agricultureFeaturedNews

खेतों की मेढ़ों पर हाथी घास लगाई है तो चारे का संकट नहीं झेलना पड़ेगा

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान ने बाजरा और जंगली सरू से तैयार किया हाइब्रिड नैपियर

देहरादून। न्यूज लाइव

नैपियर (Napier Grass), जिसे सामान्य बोलचाल में हाथी घास (Elephant Grass) भी कहते हैं, पशुओं के चारे की कमी को पूरा करने के साथ आसपास के जंगलों को होने वाले नुकसान को भी काफी हद तक कम कर रही है। विकासनगर के लांघा गांव में इसका प्रयोग हुआ, जिसके सुखद परिणाम सामने आए।

वरिष्ठ पत्रकार गौरव मिश्रा के साथ एक साक्षात्कार में, भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान ( Indian Institute of Soil and Water Conservation) के मानव संसाधन विकास विभाग एवं पौध विज्ञान विभागाध्यक्ष  प्रधान वैज्ञानिक (वानिकी) डॉ. चरण सिंह बताते हैं, संस्थान ने हाईब्रीड नैपियर, जो बाजरा और जंगली सरू का क्रासब्रीड तैयार किया है। यह कम उपजाऊ मिट्टी में भी पैदा हो जाता है। पशु इसको बड़े चाव से खाते हैं, इसे खेतों की मेढ़ पर लगाकर चारे की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। इसको पानी की भी अधिक आवश्यकता नहीं है। ये मिट्टी के कटाव को रोकते हैं। इसको खेत की मेढ़ पर लगा दिया तो पशुओं के चारे के लिए जंगल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के मानव संसाधन विकास विभाग एवं पौध विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रधान वैज्ञानिक (वानिकी) डॉ. चरण सिंह। फोटो साभारः iiswc

बताते हैं,  चारा पत्ती की निर्भरता की वजह से वनों में पेड़ पौधों का अवैज्ञानिक तरीके से दोहन होता है। एक स्टडी में पाया गया कि घरों के पास, खेतों में सालभर उत्पादित होने वाली हाथी घास लगाने से आसपास के वन क्षेत्रों पर लगभग 31 फीसदी दबाव कम हो जाता है।

Also Read: खेतीबाड़ी में पिछड़ गया देहरादून के पास का यह गांव

Also Read: यूएस छोड़कर लौटे इंजीनियर ने गोवंश बचाने के लिए गांवों को रोजगार से जोड़ दिया

डॉ. सिंह के अनुसार, शुरुआत में जब संस्थान ने किसानों को नैपियर घास लगाने के लिए प्रेरित किया तो बहुत अच्छे परिणाम नहीं आए। किसानों का मानना था कि नैपियर लगाने से उनके खेतों की उर्वरक क्षमता कम हो जाएगी। हमारे लगाए गए पौधों को किसान ने उखाड़कर जंगल में फेंक दिया था। हमने कुछ पौधे गोबर के ढेर के पास भी लगाए थे। किसान ही बताते हैं, उनके पशु इन पौधों की तरफ आकर्षित हुए और इसको चाव से खाने लगे। तब उनको महसूस हुआ कि जिन पौधों को उन्होंने जंगल में फेंक दिया था, उनके बड़े काम के हैं।

हालांकि अभी तक देहरादून समेत आसपास के जिलों में सहारनपुर और हरियाणा से आने वाली बरसीम, बाजरा और चरी दुधारू पशुओं के लिए उपयोग में आती रही है। स्थानीय स्तर पर उत्पादित होने वाली कई प्रजातियों की घास को ये पशु (गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़) खाते रहे हैं। पर, हाइब्रिड नैपियर पशुपालन के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम है।

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान का हाइब्रीड नैपियर का प्रयोग पर्वतीय इलाकों में वनों पर निर्भरता को कम कर सकता है, वहीं चारा पत्ती के लिए किए जाने वाले श्रम का बोझ भी कम हो सकेगा। पर्वतीय इलाकों में पशुपालन और कृषि गतिविधियां महिलाओं के ही जिम्मे है। वहीं, सीढ़ीदार खेतों की मेढ़ों पर हाइब्रीड नैपियर लगाने से पानी से मिट्टी का कटाव नहीं होगा और घर के पास चारा मिलने से महिलाओं का समय भी बचेगा।

Contact Us:

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button