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भारत में चुनावः देवप्रयाग सीट पर विनय लक्ष्मी के खिलाफ मैदान में कोई नहीं उतरा

1951-52 के चुनाव में कांग्रेस की लहर का नहीं पड़ा था देवप्रयाग सीट पर कोई असर

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम देवप्रयाग। संपूर्ण भारत की जीवनरेखा यहीं से, गंगा के नाम से आगे बढ़ती है। गंगा का उद्गम गंगोत्री और अलकापुरी को माना जाता है, पर नामकरण देवप्रयाग में हुआ। आस्था और श्रद्धा के केंद्र देवप्रयाग को सियासत में कोई लहर प्रभावित नहीं करती। इस सीट ने निर्दलीय से लेकर हर दल को अवसर दिया।

उत्तराखंड की देवप्रयाग विधानसभा सीट 1951 से अब तक 17 चुनाव (13 चुनाव उत्तर प्रदेश के समय में) देख चुकी है, यह उसका 18वां चुनाव है। इस सीट पर 1951 में पूरे देश में चल रही कांग्रेस की लहर का कोई असर नहीं पड़ा और निर्दलीय उम्मीदवार सत्या सिंह को अपना प्रतिनिधि बनाया था। उन्होंने कांग्रेस के प्रेम लाल को पराजित किया था। हालांकि इस चुनाव में टिहरी से एक भी सीट किसी राजनीतिक दल को नहीं मिली थी, तीनों विधायक निर्दलीय ही थे। इनमें रवाईं कम टिहरी नार्थ पर जयेंद्र सिंह बिष्ट, देवप्रयाग पर सत्या सिंह तथा टिहरी (साउथ) कम प्रताप नगर सीट पर निर्दलीय महाराज कुमार बालेंदु शाह निर्वाचित हुए थे।

उत्तर प्रदेश विधानसभा के दूसरे चुनाव 1957 में कांग्रेस उम्मीदवार विनय लक्ष्मी के सामने कोई भी प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरा। जबकि 1951-52 के चुनाव में इस सीट पर सत्या सिंह, प्रेमलाल, घनश्याम जोशी, मगन लाल, रघुनंदन प्रसाद बहुगुणा, दौलत राम प्रत्याशी थे।

विनय लक्ष्मी सुमन शहीद श्रीदेव सुमन की पत्नी थीं। श्रीदेव सुमन ने टिहरी रियासत के खिलाफ सत्याग्रह किया था। टिहरी को राजशाही से आजाद कराने के लिए उन्होंने 84 दिन तक अनवरत भूख हड़ताल की और खुद न्यौछावर कर दिया। 25 जुलाई 1944 को उनका निधन हुआ था।

उत्तर प्रदेश विधानसभा के 1962 में तीसरे चुनाव में विनय लक्ष्मी दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुईं। इस चुनाव में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी ज्ञान सिंह को पराजित किया। विनय लक्ष्मी को 9901 (52.48 प्रतिशत) तथा निकटतम प्रतिद्वंद्वी ज्ञान सिंह को 5974 (33.66 फीसदी) वोट मिले थे।

देवप्रयाग सीट पर 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार इंद्रमणि बड़ोनी निर्वाचित हुए। उनको 10,199 और दूसरे नंबर पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी जीपी गैरोला को 9094 वोट मिले। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी विनय लक्ष्मी तीसरे स्थान पर रहीं।

देवप्रयाग ने निर्दलीय से लेकर हर राजनीतिक दल को दिया मौका

1969 में एक बार फिर इंद्रमणि बड़ोनी विजेता घोषित हुए, इस बार उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर दावेदारी पेश की थी। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी गोविंद प्रसाद गैरोला को हराया।

1974 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के टिकट पर गोविंद प्रसाद गैरोला चुनाव जीते और इंद्रमणि बड़ोनी दूसरे नंबर पर रहे। बड़ोनी नेशनल कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन (एनसीओ) के प्रत्याशी थे। वहीं निर्दलीय मातबर सिंह कंडारी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।

देवप्रयाग सीट पर 1977 में इंद्रमणि बड़ोनी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी विजयी हुए। उन्होंने जनता पार्टी के उम्मीदवार जीपी गैरोला को हराया, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी भू देव प्रसाद तीसरे स्थान पर रहे।

वहीं 1980 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के विद्या सागर नौटियाल ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय प्रत्याशी दिवाकर को हराया।

1985 में कांग्रेस प्रत्याशी शूरवीर सिंह सजवाण विधायक चुने गए। लोकदल के प्रत्याशी गोविंद प्रसाद गैरोला दूसरे स्थान पर रहे।

1989 में जनता दल के टिकट पर मंत्री प्रसाद नैथानी चुनाव जीते। उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी पूरब सिंह नेगी को हराया, जबकि उत्तराखंड क्रांति दल के दिवाकर भट्ट तीसरे और मातबर सिंह कंडारी चौथे नंबर पर रहे।

1991 में भाजपा के मातबर सिंह कंडारी ने कांग्रेस के धर्म सिंह भंडारी को पराजित किया। वहीं जनता पार्टी के प्रत्याशी मंत्री प्रसाद नैथानी तीसरे नंबर पर रहे।

1993 में भाजपा के मातबर सिंह कंडारी ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े मंत्री प्रसाद नैथानी को हराया। कांग्रेस प्रत्याशी जय विक्रम शाह तीसरे और यूकेडी प्रत्याशी दिवाकर भट्ट चौथे नंबर पर रहे।

1996 में भाजपा प्रत्याशी मातबर सिंह कंडारी निर्वाचित हुए। यूकेकेडी प्रत्याशी मंत्री प्रसाद नैथानी दूसरे और कांग्रेस के गोविंद प्रसाद गैरोला तीसरे नंबर पर रहे।

2002 में मंत्री प्रसाद नैथानी कांग्रेस के टिकट पर जीते, उन्होंने भाजपा के रघुबीर सिंह पंवार को हराया, जबकि उक्रांद के दिवाकर भट्ट तीसरे नंबर पर रहे।

2007 के चुनाव में उक्रांद के दिवाकर भट्ट ने कांग्रेस के मंत्री प्रसाद नैथानी को हराया। इस चुनाव में भाजपा के मगन सिंह तीसरे स्थान पर रहे।

2012 में निर्दलीय चुनाव लड़े मंत्री प्रसाद नैथानी एक बार फिर विधायक चुने गए, जबकि भाजपा के टिकट पर लड़ रहे दिवाकर भट्ट को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी शूरवीर सिंह सजवाण चौथे स्थान पर रहे, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी महिपाल सिंह तीसरे स्थान पर थे।

2017 में भाजपा के विनोद कंडारी विधायक बने, उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी दिवाकर भट्ट को हराया।

स्रोत- भारत चुनाव आयोग

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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