सरकार आए, उन्हें सोचना चाहिए। हम यहां पानी के लिए संघर्ष देखते हैं। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि सात किमी. चलकर पानी की लाइन ठीक कराते हैं। व्यवस्थाएं ठीक नहीं हैं।
वो कहते हैं, पर्वतीय क्षेत्रों का विकास नहीं हुआ। मैं राजनीतिक दल से संबद्ध हूं, इसलिए मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं इन गांवों के बारे में सोचूं। इनकी दिक्कतों को दूर करने के प्रयास करूं। हम सभी, चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो, अपने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं कर पाए। बच्चे शिक्षा के लिए कई किमी. पैदल चलने को मजबूर हैं। ये हालात देखकर तो हम यही कहेंगे कि हमें शर्मिंदा होना चाहिए, क्योंकि हम राज्य बनने के 22 साल में भी इन गांवों का विकास नहीं कर पाए।