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घंटी वाला डॉगी

एक बार एक डॉगी था, जिसकी आदत ने उसके आस पड़ोस में रहने वाले लोगों को परेशान कर दिया था। वह अपने घर के पास से होकर जाने वाले लोगों को काटने के लिए दौड़ता था। उसकी इस बुरी आदत की वजह से कोई उसको पसंद नहीं करता था। उसके डरावने दांतों और ताकतवर जबड़े को देखकर लोग दहशत में थे।

लोगों ने उसके मालिक से शिकायत की। मालिक का कहना था कि इसको बांधकर रखा जाता है, लेकिन कब अपनी जंजीर खोलकर लोगों के पीछे दौड़ने लगता है, पता ही नहीं चलता। उसके मालिक ने इस समस्या का हल निकालने की कोशिश में डॉगी के गले में छोटी सी घंटी बांध दी, ताकि लोग उससे सतर्क हो सकें। कुल मिलाकर यह घंटी लोगों के लिए चेतावनी थी कि वो समझ सकें कि काटने वाला डॉगी यहीं कहीं घूम रहा है या उनको काटने के लिए दौड़ रहा है।

अपने गले में छोटी सी घंटी बंधने से डॉगी काफी खुश हो गया। वह अपने साथियों से कहने लगा, देखो मेरे से लोग कितना डरते हैं। मेरे डरावने दांतों और शक्तिशाली जबड़े से बचने के लिए लोगों को सतर्क होना पड़ रहा है। सब मुझ से डरकर बचाव के उपाय करने लगे हैं। वह यह बात बड़े अभिमान के साथ कहता।

एक दिन एक समझदार डॉगी ने उसे समझाया, जिस घंटी को तुम अपने लिए गर्व का विषय बता रहे हो, वह तुम्हारे लिए लज्जा की प्रतीक है। तुम्हें यह समझना चाहिए कि तुम्हारे गलत व्यवहार से लोगों को सतर्क करने के लिए यह घंटी तुम्हारे गले में बांधी गई है। घंटी वाले डॉगी ने इस बात पर गंभीरता से विचार करके यह फैसला लिया कि भविष्य में वह किसी के पीछे नहीं दौड़ेगा। उसके बदलते व्यवहार को देखकर मालिक ने उसके गले से घंटी हटा दी और अब उसको जंजीर से बांधकर भी नहीं रखा जाता।

संदेश- दूसरों से गलत व्यवहार करके स्वयं को तारीफ के लायक नहीं समझना चाहिए। गलत व्यवहार करना तारीफ नहीं लज्जा का विषय है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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