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उत्तराखंड में हार के बाद कांग्रेस में अंतर्कलह सार्वजनिक, प्रीतम के बयान पर यह बोले हरीश रावत

मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तथाकथित मांग करने वाले व्यक्ति को पदाधिकारी बनाने का फैसला किसका था, जांच होनी चाहिए: रावत

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में अंतर्कलह खुलकर सामने आ रहा है। लालकुआं सीट से चुनाव हारे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह बात सार्वजनिक कर दी कि वो रामनगर से ही चुनाव लड़ना चाहते थे। बाद में उन्हें लालकुआं भेजा गया, न चाहते हुए भी इस फैसले को स्वीकार करते हुए लालकुआं पहुंच गया। रावत के बयान से साफ है, उनको बिना इच्छा के लालकुआं भेजा गया था।

साथ ही, एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने कहा, मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तथाकथित मांग करने वाले व्यक्ति को पदाधिकारी बनाने का फैसला किसका था ! इसकी जांच होनी चाहिए। उस व्यक्ति को राजनीतिक रूप से उपकृत करने वालों को भी सब लोग जानते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने अपनी पोस्ट में कहा, मैं सभी उम्मीदवारों की हार का उत्तरदायित्व अपने सर पर ले चुका हूं और सभी को मुझ पर गुस्सा निकालने, खरी खोटी सुनाने का हक है।

उन्होंने प्रीतम सिंह के एक बयान पर अपनी बात रखते हुए कहा, प्रीतम सिंह जी ने एक बहुत सटीक बात कही कि आप जब तक किसी क्षेत्र में पांच साल काम नहीं करेंगे तो आपको वहां चुनाव लड़ने नहीं पहुंचना चाहिए। फसल कोई बोये, काटने कोई और पहुंच जाए, यह उचित नहीं है।

रावत ने लिखा, मैं बार-बार यह कह रहा था कि मैं सभी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करूंगा। स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में राय दी गई कि मुझे चुनाव लड़ना चाहिए अन्यथा गलत संदेश जाएगा। इस सुझाव के बाद मैंने रामनगर से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की। रामनगर मेरे लिए नया क्षेत्र नहीं था। मैं 2017 में वहीं से चुनाव लड़ना चाहता था। मेरे तत्कालिक सलाहकार द्वारा यह कहे जाने पर कि वो केवल रामनगर से चुनाव लड़ेंगे, सल्ट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते, तो मैंने रामनगर के बजाय किच्छा से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस बार भी पार्टी ने जब रामनगर से मुझे चुनाव लड़ाने का फैसला किया तो रामनगर से उम्मीदवारी कर रहे व्यक्ति को सल्ट से उम्मीदवार घोषित किया और सल्ट उनका स्वाभाविक क्षेत्र था और पार्टी की सरकारों ने वहां ढेर सारे विकास के कार्य करवाए थे।

पूर्व सीएम रावत ने लिखा है, मुझे रामनगर से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का था और मुझे रामनगर के बजाय लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का ही था। मैं रामनगर से ही चुनाव लड़ना चाहता था, मैंने रामनगर में कार्यालय चयनित कर लिया था और मूहुर्त निकाल कर नामांकन का समय व तिथि घोषित कर दी थी और मैं रामनगर को प्रस्थान कर चुका था।

रावत बताते हैं, मुझे सूचना मिली कि मैं लालकुआं से चुनाव लड़ूं, यह भी पार्टी का सामूहिक फैसला था। मैंने न चाहते हुए भी फैसले को स्वीकार किया और मैं रामनगर के बजाय लालकुआं पहुंच गया। मुझे यह भी बताया गया कि मुझे लालकुआं से चुनाव लड़ाने में सभी लोग सहमत हैं‌। लालकुआं पहुंचने पर मुझे लगा कि स्थिति ऐसी नहीं है। मैंने अपने लोगों से परामर्श कर दूसरे दिन अर्थात 27 तारीख को नामांकन न करने का फैसला किया और पार्टी प्रभारी महोदय को इसकी सूचना दी। उन्होंने कहा कि यदि मैं ऐसा करता हूं तो उससे पार्टी की स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। मैं ऐसा न करूं। 27 तारीख को न चाहते हुए भी मैंने नामांकन किया और मैंने अपने आपसे कहा कि हरीश रावत तुम्हें पार्टी हित में यदि आसन्न हार को गले लगाना है तो तुम उससे भाग नहीं सकते हो।

रावत ने पोस्ट में लिखा,  मैं केवल इतना भर कहना चाहता हूं कि श्री प्रीतम सिंह जी की बात से सहमत होते हुए भी मुझे किन परिस्थितियों में रामनगर और फिर लालकुआं से चुनाव लड़ना पड़ा। यदि उस पर सार्वजनिक बहस के बजाय पार्टी के अंदर विचार मंथन कर लिया जाए तो मुझे अच्छा लगेगा।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने सवाल पूछते हुए लिखा है, मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तथाकथित मांग करने वाले व्यक्ति को पदाधिकारी बनाने का फैसला किसका था! इसकी जांच होनी चाहिए। न उस व्यक्ति के नामांकन से मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता था, क्योंकि वह व्यक्ति कभी भी राजनीतिक रूप से मेरे नजदीक नहीं रहा था। उस व्यक्ति को राजनीतिक रूप से उपकृत करने वालों को भी सब लोग जानते हैं। उसे किसने सचिव बनाया, फिर महासचिव बनाया और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में उसे किसका समर्थन हासिल था, यह तथ्य सबको ज्ञात है, उस व्यक्ति के विवादास्पद मूर्खतापूर्ण बयान के बाद मचे हल्ले-गुल्ले के दौरान उसे हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा का प्रभारी बनाने में किसका हाथ रहा है, यह अपने आप में जांच का विषय है!

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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