Blog LiveenvironmentFeaturedUttarakhand

उत्तराखंड का धारकोटः  बेहद सुंदर गांव, पानी के लिए जोखिम, आत्मनिर्भरता की पहल

धारकोट उत्तराखंड का बेहद सुंदर गांव है। देहरादून एयरपोर्ट से धारकोट की दूरी करीब 18 किमी. होगी। जब आप देहरादून से वाया रायपुर होते हुए एयरपोर्ट आते हैं, तो रास्ते में थानो गांव है। करीब 20 साल की पत्रकारिता के दौरान, मैं कभी थानो से ऊपर नहीं बढ़ा था। जब से मुझे गांव-गांव घूमने, वहां लोगों से मिलने, पर्वतीय गांवों की आर्थिकी को जानने, समझने की धुन सवार हुई है, तब से मैं देहरादून के आसपास के पर्वतीय गांवों का भ्रमण कर रहा हूं।

देहरादून से आते हुए थानो चौक से बाईं ओर ऊंचाई पर चढ़ते चले जाइए। कुछ दूरी तक रास्ता कच्चा है, पर जैसे जैसे आगे बढ़ते जाएंगे, रास्ता भी बहुत अच्छा मिलेगा और रास्ते में प्राकृतिक नजारे भी मन मोह लेंगे।

तापमान थोड़ा कम होने लगता है और आपको एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ गहराई में विधालना नदी नजर आती है। विधालना के पार पहाड़ पर गांव दिखते हैं। मुझे तो बहुत अच्छा लगता है थानो से धारकोट और उससे आगे बड़ेरना कलां, बडे़रना मंझला और बडेरना खुर्द की ओर बढ़ना। आगे बढ़ते रहिए और रास्ते में प्रकृति के रंगों से साक्षात्कार कीजिए। प्राकृतिक सौंदर्य ने इतना रिझाया है कि इस रास्ते में पर्यटकों एवं स्थानीय निवासियों के इंतजार में रेस्रां, रिजॉर्ट सजाए जाने लगे।खेती बाड़ी भी ठीक ठाक हो रही है।

16 जुलाई, 2021 को हम धारकोट जा रहे थे, उस दिन हरेला पर्व मनाया जा रहा था। हमने रास्ते में कुछ बच्चों को पौधे लेकर जाते हुए देखा। लोगों को खेतों के किनारों पर कुदाल चलाते हुए देखा। उनके पास कुछ पौधे थे। यहां पेड़ों के प्रति लोगों का प्रेम, इसलिए भी है, क्योंकि वो जानते हैं कि पेड़ वर्षा को आकर्षित करेंगे और उनके खेतों में पानी की कमी पूरी होगी। इसलिए यहां पूरा इलाका हरा भरा है।

इस पूरे इलाके में पर्यटन विकास की संभावनाएं हैं। मैं पहाड़ में पर्यटन के पक्ष में हैं, पर मेरा विरोध पर्यटन के नाम पर नुकसान को लेकर है। क्योंकि,जहां तक मैंने समझा है, पहाड़ में पर्यटन व्यवसाय को आजीविका से जोड़ने के नाम पर, स्थानीय लोगों का कम, बाहर से आए बिजनेसमैन का दखल ज्यादा बढ़ा है। होटल, रिजॉर्ट के नाम पर जमीनों की सौदेबाजी बढ़ी है।

शुरुआत आप कहीं से भी कर लीजिए, छोटे -छोटे पहाड़ों से सटाकर निर्माण को देखा जा सकता है। आजीविका से आय संवर्धनपर्यटन से आर्थिक हालातों को मजबूत करने के नाम पर, कच्चे- पक्के पहाड़ों पर कब तक भारी मशीनों के वार करते रहोगे। मैं यह नहीं कहता कि पहाड़ में बाहर से निवेश नहीं होना चाहिए। पर, उस निवेश को स्थानीय स्तर पर समृद्धि के रूप में दिखना भी तो चाहिए।

बड़ी बड़ी बिल्डिंगों के रूप में लगातार बढ़ते दिखता निवेश क्या यहां से पलायन रोक सकता है, क्या यह युवाओं को अपने घरों के पास ही रोजगार उपलब्ध करा सकता है, क्या यह हमारे पर्यावरण को संरक्षित रखने में मदद करता है, क्या यह स्थानीय उत्पादों को दुनिया के बड़े बाजारों से जोड़ता है, क्या यह लोककलाओं व उनके साधकों के लिए देश या वैश्विक स्तर पर किसी मंच को तैयार करता है, क्या यह हमारे हुनर को दुनिया से मिलाता है, क्या यह हमारे रिन्युअल ऊर्जा स्रोतों की कद्र करता है, क्या यह पहाड़ में तीर्थाटन, पर्यटन को संयमित एवं अनुशासित तथा गरिमामय तरीके से देखता है, क्या इसका हमारे गौरवमयी इतिहास एवं संस्कृति से कोई वास्ता है, क्या यह वास्तव में पहाड़ और यहां रहने वालों के लिए समृद्धि के द्वार खोलता है।

यदि इन सवालों के जवाब हां में हैं, तो फिर अच्छा है, इस निवेश को बढ़ते हुए, पहाड़ को चढ़ते हुए देखना। अगर, यह निवेश यहां भूमि खरीदकर पर्यावरण विरोधी गतिविधियों को बढ़ाने, कूड़े के ढेर लगाने, प्राकृतिक स्रोतों, धरोहरों को नुकसान पहुंचाने के लिए हैं, तो इसका विरोध करना चाहिए। यह सही है कि निवेश में लाभ की मंशा होती है, पर यह स्थानीय स्रोतों एवं संसाधनों को नुकसान पहुंचाने की कीमत पर नहीं होना चाहिए।

लगता है कि मैं मुद्दे से भटक रहा हूं। मैं अपनी इस आदत से लाचार हूं, बोलते हुए भी और लिखते हुए भी।

माफ करना, अब मैं केवल धारकोट और वहां के लोगों की ही बात करुंगा।

ऊँचाई पर स्थित धारकोट गांव से आपको घाटी में स्थित नथुवावाला, बालावाला और आसपास के इलाके दिखेंगे। बहुत शानदार नजारा पेश आता है। धारकोट से करीब चार किमी. चलकर अपर तलाई पहुंचते हैं और वहां से करीब तीन किमी. पैदल चलकर चित्तौर गांव पहुंच जाएंगे।

करीब तीन किमी. और चलेंगे तो देहरादून रायपुर रोड स्थित धन्याड़ी पहुंच जाएंगे। मैंने मोहित उनियाल, जगदीश ग्रामीण और सार्थक पांडेय के साथ चित्तौर गांव तक का रास्ता तय किया है।

धारकोट ग्राम पंचायत के पांच राजस्व गांव जिनमें धारकोट, सिमियान्ह, कुठार, कटकोट खुर्द और कटकोट कलां शामिल हैं, की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 380 है। हालांकि वर्तमान में आबादी करीब 600 बताई जाती है।

यहां सबसे बड़ी दिक्कत पानी की है। धारकोट में खेती वर्षा जल पर निर्भर है। पीने का पानी बड़ी मुश्किल से मिलता है और खेती के लिए तो पूछो मत। बारिश अच्छी तो खेती अच्छी, नहीं तो पानी बिन सब सून। धारकोट में पानी की बहुत कमी है। पीने का पानी यहां से लगभग छह किमी. दूर स्रोत से आता है। ग्राम प्रधान हंसो देवी का कहना है कि गांव में जिस स्रोत से पानी सप्लाई होता है, वहां तक पहुंचना आसान नहीं है।

गर्मियों में तो पानी की दिक्कत होती ही है, बरसात में भी आफत है। बरसात में स्रोत से आ रही पाइप लाइन टूट जाती है। पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो रही है। सामाजिक कार्यकर्ता भरत सिंह सोलंकी बताते हैं कि दो दिन पहले ही पाइपलाइन को ठीक किया, वो फिर क्षतिग्रस्त हो गई।

प्राकृतिक कारणों से पानी की लाइन टूटती रहती है। बड़ी दिक्कत है। वैकल्पिक व्यवस्था, गांव से करीब डेढ़ किमी. कच्चे पैदल रास्ते पर वर्षों पुराने कुआं है। पशुओं के लिए भी पानी वहीं से लाते हैं। उनका कहना है कि एक गांव कटकोट खुर्द में हैंडपंप से पानी की आपूर्ति की व्यवस्था हो गई है, पर यह वैकल्पिक है। इस गांव के लिए भी स्रोत से पानी की पुरानी व्यवस्था जारी रखी है।

दृष्टिकोण समिति के अध्यक्ष मोहित उनियाल के साथ धारकोट का यह दूसरा भ्रमण था। हम धारकोट के राजकीय प्राथमिक विद्यालय एवं राजकीय जूनियर हाईस्कूल के परिसर में पहुंचे। पास में ही, राजकीय इंटर कॉलेज है।

इंटर कालेज के प्रधानाचार्य श्यामवीर यादव, जूनियर हाईस्कूल के शिक्षक अनिरुद्ध सिंह सोलंकी, गोविंद सिंह रावत तथा राजकीय प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिकाएं, विद्यालय परिसर में हरेला पर्व पर पौधारोपण कर रहे थे। शिक्षक स्कूल के आसपास उगी झाड़ियां काट रहे थे। उनको इस कार्य में ग्रामीण भी सहयोग कर रहे थे।

वहीं, खाली भूमि पर साफ सफाई, पौधारोपण  किया जा रहा था। ग्राम प्रधान हंसो देवी, सामाजिक कार्यकर्ता भरत सिंह सोलंकी, राजेश सोलंकी, सौरभ, परमेश सिंह, योगेश कुकरेती, माया देवी, सुमित्रा देवी, मीना देवी, सीमा देवी, लीला देवी, उषा देवी, सुशीला देवी, सरिता देवी, ज्योति, अनीता देवी, सरिता देवी, अनीता तिवारी आदि ने फलों के करीब सौ पौधे रोपे।

पास में ही कृषि उत्पाद संग्रहण एवं फल प्रसंस्करण केंद्र है, जिसका भवन उत्तराखंड विकेंद्रीकृत जलागम विकास परियोजना ग्राम्या-।। (शॉर्ट में जलागम की परियोजना ग्राम्या टू) ने बनाया है। इसी परियोजना के तहत यहां महिलाओं को स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगारपरक गतिविधियों के लिए संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं।

धारकोट ग्राम पंचायत की इन महिलाओं के इस समूह का नाम मां सुरकुंडा महिला समूह है। इस समूह में 14 सदस्य हैं । वर्ष 2018 से उत्पाद बनाने, पैकिंग करने से लेकर मार्केटिंग तक का जिम्मा महिलाएं संभाल रही हैं।

समूह की अध्यक्ष विनीता देवी से समूह द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों, उत्पादन की प्रक्रिया, कच्चे माल की उपलब्धता, उत्पाद बनाने में प्रयोग होने वाले स्थानीय संसाधन, पैकिंग मैटेरियल, बाजार तक पहुंच, लाभ एवं चुनौतियों के बारे में विस्तार से जानना चाहा। उन्होंने बताया कि हरेला पर्व होने की वजह से आज उत्पादन तो नहीं होगा, पर हम आपको सभी जानकारियां दे सकते हैं। हम आपको उत्पाद भी दिखा सकते हैं।

महिला समूह यहां मंडुवा, किनोआ, मक्का के बिस्किट बनाता है। किनोआ (Quinoa ) के बारे में बताया कि इसकी पैदावार विदेश में ज्यादा होती है। हमें यह देहरादून के हनुमान चौक पर मिलता है। यह 400 रुपये किलो का है। किनोआ चौलाई दाना की तरह दिखता है। एक वेबसाइट के अनुसार, किनोआ भी, गेहूं, चावल, साबुत दाना की तरह अनाज है।

यह दक्षिण अमेरिका से भारत आया है। दो -तीन वर्ष में इसने भारतीय बाजार में अपनी खास जगह बनाई है। दक्षिण अमेरिका में इसका इस्तेमाल केक बनाने में किया जाता है। यह ग्लूटेन फ्री है, इसमें नौ तरह के एमिनो एसिड होते हैं। इसे खाने से प्रोटीन भी ज्यादा मिलता है। इसमें पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम भी ज्यादा मात्रा में होती है।

(Quinoa is a flowering plant in the amaranth family. It is a herbaceous annual plant grown as a crop primarily for its edible seeds; the seeds are rich in protein, dietary fiber, B vitamins, and dietary minerals in amounts greater than in many grains. Wikipedia)

किनोआ के बिस्किट का रेट 65 रुपये प्रति 200 ग्राम है, जिसको पैकिंग में बिक्री किया जाता है। हमें बिस्किट बनाने की प्रक्रिया बताई गई, जिसके अनुसार, कच्चा माल यानी मंडुवा या किनोआ या मक्का को पीसकर आटा बनाया जाता है, जिसमें लगभग आधी मात्रा गेहूं के आटा की होती है। गेहूं का आटा मिलाने से बिस्किट टूटते नहीं हैं।

मशीन से गूंथे गए आटे को खांचों में ढालकर बिस्किट बनाए जाते हैं, जिनको ट्रे में रखकर इलेक्ट्रिक भट्टी (ओवन) में करीब 20 मिनट तक रखते हैं। इस तरह बिस्किट तैयार हो जाते हैं। एक दिन में सामान्य तौर पर तीन से चार किलो तक बिस्किट बना लेते हैं। यदि डिमांड ज्यादा की है तो उत्पादन ज्यादा करते हैं। पैकिंग के लिए मैटेरियल देहरादून से लाते हैं।

अध्यक्ष विनीता देवी बताती हैं कि समूह के पास दिल्ली से बिस्किट सहित अन्य उत्पादों की डिमांड आती रहती है। थानो ग्रोथ सेंटर से भी काफी डिमांड आती है। उत्पाद लेने के लिए ग्रोथ सेंटर का वाहन यहीं पहुंचता है।

महिला समूह स्थानीय खेतों में उगने वाली हल्दी, अदरक को पीसकर पैकिंग में बिक्री कर रही हैं। सुमित्रा देवी बताती हैं कि इस साल लगभग 26 हजार रुपये की लगभग डेढ़ कुंतल हल्दी की बिक्री की। इस हल्दी को बिना पैकिंग के बिक्री किया। हम हल्दी पाउडर की पैकिंग में बिक्री करते हैं।

इसी तरह अदरक का पाउडर भी है, जिसकी काफी मांग है। समूह की अध्यक्ष का कहना है कि कोविड-ा9 में अदरक का पाउडर काफी बिका। उनके पास 600 रुपये की पैकिंग में अदरक पाउडर उपलब्ध है। अदरक को पहले अच्छी तरह धो लिया जाता है। इसे धूप में सुखाकर ओखल में पीस कर पाउडर बनाया जाता है।

हमें छोटी सी पैकिंग में सिलबट्टा नमक दिखाया गया। बताया गया कि नमक की डली को पुदीना, हरी मिर्च, धनिया के साथ सिलबट्टे पर पीसा जाता है। दो घंटे में दो सिलबट्टों पर लगभग एक से डेढ़ किलो नमक पीस लेते हैं। यह फ्रूट चाट, सलाद का स्वाद बढ़ा देता है।

भंगजीर स्थानीय रूप से उपलब्ध हो जाता है। विशेष पोषकता और औषधीय महत्व को देखते हुए भंगजीर का उपयोग खूब होता है। विशेषकर चटनी बनाने में इसका इस्तेमाल होता है। इसे पैकिंग में बिक्री किया जा रहा है।

समूह ने आम, हरी मिर्च, लहसुन, तिमले (अंजीर) का अचार तैयार करके डिब्बों में पैक किया है। अचार की बिक्री 250 ग्राम की पैकिंग में की जाती है। सबसे महंगा अचार लहसुन का है, जिसका मूल्य रुपये 200 प्रति किलो बताया।

लगभग तीन वर्ष पहले और अब आत्मनिर्भर होकर क्या अंतर महसूस करते हैं, के सवाल पर महिलाओं का कहना है कि यहां समूह के साथ कार्य करना अच्छा लगता है। हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं।

हमें वित्तीय स्वतंत्रता है। परिवार को आर्थिक सहयोग करते हैं। सामाजिक भागीदारी के लिए समय मिल रहा है। यहां समूह में कार्य करते हुए एक दूसरे के सुख दुख को बांटने का अवसर मिलता है।

समूह की अध्यक्ष विनीता देवी बताती हैं कि समूह को उत्पादों की बिक्री से लाभ हो रहा है। वर्तमान में हमने समूह के सदस्यों को लगभग 85 हजार रुपये वितरित किए। करीब 70 हजार रुपये बैंक में हैं। उत्पाद बिक्री के लगभग 50 हजार रुपये की लेनदारी है।

समूह ने बैंक के कामकाज की जिम्मेदारी लीला देवी के पास है। उनका कहना है कि पहले मुझे बैंक के बारे में कुछ नहीं पता था। बैंक में समूह के कार्यों से जाना होता है, अब पैसे जमा करने और निकालने के फार्म भरती हूं। बैंक की जमा-निकासी की प्रक्रिया को समझ गई हूं।

समूह की सदस्यों सुमित्रा देवी, लीला देवी, उषा देवी, सुशीला देवी, अनीता देवी, सरिता देवी, अनीता तिवारी, मीना देवी के आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने पर, तो हम यहीं कहेंगे, मातृशक्ति आपको सलाम है। ग्राम प्रधान हंसो देवी का कहना है कि धारकोट ग्राम पंचायत के सभी राजस्व गांवों में इस तरह के आजीविका केंद्र बनाने की मांग सरकार और संस्थाओं से की जा रही है, ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर होकर समृद्धि की ओर बढ़ें।

अगली बार फिर किसी गांव की स्टोरी के साथ आपसे मिलेंगे, तब तक के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं…।

Keywords: Dehradun Airport, Dharkot village, Growth centers work, uttarakhand village information, Village of Uttarakhand, Village tourism, why women empowerment is important, women empowerment in India, women empowerment activities, women empowerment essay, women empowerment in hindi, women empowerment article, the women’s empowerment project, What is Self Help Group, SHG’s work, process of biscuits making, top most beautiful village of Uttarakhand

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button