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हरीश रावत ने आरोप लगाया तो यूजर ने कहा, आप जैसे नेता को बिना प्रमाण ऐसे बयान नहीं देने चाहिए

देहरादून। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और सियासी आरोप प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है। सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गंभीर आरोप लगाया है, पर आरोप के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं दिया। इस पर यूजर्स ने जमकर कमेंट्स किए। एक यूजर ने कहा, आप जैसे नेता को बिना प्रमाण के ऐसे बयान नहीं देने चाहिए।
दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य में रिक्त चल रहे मुख्य सूचना आयुक्त पद पर नियुक्ति को लेकर गंभीर आरोप लगाया है। उनका आरोप है कि इस पद का सौदा हो चुका है।

पूर्व सीएम रावत ने ट्वीट किया है कि राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त का पद रिक्त है, उस पद का सौदा हो चुका है। एक खाटी आरएसएस से जुड़े हुए उत्तराखंडी मूल के रिटायर्ड IAS ऑफिसर को इस पद पर नवाजा जा रहा है, सबको साधा जा रहा है, साधने का काम दक्षिण भारत में, उद्योग में सितारे की तरह से पनप रहे एक उत्तराखंडी मूल के उद्योगपति लगे हुए हैं। वो कहते हैं, यदि ये शीर्ष पद भी बिकेंगे तो फिर बालू-बजरी और जमीनें तो बे भाव बिकेंगी ही बिकेंगी, धन्य है उत्तराखंड किस दिशा की ओर जा रहे हो !
सोशल मीडिया पोस्ट में हरीश रावत (Harish Rawat) ने राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) जैसे पद पर नियुक्ति के लिए सौदेबाजी का आरोप लगाया, पर इस संबंध में प्रमाण कुछ नहीं दिया। हरीश रावत पूर्व मुख्यमंत्री हैं, उत्तराखंड की राजनीति में उनका कद बहुत बड़ा है, इसलिए उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वो जो भी कुछ कहते हैं उसके बारे में उनके पास प्रमाण होंगे। हो सकता है, कुछ दिनों में हरीश रावत पूरे साक्ष्यों के साथ मीडिया से बात करें।
अगर, यह समझा जाए कि उनके पास प्रमाण नहीं है तो सवाल उठता है, आरोप क्यों लगाया। क्या हरीश रावत महज चुनाव के लिए इस तरह के गंभीर आरोप लगा रहे हैं। आरोप सही हैं या गलत, यह तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ही जान सकते हैं।
पर, सोशल मीडिया पर उनके बयान पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं हुई हैं। उनकी पोस्ट पर एक यूजर ने लिखा- आप जैसे नेता को बिना प्रमाण के ऐसे बयान नहीं देने चाहिए।
वहीं एक यूजर लिखते हैं- मैं भी दक्षिण भारत में हूँ इस समय,कृपया नाम बताएं उत्तराखंड मूल के उस पनपते हुए उद्यमी का मैं भी तो जानूं की कौन है? मैं 1996 से दक्षिण भारत में काम कर रहा हूँ,चाहे आंध्रप्रदेश (अविभाजित) का काकीनाडा हो, कर्नाटक के बेलगाम, मैसूर हों, तमिलनाडु के त्रिनलवेली, मदुरई या फिर चेन्नई हों। एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की, उत्तराखंड की मूल भावनाओं को आप ही समझ सकते हैं। इसी तरह कई और प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिनको आप उनकी पोस्ट पर देख सकते हैं।

 

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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