Blog Livecurrent AffairsFeaturedUttarakhand

क्या कनाडा के इस समृद्ध शहर से देहरादून के इन इलाकों का कोई रिश्ता है

मारखम नाम से कनाडा में भी एक गांव था, जो अब नगर बन गया है

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

देहरादून जिला में क्लेमनटाउन और मारखमग्रांट नाम के दो प्रमुख इलाके हैं। वर्तमान में डोईवाला नगर पालिका, पहले मारखमग्रांट ग्राम पंचायत का ही हिस्सा थी, इसकी पुष्टि यहां स्थित उसका पंचायत भवन है, जो आज भी यहीं से संचालित है। अब मारखमग्रांट के कई गांव नगर पालिका परिषद क्षेत्र में आ गए हैं।

देहरादून की मारखमग्रांट ग्राम पंचायत का नामकरण कैसे हुआ, क्या यह किसी शख्सियत के नाम पर है। यह एक सवाल है। इसको जानने के लिए हमें कनाडा के मारखम नाम के इलाके के बारे में कुछ जानना होगा।

मारखम नाम से कनाडा में भी एक गांव था, जो अब नगर बन गया है। कनाडा में 2021 की जनगणना के अनुसार, मारखम की आबादी 3,38,503 है, जो कि कनाडा में 16वें नंबर का बड़ा नगर बन गया है। मारखम शहर कनाडा का सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता है, फोर्ब्स ने इसको लगातार दूसरी बार भी कनाडा के सर्वश्रेष्ठ नियोक्ताओं के रूप में नामित किया है। देखें-  मारखम शहर सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता

सवाल उठता है क्या कनाडा के मारखम और देहरादून के मारखम के बीच कोई संबंध है। कनाडा के मारखम का नाम, वहां 1776 से 1807 तक यॉर्क के आर्कबिशप रहे विलियम मारखम के नाम पर पड़ा। विलियम मारखम का भारत से क्या संबंध था। इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। पर, इससे पहले हम वहां के मारखम इलाके के बारे में कुछ चर्चा कर लेते हैं।

मारखम इलाका कनाडा में डाउन टाउन टोरंटो से लगभग 30 किमी (19 मील) उत्तर पूर्व में है। 2021 की जनगणना के अनुसार, इसे यॉर्क क्षेत्र में सबसे बड़ा, ग्रेटर टोरंटो एरिया (जीटीए) में चौथा सबसे बड़ा और कनाडा में 16 वां सबसे बड़ा स्थान बताया जाता है।

यूरोप के लोगों के इस क्षेत्र में आने से पहले से यहां सैकड़ों वर्षों से स्थानीय लोग रह रहे थे। 1794 में मारखम टाउनशिप बना। शुरुआती वर्षों में कृषि-आधारित उद्योगों का विकास हुआ। टाउनशिप में कई नदियों और धाराओं ने आरा मशीनों और अनाज पिसने वाली मिलों को चलाया। बढ़ती आबादी और बेहतर परिवहन मार्गों के साथ शहरीकरण में वृद्धि हुई। 1850 में मारखम को टाउनशिप बनाया गया था और 1857 तक अधिकांश टाउनशिप का बहुत विस्तार हुआ और नए उद्योग जैसे वैगन वर्क्स, टेनरी और फर्नीचर फैक्ट्री विकसित होने लगीं।

1871 में रेलवे परिवहन ने नए सिरे से विकास किया। किसानों और मिल मालिकों के पास अपने उत्पादों को टोरंटो ले जाने का अधिक सुविधाजनक साधन मिल गया। माल की आपूर्ति के साथ व्यापार में तेजी आई। 1970 के दशक से, पड़ोसी टोरंटो के शहरी फैलाव के कारण मारखम तेजी से कृषि क्षेत्र से औद्योगिक नगरपालिका में स्थानांतरित हो गया।

एक जुलाई, 2012 को मारखम का दर्जा शहरी हो गया। इस शहर की एक वेबसाइट है, जिसमें आप उसके बारे में बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। कनाडा की कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुख्यालय मारखम में हैं, जिनमें होंडा कनाडा, हुंडई, जॉनसन एंड जॉनसन, जनरल मोटर्स, अवाया, आईबीएम, मोटोरोला, ओरेकल , तोशिबा, टोयोटा फाइनेंशियल सर्विसेज,  हुआवेई, हनीवेल और स्कोलास्टिक कनाडा आदि शामिल हैं। देखें- मारखम में टॉप 100 नियोक्ता

अब हम बात करते हैं, क्लेमेंट्स रॉबर्ट मारखम की, जो इंग्लैंड निवासी जियोग्राफर, एक्सप्लोरर और राइटर थे। 1863 और 1888 के बीच रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी के सचिव रहे। बाद में 12 वर्षों के लिए सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। मारखम ने रॉयल नेवी कैडेट और मिडशिपमैन के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने इंडिया ऑफिस में भूगोलवेत्ता के रूप में कार्य किया। पेरू के जंगलों से सिनकोना के पौधों का संग्रह करके भारत में प्लांटेशन कराना उनकी जिम्मेदारियों में शामिल था। सिनकोना से कुनैन निकाला जा सकता था, जो मलेरिया के उपचार में काम आता था।  ब्रिटिश भारत में सिनकोना को लाने और बढ़ाने के लिए, क्लेमेंट्स मारखम को नाइट की उपाधि दी गई थी।

क्लेमेंट्स मारखम का जन्म 20 जुलाई 1830 को स्टिलिंगफ्लीट, यॉर्कशायर में हुआ था. जो पिता की ओर से यॉर्क के आर्कबिशप विलियम मारखम के वंशज थे। आर्कबिशप विलियम मारखम वहीं हैं, जिनके नाम पर कनाडा के मारखम का नामकरण हुआ है।

देहरादून के क्लेमनटाउन और मारखम ग्रांट के बीच वाया दूधली घाटी कोई ज्यादा दूरी नहीं है। संभवतः यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं, क्लेमेंट्स मारखम के नाम पर ही तो इन इलाकों का नामकरण तो नहीं हुआ, क्योंकि क्लेमेंट्स मारखम का भारत से संबंध रहा है।

देहरादून के मारखमग्रांट के गांवः बुल्लावाला, झबरावाला, खैरी, धर्मूचक

मारखमग्रांट से नगर पालिका डोईवाला में मिलाए गए गांवः तेलीवाला, बाजावाला, नियामवाला, कुड़कावाला, हंसूवाला, माधोवाला, चांदमारी।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button