राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
“मुझे 17 साल हो गए, इस मंदिर में सेवाकार्यों को करते हुए। पहले मैं हर दिन यहां आता था, पर अब समय कम मिलने की वजह से कभी कभार ही आ पाता हूं, लेकिन सप्ताह में एक दिन तो पक्का है। मैं जब भी मंदिर के पास होता हूं, यहां कोई न कोई सेवा करके जरूर जाता हूं। इसके साथ ही, मैं अपने धर्म में गहरी आस्था रखता हूं। प्रतिदिन नमाज अदा करता हूं। जिस भी दिन पूरे समय घर पर रहता हूं, पांचों समय की नमाज अदा करता हूं। अच्छे जीवन के लिए खुदा का शुक्रिया करता हूं।”, नियामवाला गांव के निवासी 61 साल के हयात अली नलोंवाली देवी के प्रति अपनी आस्था का जिक्र करते हैं।
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उनका कहना है, मेरा मन करता है, यहां जब भी आऊं, कोई न कोई सेवा कार्य करके जरूर जाऊं। उन्होंने (नलोंवाली देवी) मेरे जीवन को बेहतर बनाया है। 17 साल पहले लकड़ियां लेने इस जंगल में घूम रहा था। तभी मुझे अहसास हुआ कि मंदिर में सेवा कार्य करने चाहिए। मेरा मन उनके प्रति सम्मान व्यक्त करता है। मुझे अच्छा लगता है, मंदिर परिसर को स्वच्छ एवं सुंदर रखूं। आप मंदिर परिसर को देख रहे हो, यहां बड़ी बड़ी झाड़ियां उगी थीं, मैंने पूरी मेहनत करके सफाई की। मैं पीर बाबा की मजार पर भी इबादत करता हूं। हम इंसान हैं और हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।
नलोंवाली देवी का मंदिर खैरीवनबाह में स्थित है, जो डोईवाला नगर से करीब सात किमी. खैरी गांव के पास है। मंदिर से थोड़ा आगे गुर्जर बस्ती है। हम गुर्जर बस्ती पहुंचे और वहां से वापस लौटते हुए मंदिर पहुंच गए। यहां हयात अली को परिसर में बिखरे पत्ते इकट्ठे करते हुए देखा। एक संक्षिप्त मुलाकात में हयात अली बताते हैं, मंदिर परिसर में वार्षिक एवं शिवरात्रि के भंडारे से पूर्व बहुत सारे काम होते हैं। परिसर के चारों तरफ तारों की बाड़ लगाने सहित अन्य सभी कार्यों में भागीदारी की है। मैंने यह निश्चय किया है कि मंदिर समिति जो भी कुछ पारिश्रमिक देगी, उसको स्वीकार कर लूंगा। मैंने यहां के लिए कोई पारिश्रमिक तय नहीं किया है।
वो एक किस्सा साझा करते हैं। करीब 16 साल पहले की बात है, मैं मंदिर के सेवादार के पास बैठा था। मैं मन में सोच रहा था, 22 दिन से कोई काम नहीं मिला, घर पर खाली बैठा हूं। समझ में नहीं आ रहा, क्या करूं। कुछ देर बाद, मैं वहां से जाने लगा, तभी मंदिर के सेवादार ने मुझे रोकते हुए कहा, तुम्हें एक काम सौंपता हूं, यहां परिसर में उगी झाड़ियों को साफ कर दो। एक मुश्त 500 रुपये मिलेंगे, चाहे एक दिन में यह काम निपटा दो या फिर तीन दिन में। इसके बाद मुझे मंदिर परिसर के पेड़ों पर रंग लगाने का काम मिल गया। यहीं नहीं, जिस व्यक्ति के साथ मैंने बहुत पहले काम किया था, वो भी मुझे ढूंढते हुए पहुंच गया। उनके साथ लगातार तीन माह का काम मिला। मै कभी खाली नहीं रहा।
वो कहते हैं, मेरे बारे में कोई क्या बोलता है, मुझे इसकी परवाह नहीं है। मैं वो काम करता हूं, जो मुझे अच्छा लगता है, जिससे मेरा मन खुश होता है। बताते हैं, पिछले समय मेरे पैर में चोट लग गई थी. मैं कुछ समय यहां नहीं आया। पर जैसे ही स्वस्थ हुआ, यहां आ गया। मुझे यहां सेवाकार्यों में खुशी मिलती है।