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छोटी सी कहानी और बड़ी सीखः स्वयं को बदलो

किसी जमाने में एक राजा था, जो प्रजा के हित के लिए कार्य करता था। एक दिन उसने अपने दरबारियों के साथ राज्य का पैदल ही भ्रमण करने का निर्णय लिया। सुबह से देर शाम तक राजा पैदल चला और जनता से मुलाकात की। महल में वापस लौटने पर राजा के पैरों में काफी दर्द होने लगा, क्योंकि राजा को पैदल चलने की आदत नहीं थी।

राजा के एक दरबारी ने सुझाव दिया, महाराज राज्य की सड़कें ठीक नहीं है। इनको बदलना पड़ेगा। राजा ने निर्णय लिया, क्यों न चमड़े की सड़कें बनाई जाएं, जिन पर बिना तकलीफ चला जा सकेगा। सड़कों के लिए बड़ी मात्रा में चमड़ा चाहिए था। वहीं राज्य का काफी धन इस परियोजना पर खर्च होता। राजा अभी इन सभी खर्चों का हिसाब लगा रहा था कि एक व्यक्ति ने सुझाव दिया कि महाराज सड़कों को बदलने से अच्छा है कि हम स्वयं में क्यों न बदलाव करें। राजा ने कहा, आपकी बात का मतलब नहीं समझा, कृपया करके विस्तार से बताएं। जरूर पढ़ें- चीन की कहानीःराजा की बिल्ली का नामकरण

उस व्यक्ति ने कहा, महाराज क्यों न सभी लोग पैरों में चमड़ा पहनकर चलें, इससे सभी आसानी से सड़कों पर चल सकेंगे। राजा को यह आइडिया क्लिक कर गया और फिर पैरों में पहने जाने वाले चमड़े ने जूतों का रूप ले लिया। यह कहानी संदेश देती है कि दुनिया को बदलने की जगह स्वयं में बदलाव की पहल होगी, तो कुछ भी बदलने की जरूरत नहीं है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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