
तीज और गोरखाली समाज की परम्परा
भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया को हरितालिका तीज व्रत और पूजन होता है
- उमा उपाध्याय
हमारे समस्त व्रत पर्व पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं। गोरखाली समाज की विवाहिता नारियां अखंड सौभाग्य और कन्याएं श्रेष्ठतम पति की प्राप्ति के लिए अतिशय प्रेम श्रद्धा और विश्वास के साथ भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज नाम से प्रसिद्ध व्रत और पूजन करती हैं। शिव पुराण , लिंग पुराण आदि विभिन्न पुराणों के अनुसार दक्ष पुत्री सती ने देहोत्सर्ग करके हिमालय पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बाल्यावस्था से ही घर में रहकर कठोर तप करना आरम्भ किया ।

पुत्री के उस कठोर तप को देखकर हिमालय के मन में भारी कलेश होता था। एक दिन नारद जी हिमालय के पास आए और बोले हिमालय तुम्हारी बेटी की तपस्या देखकर विष्णु जी प्रसन्न हुए और विवाह करने की इच्छा से मुझे दूत के रूप में तुम्हारे पास भेजा है ।इस सम्बन्ध में तुम्हारी क्या राय है?
हिमालय बडे़ प्रसन्न हुए और बोले सर्वगुण सम्पन्न श्री विष्णु जी से मेरी बेटी का विवाह हो जाए तो इससे बड़ा मेरा सौभाग्य क्या होगा ? कहते हुए नारद जी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस समाचार को सुनकर पार्वती के मन में भारी धर्मसंकट और चिन्ता होने लगी ।अपनी सखियों से मन की बात कहकर बोली “मैं सपने में भी शिव जी के अतिरिक्त अन्य किसी पुरुष की न तो कामना और न ही चिन्तन करती हूं।केवल शिव जी ही मेरे स्वामी हैं ।सखियों ! अब मैं क्या करूं ?
पार्वती को ढूंढते हुए हिमालय वन-वन भटक रहे थे।उधर पार्वती जी शिवजी का विधिपूर्वक पार्थिव लिंग बनाकर बेलपत्र , पुष्प फल जल द्वारा पूजन अभिषेक कर रही थीं। शीत घाम सहन करती हुईं अटूट प्रेम श्रद्धा विश्वास सहित उपवास करते हुए शिव नाम जप करते हुए भाद्रपद शुक्लपक्ष तृतीया तिथि आई। पार्वती की तपस्या से शिवजी का आसन डोलने लगा तब कैलाशवासी शिव प्रकट हुए और पार्वती को वचन दिया ।हिमालय भी पहुंच गए और पार्वती की इच्छानुसार शिव के साथ विवाह करने का वचन देने पर पार्वती हिमालय के साथ घर लौट आईं ।
कालान्तर मे शिव पार्वती का धूमधाम पूर्वक विवाह सम्पन्न हुआ । पतिव्रताओं की आदर्श रूपा पार्वती जी द्वारा विश्वास, त्याग, तपस्या, प्रेम भक्ति के बल पर शिव परमात्मा की प्राप्ति की कथा के माध्यम से आज भी नारियां अपने सौभाग्य की रक्षा हेतु तथा कन्याएं श्रेष्ठ पति की प्राप्ति हेतु इस व्रत को करती हैं तथा अपने परिवार समाज राष्ट्र निर्माण के लिए अपना योगदान देती हैं ।
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