यह कहते हुए भावुक हो गईं ज्योति, मैंने कभी नहीं सोचा था हवाई जहाज से विदेश जाऊंगी…
महिला मंगल दल गडूल की सदस्यों ने साझा कीं अपने मन की बातें
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
” कोरोना संक्रमण से पहले की बात है, मुझे बेटे प्रशांत को जूडो कराटे की चैंपियनशिप के लिए श्रीलंका भेजना था। पर, हमारे पास पैसों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। हम निराश थे। मैंने परिवार में पूछा कि क्या मैं कुछ कर सकती हूं। उनका सवाल था, इतना पैसा कहां से मिलेगा। फिर जितना पैसा कहीं से लेंगे, उससे कहीं ज्यादा चुकाना पड़ेगा। मैंने बताया, महिला मंगल दल की सदस्यों से बात करती हूं, वहीं से कुछ मदद मिल सकती है। परिवार में सहमति बनी और मैंने दल की बैठक में 50 हजार रुपये ऋण का प्रस्ताव दिया। सभी सदस्य तुरंत सहमत हो गए और दूसरे दिन हमारे पास 50 हजार रुपये थे। कुछ पैसे और मिलाकर बेटे के साथ मैं भी श्रीलंका गई। मैंने पहली बार हवाई सफर किया। बेटे को सफलता मिली, उसका चयन भूटान में होने वाली दूसरी प्रतियोगिता के लिए हो गया। ”
“सच बताऊं, उन सुखद पलों को कभी नहीं भुला सकती। मैंने श्रीलंका में अशोक वाटिका को भी देखा, जिसके बारे में केवल किताबों में पढ़ा है। मुझे कभी भी आभास तक नहीं था कि एक दिन हवाई जहाज से विदेश जाऊंगी। यह सब महिला मंगल दल के सहयोग से हुआ “, बेटे के साथ श्रीलंका और भूटान जाने के समय को याद करते हुए करीब 40 वर्षीय ज्योति रावत भावुक हो जाती हैं। ज्योति महिला मंगल दल के माध्यम से महिला सशक्तिकरण पर चर्चा कर रही थीं।
हम बुधवार 16 जून,2022 की शाम महिला मंगल दल, गडूल की बैठक में शामिल होने के लिए भोगपुर पहुंचे थे। गर्मियों की शाम करीब छह बजे, अंग्रेजों के जमाने की भोगपुर नहर में बच्चे बंधा लगाकर डुबकियां लगा रहे हैं। कुछ देर में मौसम अपना रूप बदल लेगा, ऐसा आभास हो रहा है। यहां नहर और आसपास हरियाली की वजह से पारा शहर की तुलना में थोड़ा कम ही रहता है। कुल मिलाकर देहरादून शहर से यहां पहुंचकर बहुत अच्छा लगा। टिहरी गढ़वाल से आ रही जाखन नदी पर बनी सूर्याधार झील से जुड़ी भोगपुर नहर यहां से कुछ दूरी पर अंडरग्राउंड कर दी गई है। इस नहर से बड़ी संख्या में गांवों की हजारों बीघा कृषि भूमि पर सिंचाई होती है।
देहरादून जिला के डोईवाला ब्लाक में आने वाली गडूल ग्रामसभा के महिला मंगल दल की मासिक बैठक, इस बार बैठक यशोदा मनवाल के घर पर है। दल की बैठक बारी-बारी से सदस्यों के घर पर ही होती है। यशोदा जी, का घर चांद पत्थर की ओर जाने वाले रास्ते पर है। चांद पत्थर की वर्षों पुरानी कहानी और उसकी वर्तमान स्थिति का जिक्र हम पहले ही कर चुके हैं।
दल के सभी सदस्यों को बैठक स्थल पर आते हुए शाम करीब सात बज गए। घर के आंगन में दरी बिछाकर करीब सवा सात बजे बैठक शुरू हुई। महिलाओं ने बैठक में ढोलक व मंजीरा भी रखा है। बैठक के बाद, भक्ति गीत प्रस्तुति और कीर्तन भी होना है।
रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज की गई। कोषाध्यक्ष किरण रावत ने इस माह के लिए निर्धारित पांच-पांच सौ रुपये प्रत्येक सदस्य से जमा किए। कुछ सदस्यों ने इंटर लोनिंग की रकम भी जमा कराई। इंटर लोनिंग यानी आंतरिक ऋण, जिसका मतलब है कि सदस्य अपने दल से जरूरत पड़ने पर ऋण ले सकते हैं, जिसका ब्याज दो फीसदी है और इस राशि को एक साल के भीतर चुकाना होता है। वहीं, ऋण प्राप्त करने की औपचारिकता बहुत सरल है। यानी आज आवेदन किया, कल ऋण मिल गया। प्रत्येक महिला सदस्य अधिकतम 50 हजार रुपये ऋण प्राप्त कर सकती हैं।
कोषाध्यक्ष किरण रावत बताती हैं, महिला मंगल दल का मतलब है, महिलाओं का मंगल यानी उनकी खुशहाली। अपने गांव की भलाई के लिए कार्य करना हमारा उद्देश्य है। उन्होंने बताया, महिलाएं घर में बचत किए गए 500 रुपये दल के खाते में जमा करती हैं। इस राशि से ही उनको समय पड़ने पर आर्थिक मदद की जाती है। वर्तमान में दल में नौ सदस्य हैं, प्रत्येक माह साढ़े चार हजार रुपये बचत राशि जमा होती है। इसके अतिरिक्त आंतरिक ऋण का ब्याज मिलाकर, हर माह छह से सात हजार रुपये जमा हो जाते हैं।
स्वयं के अनुभव का जिक्र करते हुए किरण रावत ने बताया, दल के साथ कार्य करते हुए उनकी वित्तीय समझ बढ़ी है। बैंक की प्रक्रिया की जानकारी हुई है। हमें सरकार की योजनाओं के बारे में पता होता है। हमारा आत्मविश्वास बढ़ा है। हम अधिकारियों से योजनाओं और गांव की समस्याओं के समाधान पर भी बात करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बैठकों एवं दल के कार्यक्रमों में शामिल होने से महिलाओं की सामाजिक सहभागिता पहले से अधिक बढ़ी है। हम एक दूसरे से अपनी बात कहते हैं और किसी भी समस्या के समाधान की ओर बढ़ते हैं।
अध्यक्ष उर्मिला मनवाल के अनुसार, गडूल का महिला मंगल दल करीब 15 साल पहले बना था। हम दो बार इकट्ठा राशि को समान रूप से आपस में बांट चुके हैं। पहले दो सौ, तीन सौ रुपये प्रत्येक माह जमा करते थे। इस बार पांच-पांच सौ रुपये निर्धारित किए हैं। वर्तमान में दल के खाते में करीब दो लाख रुपये जमा हैं। इस राशि पर सभी महिलाओं का समान रूप से अधिकार हैं।
यशोदा मनवाल कहती हैं, दल के पास हमारा ही तो पैसा जमा है, इसलिए जब भी हम ऋण लेते हैं तो यह भावना रहती है कि हमने अपना पैसा लिया है। यहां मन में किसी से ऋण लेने जैसा बोझ नहीं रहता। हम इस पैसे को समय पर चुका भी देते हैं।
शांति पुंडीर बताती हैं, दल अपने सदस्यों को सहयोग करता है, इसके लिए हम सभी गर्व महसूस करते हैं। हम यहां से जो भी पैसा ऋण के रूप में लेते हैं, वो हमारा सभी का है। इसलिए इसको कर्ज के बोझ के रूप में नहीं, बल्कि एक दूसरे को सहयोग की दृष्टि से देखते हैं।
‘हम अपने परिवार में इस बात की ‘पावर’ दिखाते हैं कि अगर आप पैसे नहीं दोगे तो कोई बात नहीं, हमारे पास पैसे हैं “, हंसते हुए शांति राणा कहती हैं। उनका कहना है कि हम लोगों की मदद करते हैं। एक कैंसर पीड़ित को चार हजार रुपये की सहायता दी। महिला मंगल दल हमें स्वावलंबी बनाता है, यह आत्मसम्मान से जीने का तरीका सिखाता है।
“यहां किसी सदस्य को ऋण के लिए किसी से याचना करने की जरूरत नहीं होती, बल्कि पैसा प्राप्त करना उनका अधिकार है। रही बात ऋण चुकाने की, तो किसी को भी कभी यह आभास नहीं हुआ कि उनको एक माह में पैसे नहीं देने पर कोई टोकेगा। इस माह नहीं तो अगले माह पैसा दे सकते हैं। किसी भी सदस्य को ऋण कभी बोझ की तरह महसूस नहीं होता। यहां लगभग सभी सदस्य किसी ने बेटी की शादी, किसी ने स्कूल फी जमा करने, किसी ने मकान बनाने, किसी ने दूसरों की मदद के लिए ऋण लिया और समय पर चुका भी दिया”, उर्मिला मनवाल ने जानकारी दी।
दल की सदस्य चंद्रेश्वरी चौहान बताती हैं, वो पहली बार सभी सदस्यों के बीच एक जानकारी साझा कर रही हैं। उनकी जानकार महिला की बेटी दुर्घटना में घायल हो गई थी। बेटी के इलाज के लिए उनके पास पैसा नहीं था। कहीं से मदद नहीं मिल पा रही थी। उन्होंने दल से ऋण लेकर उनकी मदद की। दल अपने सदस्यों को ही ऋण देता है। सदस्य दूसरों की मदद करने के लिए ऋण लेते हैं। ऐसा कई बार हुआ।
“मेरे जानने वाली एक महिला कैंसर से पीड़ित थीं। इलाज के लिए उनको पैसों की जरूरत थी। उन महिला ने कई लोगों से पैसा ले रखा था। मुझसे भी मदद मांगी। मैंने दल में प्रस्ताव दिया और 30 हजार रुपये का ऋण लिया। अपने पास से मिलाकर उनको 50 हजार रुपये दिए। आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से वो महिला समय पर पैसा नहीं दे पाई। मैंने सभी किश्तें और ब्याज अपने पास से दिए। बाद में, लगभग तीन साल बाद उन्होंने मुझे पैसे वापस लौटा दिए। इस तरह एक महिला की मदद हो गई,” दल की सदस्य लक्ष्मी पुंडीर बताती हैं।
बैठक में सतेश्वरी मनवाल, एक अहम जानकारी देती हैं, जिससे पता चलता है कि महिला मंगल दल अपने सदस्यों की आर्थिक स्थिति का बहुत ध्यान रखता है। उनके अनुसार, कोरोना संक्रमण के समय सभी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। हमने उस समय ऋण राशि पर किसी भी सदस्य से ब्याज नहीं लिया। प्रश्न करती हैं, अगर हम बैंक से ऋण लेते तो, क्या बैंक किसी का ब्याज माफ करता ? हम चाहते हैं कि हमारी यह बात प्रधानमंत्री जी तक पहुंचे कि हमारा महिला मंगल दल अपने सदस्यों का इतने अच्छे ढंग से सहयोग कर रहा है।
महिला मंगल दल के कार्यों पर चर्चा करते हुए चंद्रेश्वरी चौहान बताती हैं, हम पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता पर कार्य करते हैं। गांव में स्वच्छता अभियान चलाते हैं। गांव में होने वाली सामूहिक समारोह में महिला मंगल दल की भागीदारी महत्वपूर्ण होती है। दल में कार्य करते हुए हमारा आत्मविश्वास बढ़ा है। हम अपनी बात मजबूती के साथ रखना जानते हैं।
अध्यक्ष उर्मिला मनवाल बताती हैं, रानीपोखरी में गैस एजेंसी के लिए दल ने काफी संघर्ष किया। पहले रसोई गैस लेने के लिए डोईवाला जाना पड़ता था। हमने आंदोलन किया, धरना दिया। आखिरकार गैस एजेंसी की सुविधा मिल गई। गांव की किसी भी समस्या के समाधान के लिए हम सभी एक साथ ब्लाक दफ्तर जाते हैं। हम सब एक हैं, कोई अकेला नहीं है। एक फोन पर सभी सदस्य एकत्र हो जाती हैं। गांव में किसी की भी मदद के लिए महिला मंगल दल सबसे आगे रहता है।
कोरोना संक्रमण के समय महिला मंगल दल ने जरूरतमंद परिवारों को अपने पास से खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई। वहीं, उस दौरान देहरादून और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में लोग घूमने के लिए इठारना जा रहे थे। दल ने भोगपुर में बैरियर लगाकर किसी भी बाहरी व्यक्ति को इठारना जाने से रोका।
ज्योति रावत कहती हैं, महिला मंगल दल से जुड़ने के बाद उनको अपने व्यक्तित्व में बहुत बड़ा परिवर्तन दिखाई दिया। अब अपनी बात तर्क के साथ रखती हैं। घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की मदद करती हैं। हम पीड़ित महिलाओं का साथ देते हैं। परिवार में कोई महिला गलती करती है, तो उनको भी समझाते हैं। हमारा उद्देश्य परिवारों में खुशहाली लाना है।
“महिला मंगल दल मेरे लिए मनोवैज्ञानिकों का दल है। यहां अपनी बात साझा करके मन का बोझ हल्का हो जाता है। यहां सभी समस्या को बढ़ाने की बजाय उसके समाधान की ओर बढ़ते हैं। मैं दल को अपना मायका कहना ज्यादा पसंद करूंगी। मुझे जब भी कोई दिक्कत हुई तो यहां बताती हूं। जिस तरह एक महिला के लिए सबसे नजदीक, अपने मन की बात कहने के लिए मायका होता है, उसी तरह मेरे लिए महिला मंगल दल की साथी महिलाएं हैं,” ज्योति रावत कहती हैं।
उनका कहना है, आर्थिक परेशानियों को दूर करने में दल ने हमेशा सहयोग किया। चाहे बेटे को चैंपियनशिप के लिए श्रीलंका ले जाने में मदद मिली हो या फिर बच्चों की फीस जमा करने में। मुझे दल की ऋण व्यवस्था ने काफी सहयोग किया। हमने भी दल के विश्वास को बनाकर रखा और समय पर पैसा जमा किया। यह स्थिति हमें नौकरी या कोई रोजगार नहीं होने के बाद भी, स्वावलंबी होने का आभास कराती हैं। हमें लगता है कि परिवार को चलाने में महिलाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। शांति राणा बताती हैं, 2013 की आपदा में दल की सदस्यों ने ऋषिकेश जाकर यात्रियों को अपनी तरफ से खाने-पीने की सामग्री भेंट की। हम गांव में होने वाले मांगलिक कार्यक्रमों, कथा, पूजन आदि में भी सहयोग करते हैं।
महिला मंगल दल, गडूल की बैठक में शामिल होकर हमें काफी कुछ सीखने और जानने का अवसर मिला। घर के आंगन में चल रही बैठक के दौरान मौसम अपना रूप बदल चुका था। तेज हवा चल रही थी और तेज बारिश का आभास हो रहा था। पर, एक के बाद एक किस्सा सुनाने के क्रम में, सब इतना खो गए कि बैठक संपन्न होने तक आंगन में ही बैठे रहे।
हर बैठक के बाद दल की सदस्य भजन कीर्तन करती हैं। ढोल और मंजीरे के साथ मां सुरकंडा की आराधना में भक्ति गीत प्रस्तुत किया गया। उर्मिला मनवाल और उनके साथ दल की सदस्यों ने भक्ति गीत – “जय हो सुरकंडा सुरी की, जय हो मां कुंजापुरी की…” गाया। उर्मिला मनवाल ने मांगल गीत “दैणां होयां खोली का गणेशा…” प्रस्तुत किया।
घर की ओर लौटते हुए रास्ते में तेज बारिश हुई, जिससे बचने के लिए हम कहीं नहीं रुके, क्योंकि कई दिन की तपिश के बाद तो यह बारिश देखने और ठंडक पाने के लिए मिली थी।
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