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लघु कथाः नया साल मुबारक हो

  • अनीता मैठाणी

सड़क पर भीड़ अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक थी, पर उसे इससे किंचित भी सरोकार ना था। उसे तो रोज की तरह घर से भेजा गया था बाजार, दुकानों के बाहर पड़े गत्ते-बत्ते उठा लाने को, जिससे उसके घर का चूल्हा जल सके और सिंक सकें चंद रोटियां। बाजार की बढ़ी हुई भीड़ पर सवालिया हो रही थे उसकी सुंदर आँखें। अन्य दिनों की अपेक्षा उसे आज रद्दी भी अधिक मिली था, कंधे पर झूलता झोला लगभग भर ही चुका था। तभी उसने देखा दो परिवार को बाजार में मिलते हुए और नया साल मुबारक कहकर गले लगते हुए। वो बुदबुदाई नया साल- नया साल मुबारक हो।

तभी उनमें से एक भद्र महिला ने उसे हाथ के इशारे से रूकने को कहा और सामने की बेकरी से एक्लेयर्स टाॅफी का एक पैकेट और चार पेस्ट्री पैक करवाकर उसके हाथ में थमाते हुए कहा- नया साल मुबारक हो, इसे घर ले जाकर खाना।

उसकी सुंदर आँखें खुशी से झिलमिलाने लगीं, उसके कंधे का झोला तो पहले ही भर चुका था, उसने आव देखा ना ताव वो तेज कदमों से अपनी बस्ती की ओर बढ़ने लगी। कुछ ही देर में वो अपनी बस्ती में पहुँच गई। तभी उसे पड़ोस के महेश और दिलीप चाचा दिखाई दिए, उसने कहा- चचा, नया साल मुबारक हो। वे दोनों बेसाख्ता खो-खो कर हंस दिए बोले- तुम्हें भी नया साल मुबारक हो मिन्नी बिटिया।

फिर उसने सारिका, तमन्ना, रंजन, कैलाश, पीकू अपने सब दोस्तों को आवाज लगाई और झोला बाहर रख कर बड़े शान से टिन शीट का दरवाजा अंदर को धकेल कर घर में दाखिल हुई। उसकी माँ जोर से चिल्लाई- अरे मिन्नी संभलकर बेटा, मालूम है ना कल रात दरवाजा लटक गया था मैंने जैसे-तैसे उसे अटकाया है।

मिन्नी हाथ का पैकेट एक ओर रखकर हाथ धोते हुए बोली- माँ तू किचकिच मत कर, पहले यहाँ आ औररर …… दोनों बांह खोले माँ से लिपटते हुए बोली- नया साल मुबारक हो माँ। माँ हंस दी बोली- मिन्नी तुझे भी नया साल मुबारक हो बेटा।

वो बोली- माँ क्या तू जानती थी आज नया साल मुबारक है, और जानती थी तो तूने मुझे बताया क्यूं नहीं और गले लगकर कहा क्यूं नहीं।

मिन्नी की माँ की आँखों में आंसू आ गए, वो बोली हम गरीबों का क्या नया साल और क्या नया साल मुबारक। मिन्नी बोली- माँ, ये मुबारक क्या होता है। माँ ने समझाया- मिन्नी, ये दुआ होती है कि तुम्हारा सब अच्छा हो। आज से नया साल 2019 शुरू हुआ ना, साल का पहला महीना जनवरी और आज पहली जनवरी है।

मिन्नी बोली- लो बोलो जब हम नया साल मुबारक ही नहीं कहेंगे तो नया साल मुबारक कैसे होगा मेरी प्यारी माँ।

वो जाकर पैकेट उठा लाई माँ को पकड़ाते हुए बोली- एक आंटी ने बाजार में मुझे ये देते हुए कहा- नया साल मुबारक हो, तो मेरा तो नया साल मुबारक हो गया। खोलो इसे, देखो तो इसमें क्या है।

पेस्ट्री और टाॅफियों का पैकेट देखकर वो खुशी से झूम उठी। हर पेस्ट्री के उसने दो-दो टुकड़े करवाये और अपने दोस्तों के साथ मिलकर खाया, टाॅफियां भी सबको बांटी गयी। मिन्नी को पूरा विश्वास हो चला है कि उसकी बस्ती में भी इस साल नया साल मुबारक हुआ है।

 

 

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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