बात तरक्की कीः खट-खट वाले ताना बाना से बदल रहा इन महिलाओं का जीवन
उषा हैंडलूम पर शॉल के एक दिन में तीन पीस बना लेती हैं, एक महीने में लगभग पांच से छह हजार रुपये की आय हो जाती है
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
बणसूं-त्यूड़ी मार्ग पर एक छोटे से कमरे के बाहर पाइप पर रंग बिरंगे धागों की गुच्छियां लटकी हैं। लकड़ी के बड़े दरवाजों वाले इस कमरे के सामने साइकिल के पहिये से बनी चरखानुमा मशीन रखी है।
कमरे में चल रही हैंडलूम मशीन ( Handloom Machine), जिसे ताना बाना भी कहा जाता है, की खट-खट की आवाज सुनाई देती है। बाहर से ही देखने पर एक महिला, जिनका नाम उषा भट्ट है, धागों पर निगाह टिकाकर हैंडलूम पर शॉल बना रही हैं।
बणसूं-त्यूड़ी नाम के दो गांव हैं, जो रुद्रप्रयाग जिले में हैं और श्रीकेदारनाथ जाते समय गुप्तकाशी से करीब आठ-नौ किमी. दूरी पर है। पर, जिस जगह का हम जिक्र कर रहे हैं, वो गुप्तकाशी से लगभग छह किमी. है।
हमने उषा भट्ट से बात की, तो उन्होंने बताया, वो यहां शॉल, स्टॉल, कैप, मफलर बनाते हैं, जो बिक्री के लिए ऊखीमठ व अन्य स्थानों पर भेजे जाते हैं। वो जिस संस्था एट इंडिया (Appropriate Technology India) के लिए काम करते हैं, वहीं से उनको धागा और अन्य सामान मिलता है। उनका काम केवल कपड़ों का उत्पादन करना है। यह बहुत ध्यान से करने वाला काम है, आपका पूरा ध्यान धागे पर होना चाहिए, यदि कोई भी पीस खराब हो गया तो उसकी बिक्री नहीं होती।
लगभग पांच साल से हैंडलूम चला रहीं उषा बताती हैं, जब पहले दिन यहां आईं तो मशीन देखकर लगा कि यह काम हमसे नहीं हो पाएगा। इसमें इतने सारे धागे लगे हैं। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। हमारे ट्रेनर, जो बिहार के थे, ने हमें बताया, जब आप इस काम को सीख जाओगे तो सबकुछ आसान होगा। पहले सीखना तो शुरू करो।
महिलाओं से कहना चाहती हूं, घर के सहारे पर न रहकर कुछ काम सीखिए, आप आत्मनिर्भर होंगे तो जीवन में बदलाव महसूस करेंगे। पहले हम जिस मशीन को देखकर यह सोच रहे थे कि इसको कैसे चलाएंगे, आज छोटी-मोटी दिक्कत होने पर उसी मशीन की मरम्मत भी कर देते हैं। यह सब लगातार मन लगाकर कुछ सीखने से होता है। हम सुबह नौ बजे से शाम सात बजे तक काम करते हैं। वैसे, हम पर समय की कोई पाबंदी नहीं है, पर हमने स्वयं तय किया है कि सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक काम करेंगे। आजकल दिन बड़े हैं, इसलिए सात बजे तक कपड़े बनाते हैं, करीब 40 वर्षीय उषा भट्ट कहती हैं।
उषा सहित तीन महिलाएं यहां कपड़ा बनाती हैं, इनमें त्यूड़ी की कविता भी शामिल हैं। तीनों का काम बंटा है, इनमें से दो महिलाएं ताना बाना मशीन चलाती हैं और एक महिला चरखे की तरह दिखने वाली मशीन पर धागे की रील बनाती है। धागे की गुच्छियां ऊखीमठ से आती हैं। धागे में नमी होती है तो उसे सुखाना पड़ता है।
उन्होंने बताया, इस समय वो शॉल बना रही हैं। प्रति पीस बनाई के हिसाब से 120 रुपये मिलते हैं। एक दिन में तीन पीस बना लेती हैं। एक महीने में लगभग पांच से छह हजार रुपये की आय हो जाती है। इस कार्य में केवल धागे पर ध्यान देना होता है। धागा न टूटे, इसको लेकर सतर्क रहते हैं। लॉकडाउन से पहले काम अच्छा चल रहा था। हम रविवार को भी यहां आते हैं। हमारा काम समय पर उत्पाद तैयार करना है। इसके लिए समय की कोई पाबंदी नहीं है।
पांच साल पहले जब उन्होंने हैंडलूम पर काम शुरू किया था, तब से लेकर आज तक जीवन में काफी बदलाव है। काफी नॉलेज हो रही है। मशीन में ज्यादा खराबी हो जाए तो ऊखीमठ से कारीगर बुलाना पड़ता है, किसी छोटी मोटी दिक्कत को हम अपने आप दूर कर देते हैं।
त्यूड़ी गांव की कविता भी इसी सेंटर पर कपड़ा बनाती हैं, का कहना है कि हैंडलूम चलाना सीखकर उनको काफी लाभ मिला। यह उनकी आजीविका का प्रमुख स्रोत बन गया। प्रतिदिन घर से दो किमी. पैदल चलकर यहां पहुंचती हैं।