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ब्रेस्ट कैंसरः एम्स ऋषिकेश में ‘पिंक वॉल’ ने किया जागरूक

हर वर्ष अक्टूबर माह को "स्तन कैंसर जागरूकता माह" के रूप में मनाया जाता है

ऋषिकेश। ब्रेस्ट कैंसर जनजागरूकता माह चल रहा है, एम्स के कॉलेज ऑफ नर्सिंग में ब्रेस्ट कैंसर पर लोगों को जागरूक करने के लिए पिंक वॉल तैयार की गई।  इस दीवार पर बनाई गई गुलाबी कलाकृतियों के माध्यम से दुनिया में बढ़ते ब्रेस्ट कैंसर के मामलों के कारण, बचाव के उपाय, स्तन कैंसर की अपने स्तर पर जांच पड़ताल और चिकित्सकीय उपचार को लेकर विभिन्न जानकारियां दी गई।

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‘पिंक वॉल ऑफ़ अवेयरनेस’ को प्रोत्साहित करने के लिए एम्स, ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉ. मीनू सिंह, डीन एकेडेमिक्स प्रो. डॉ. जया चतुर्वेदी ,चीफ ऑफ नर्सिंग रीता शर्मा एवं अन्य फैकल्टी सदस्य कार्यक्रम में शामिल हुए और उन्होंने छात्राओं के प्रयास की सराहना की।

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गौरतलब है, कि भारत में महिलाओं में पाया जाने वाला सबसे प्रमुख कैंसर “स्तन कैंसर” है, लिहाजा हर वर्ष अक्टूबर माह को ” स्तन कैंसर जागरूकता माह” के रूप में मनाया जाता है।

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इसके अंतर्गत एम्स ऋषिकेश में विभिन्न विभागों की ओर से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसी क्रम में कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग,एम्स, ऋषिकेश की ‘बी.एससी. नर्सिंग’ तृतीय वर्ष (बैच 2021) की छात्राओं ने जागरूकता के लिए एक प्रेरणादायी व रचनात्मक प्रयास किया।

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कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग की प्राचार्य प्रो. (डॉ.) स्मृति अरोड़ा और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रूचिका रानी के मार्गदर्शन में नर्सिंग छात्राओं ने इस वर्ष की थीम “थ्राइव 365” पर आधारित स्तन कैंसर से संबंधित तथ्यों व जानकारियों को कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग की दीवार पर प्रस्तुत किया।

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‘पिंक वॉल ऑफ़ अवेयरनेस’ के तहत तैयार की गई कलाकृतियों के जरिए लोगों को ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े आंकड़ें, बीमारी के लक्षण, कारण, जांच के तौर तरीके व बचाव के उपाय सहित तमाम जानकारियां उपलब्ध कराई गईं। इसके साथ ही, इस बीमारी से ग्रसित मरीज के मनोबल को बढ़ाने के स्लोगन लिखी तख्तियां भी प्रदर्शित की गईं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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