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आईएफएस अफसर की चिट्ठी पर क्यों चुप है कांग्रेस?
देहरादून। लैंसडौन वन प्रभाग से हटाकर मुख्यालय अटैच किए गए एक आईएफएस (भारतीय वन सेवा) अधिकारी की चिट्ठी अवैध खनन और सियासत के अवैध गठबंधन का जोरों-शोरों से खुलासा कर रही है, पर सवाल उठता है, चुनावी मौसम में हर बात को सियासत से जोड़ने वाली कांग्रेस इस मामले में मौन क्यों हैं।
ट्वीट करके सियासी माहौल गरमाने वाले कांग्रेस नेता हरीश रावत इस मुद्दे पर क्यों नहीं बोले, जबकि अवैध खनन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कुछ दिन पहले उन्होंने विधानसभा भवन गेट पर धरना दे दिया था। हालांकि इस मुद्दे पर उनके ट्वीट का इंतजार किया जा रहा है। यह भी हो सकता है कि कांग्रेस के नेता इस मामले में रणनीति बना रहे हों, तभी उनको प्रतिक्रिया में इतनी देर लग रही है।
एक खत सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है, उसके अनुसार कैबिनेट मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन हो रहा है। सियासी दबाव में नियम विरुद्ध काम करने से मना किया तो अफसर को ही अवैध खनन के आरोप में अटैच कर दिया गया।
सच क्या है, यह तो निष्पक्ष जांच में ही सामने आएगा, पर कांग्रेस के लिए यह चुनावी मुद्दा हो सकता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
पत्र में आईएफएस अधिकारी को ओर से साफ-साफ लिखा गया है कि लैंसडौन वन प्रभाग, कोटद्वार के पदभार से अवमुक्त करते हुए अग्रिम आदेशों तक प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखंड, देहरादून के कार्यालय में सम्बद्ध किया गया है। इसका कोई कारण नहीं बताया गया। समाचार पत्रों से पता चला कि इसका कारण अवैध खनन है।
अफसर ने लिखा है कि सीमित संसाधनों के बावजूद अवैध खनन को नियंत्रित करने का प्रभावी प्रयास किया गया है। यह वन प्रभाग अतिसंवेदनशील है और वन एवं पर्यावरण मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में आता है। ऐसे में राजनीतिक दबाव, धमकियां एवं निराधार आरोपों का सामना करना पड़ता है। तीन माह में अवैध खनन में लगी 55 ट्रैक्टर-ट्रॉली, तीन डंपर, दो जेसीबी एवं एक पॉकलैंड को जब्त किया गया है।
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पत्र में जिक्र किया गया है, इस वन प्रभाग में पिछले पांच वर्ष में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप रहा है एवं पिछले पांच वर्ष में पांच प्रभागीय वनाधिकारियों की स्थानान्तरण तैनाती की गई और प्रत्येक प्रभागीय वनाधिकारियों को अत्यन्त ही राजनीतिक दबाव झेलना पड़ा है। उनको भी इसी क्रम में निराधार एवं तथ्य विहीन भूमिका बनाते हुए मुख्यालय सम्बद्ध करने का आदेश पारित किया जाना प्रतीत होता है।
यहां तक की शासनादेश के अल्प अवधि बाद ही चार्ज हस्तान्तरण करने की धमकी एवं चार्ज हस्तान्तरण न करने पर एकतरफा चार्ज हस्तान्तरण करने का प्रयास किया गया है। इन समस्त प्रकरणों से उनके आत्मविश्वास पर गहरा प्रभाव पड़ा है एवं इस तरीके की कार्यवाही न्यायोचित नहीं है, इससे न केवल उनका मनोबल टूटा है, बल्कि एक नवनियुक्त भारतीय वन सेवा के अधिकारी की छवि धूमिल हुई है।
आईएफएस अफसर वाली वायरल चिट्ठी में कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र का जिक्र है, जो वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की विधानसभा है। हालांकि मीडिया में वन मंत्री डॉ. रावत के हवाले से कहा गया है- ऐसे मामलों में जब भी किसी अधिकारी को हटाया जाता है तो वो अपने बचाव में कुछ न कुछ बोलता है। डीएफओ के खिलाफ स्थानीय लोगों की ओर से अवैध खनन में लिप्त होने की खबर मिल रही थी। मैंने मौके पर जाकर निरीक्षण किया तो शिकायत सही पाई गई। मामले की जांच के आदेश कर दिए गए हैं। जांच प्रभावित नहीं हो, इसलिए उनको मुख्यालय अटैच कर दिया है। जांच में सब स्पष्ट हो जाएगा।
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