Blog Live

जो सुर्खियों में हैं, वो मैं नहीं… 

आज जो सुर्खियों में हैं, वो मैं नहीं हूं। मेरी दशा कहां बदली, मैं तो आज भी वहीं हूं, जहां पहले था। मुझ पर लगा ठप्पा हटाने की तुम्हारी हिम्मत कहां है। अगर तुमने ऐसा कर दिया तो समझो तुम्हारी छुट्टी। तुम तो मेरे नाम की गाते- बजाते हुए कुर्सियां कब्जाते हो। अब फिर मुझसे खेलने का काम शुरू कर दिया। तुम्हारा यह राग गाने, बजाने, सुनाने और पढ़ाने वालों को भी मैं जानता हूं। वो मुझे तभी याद करता है, जब मेरी तुमको जरूरत हो। मैं जन्मजात नहीं मानवाधिकार का मुद्दा हूं, लेकिन तुम्हें तो डर लगता है, मुझे मेरे अधिकार देकर।

तुम हमारा भला नहीं कर सकते तो अपने गाने-बजाने वालों से भी मना कर दो, वो हमारा राग न तो गाएं, न सुनाएं, न दिखाएं और न ही पढ़ाएं। हमें देखना चाहते हो तो तड़के निकल जाओ, शहर की सड़कों पर, वहां मिल जाएंगे, काम धंधे की तलाश में या फिर कुछ इकट्ठा करने में। हम बने ही ऐसी मिट्टी से हैं, जिनको न तो बारिश सताती है और न गर्मी और सर्दी। मेरे बच्चों को गटर में से कुछ तलाशते देख लोगे तुम। मेरा अक्श तुमको मैले कुचेले कपड़ों में, धूल मिट्टी में सने बालों वाले उन बच्चों में दिख जाएगा, जिनसे हमदर्दी की बात हमेशा कागजों में दफन होती है। झुलसाती धूप में नंगे पांव दौड़ते हैं मेरे बच्चे। क्या तुम गटर और नालों की ओर जाने वाली उनकी राहों को स्कूलों की ओर मोड़ सकते हो। क्या तुम उनको सम्मान से जीना सीखा दोगे। वो मुख्यधारा का हिस्सा क्यों नहीं बन सकते।

स्कूलों के मिड डे मील और सरकारी अस्पतालों में लगी लंबी लाइनों में मेरे अधिकतर लोग मिल जाएंगे। ट्रेनों के खचाखच भरे कोचों में  नजर आ जाऊंगा मैं। सड़कों पर बस गए मेरे अपने और कई तो वहीं से सरकारी खर्चे पर लाए कफन में लिपटाकर श्मशान में फूंक दिए गए। शहरों के चौराहों और तिराहों पर एक या दो दिन की मजदूरी की तलाश करते मेरे जैसे तमाम दिख जाएंगे। समय पर इलाज नहीं मिलने पर सड़कों पर दम तोड़ देते हैं मेरे अपने। हमको भूख भी बर्दाश्त है और प्यास भी, पर इसकी कोई सीमा तो होगी। 

गंगा में दूध बहाने में तुमको जो आनंद मिलता है, वह मुझे किसी से एक वक्त की रोटी पाने में। नदियों में रेत फांकते हैं मेरे अपने लोग। रेत से निकलने वाली गर्मी शरीर पर आग की लपटों की मानिंद लगती है, लेकिन मुझ पर तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक कि जान न निकल जाए।कामधंधे की तलाश में नदी दर नदी भटकते हमारे बच्चों को कौन स्कूल देगा दाखिला। इसलिए वो भी नहीं पढ़ते और फिर वो भी वही सब झेलने को मजबूर हो जाएंगे, जो हम झेल रहे हैं। सच मानिये, मैं कभी सुर्खिया नहीं बनता।

दुनिया आधुनिक हो गई पर मेरे लिए तो अब भी वही है, जो वर्षों पहले थी। उम्र 60 पार कर गई, लेकिन जानता हूं कि अगर आज भी धूप या बरसात से परहेज कर लिया तो शाम को घर में चूल्हा नहीं जलने वाला। मैं दुर्गंध फैलाती नालियों के किनारे रात बिता लेता हूं या किसी की दुकान खुलने से पहले मेरा उठना निहायत जरूरी होता है। मेरी सुबह भी सड़क, दोपहर भी सड़क और शाम भी सड़क। 60 पार करने के बाद भी जवान बनने की कोशिश दिखती है मुझमें, क्योंकि मुझे पेट भरने के लिए बोझ जो खींचना है। घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर बसता है मेरा परिवार, पर मैं तो यहां सड़कों पर रात गुजार रहा हूं। मैं दया नहीं बल्कि तुम्हारे सहयोग की चाहत रखता हूं।

मैं इंसान होते हुए भी इंसानों जैसा नहीं जी पाता। मैं भारत की आबादी का हिस्सा होते हुए भी विकास का हिस्सा नहीं बन पाता। मैं क्यों नहीं जुड़ सकता, इंसानों की बनाई मुख्यधारा से। तुम विकास की बात करते हो, पर क्या तुमने मेरा विकास होता देखा है। अब तो तुमने समझ लिया होगा कि जो सुर्खियों में हैं, वो मैं नहीं…

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button