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चंडीगढ़ में पर्यावरण बचाने हवलदार ने लगाए 38,000 पौधे

चंडीगढ़


पर्यावरण प्रदूषण आज विश्व समुदाय के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में है। लेकिन  एक छोटा प्रयास भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणादायी हो सकता है। शहरीकरण की वजह से हरियाली शहर ही नहीं, गांव में भी कम हो रही है। इसी हरियाली को बचाने की जिद में एक शख्स ने 38 हजार पौधों से प्रकृति की गोद भर दी। चंडीगढ़ पुलिस में तैनात कांस्टेबल देवेंद्र सूरा हजारों लोगों के लिए मिसाल बन चुके हैं। वह नौकरी के साथ-साथ वक्त निकाल कर अपने आसपास के लोगों को हरियाली के लिए प्रेरित तो करते ही हैं, साथ में पौधे भी लगवाते हैं। देवेंद्र पिछले 5 साल में 38 हजार पौधे लगा चुके हैं। इनमें चार हजार से अधिक पौधे पेड़ का रूप ले चुके हैं, जो 25 से 30 फुट का आकार लेकर लोगों को छाया व प्रकृति को खूबसूरती प्रदान कर रहे हैं। देवेंद्र के अभियान में सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं।

imgजिद में बदल चुके शौक में लोगों को पौधे उपलब्ध करवाने के लिए इन्होंने अपनी नर्सरी भी बना ली है। देवेंद्र लोगों को पीपल, बड़, नीम, आम और मेडिसिन प्लांट निशुल्क देते हैं। अमूमन लोग जन्मदिन की पार्टी कर लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। देवेंद्र अपने जन्मदिन पर लोगों से एक पौधा लगवाते हैं। उपहार में पौधा ही देते हैं। फोन आने पर पौधा खुद घर भी पहुंचाते हैं। रोजाना ऐसी कॉल आती रहती हैं। अब सैकड़ों लोग जन्मदिन पर पौधा लगाना नहीं भूलते। हर रविवार को वह तुलसी के पौधे निशुल्क देते हैं। देवेंद्र अपना आधा वेतन पौधारोपण में ही खर्च कर देते हैं।

मानसून सीजन में वह स्पेशल छुट्टियां लेकर अभियान में जुटते हैं। इस बार सवा लाख पौधे लगाने का लक्ष्य तय किया है। देवेंद्र ने बताया कि पुलिस ज्वाइन करने केलिए 2011 में वह चंडीगढ़ आए थे। यहां की हरियाली से इतने प्रभावित हुए कि अपने शहर सोनीपत को हरा-भरा बनाने का प्रण ले लिया। इसकी शुरुआत अपने गांव जागसी सूरा से की। देवेंद्र ने बताया कि पर्यावरण को नुकसान न हो, इसलिए आज तक अपना वाहन तक नहीं लिया। कभी आपात स्थिति में ही मोटराइज्ड व्हीकल का इस्तेमाल करते हैं, नहीं तो नियमित तौर पर साइकिल से चलते हैं। चंडीगढ़ में भी अपने घर से सचिवालय साइकिल से ही आते-जाते हैं। देवेंद्र गृह सचिव अनुराग अग्रवाल की एस्कॉर्ट में तैनात हैं। (एजेंसी)

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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