agricultureBlog LiveNewsUttarakhandVillage Tour

उत्तराखंड में 95 साल के किसान ने सर छोटू राम को याद किया

किसान कर्जा लेकर खेती करता है, समय पर नहीं मिलता फसल का पैसा

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग

उत्तराखंड के 95 वर्षीय किसान सरजीत सिंह, जो लगभग 65 साल पहले बिजनौर से देहरादून के झबरावाला गांव में परिवार के साथ आए थे। इससे पहले पंजाब में रहते थे। किसान के हालातों पर चर्चा करते हुए सरजीत सिंह सर छोटू राम को याद करते हैं। सर छोटू राम, 1937 में संयुक्त पंजाब प्रांत में बनी यूनियनिस्ट पार्टी की सरकार में मंत्री थे। सर छोटू राम को कृषि सुधारों की योजनाएं बनाकर क्रियान्वित कराने के लिए जाना जाता है। उन्होंने भूमिहीन किसानों को निःशुल्क कानूनी परामर्श प्रदान किया था।

सरजीत सिंह कहते हैं, “मंत्री छोटू राम ने किसानों के हित में बहुत काम किया। वो एक ऐसा कानून लाए, जिससे किसान अपनी बेची हुई जमीन को वापस ले सकता था। इस व्यवस्था के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति हुई, जिनका काम किसान को उनकी जमीन वापस दिलाना था। इस वजह से किसान की जमीन कोई बहुत मुश्किल से ही खरीदता था, क्योंकि खरीदार को यह डर रहता था कि किसान अपनी जमीन वापस ले सकता है। इस प्रयास से खेती की जमीन बच गई।”

बताते हैं, “पहले हाथों से खेती होती थी, अब मशीनों से हो रही है। डेढ़ रुपया प्रति लीटर से डीजल 90 से ऊपर पहुंच गया, किसान का पैसा तो तेल में लग रहा है। लागत ज्यादा होने से खेती में आय कम हो गई। किसान खेती में खर्चे का हिसाब नहीं लगाता, अपनी मेहनत नहीं जोड़ता, नहीं तो खेती से पूरी तरह मोह टूट जाएगा।”

वो कहते हैं, “अब किसान की जमीन बिक रही है। शादियों पर भी ज्यादा खर्चा हो रहा है। बच्चों की पढ़ाई के लिए किसान को कर्जा लेना पड़ रहा है।”

बताते हैं, “जब हम आए थे, तब चीनी मिल थी। इस फैक्ट्री ने शुरू से ही किसी को भी समय पर पैसा नहीं दिया। केवल रिसीवर के समय ही समय पर पैसा मिल पाया।”

बुजुर्ग किसान का कहना है, “श्रमिकों ने गन्ना छिलाई की पेशगी 20 हजार रुपये मांगी है। किसान बैंक से पैसा लेकर खेती करते हैं। हमें कर्जा लेकर भी पैसा देना होता है। कहा जाता है कि किसान को कम ब्याज पर पैसा मिल जाता है। गन्ना किसान को ही ले लो, इस चीनी मिल( डोईवाला) ने कभी समय पर किसानों को पैसा नहीं दिया। मिल से पैसा देरी से मिलता है, इसलिए किसान समय पर बैंक का पैसा नहीं दे पाता और उनको ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ जाता है। ऐसे में यह कहना सही नहीं है कि किसान को कम ब्याज पर पैसा मिलता है। अगर, चीनी मिल समय पर भुगतान कर दे, तो फिर किसान समय पर बैंक का कर्ज निपटा देगा और ब्याज का भार भी नहीं बढ़ेगा।”

बताते हैं, “जब हम झबरावाला आए, उस समय जमीन अच्छी नहीं थी। जमीन बिना पानी के थी, इसलिए खेती हल्की थी। सरकार किसान की मदद करती थी। बैंक से कम ब्याज पर जो पैसा मिला, उससे किसान ने ट्यूबवैल लगाए थे। बाद में नहर भी आ गई। उस समय कुल मिलाकर लगभग सवा सौ घर थे। सरकार ने नहर बनाई थी, झड़ौंद से बुल्लावाला, झबरावाला तक। नहर सुसवा नदी से जुड़ी थी, उस समय सुसवा नदी का पानी हम पी लेते थे। अब तो सुसवा बहुत प्रदूषित नदी हो गई। इसमें देहरादून शहर का गंदा पानी मिल रहा है। पहले अनाज गेहूं, धान और गन्ने का वजन काफी था, जो अब कम हो गया। आबादी बढ़ने से खेती को नुकसान हुआ। गन्ना का क्षेत्रफल भी कम हो गया।”

बातचीत के दौरान ही, 95 वर्षीय बुजुर्ग किसान सरजीत सिंह सर छोटू राम को याद करते हैं। सर छोटू राम स्वतंत्रता से पहले, संयुक्त पंजाब प्रांत में मंत्री थे, जिनको किसानों का मसीहा कहा जाता है। सर छोटू राम 1916 से प्रकाशित जाट गजट नाम के अपने साप्ताहिक पत्र में लेख लिखते थे। इसमें “बेचारा किसान” नाम से कुछ लेख लिखे। किसानों के नेता चौधरी छोटूराम पंजाब प्रांत में विकास मंत्री थे।

अंग्रेजों ने उनको ‘सर’ की उपाधि दी और जनता ने ‘रहबरे आजम’, ‘किसान मसीहा’ और ‘दीन बंधु’ के नाम से सम्मान प्रदान किया।

उन्होंने किसानों को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए साहूकार पंजीकरण एक्ट 1938 को प्रभावी कराया, जिसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज नहीं दे सकता था और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर सकता था। इस अधिनियम के कारण बड़ी संख्या में सूद लेकर उत्पीड़न करने वालों पर अंकुश लग गया।

दीनबंधु चौधरी छोटू राम ने कर्जा माफी अधिनियम बनवाया, जिसके जरिये किसानों और मजदूरों को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराया गया। इससे तहत, अगर कर्जे का दोगुना पैसा दिया जा चुका है, तो ऋणी को कर्जे से मुक्त माना जाएगा। कर्जा माफी (रीकैन्सिलेशन) बोर्ड बनाए गए, जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसमें दुधारू पशुओं, बछड़ों, ऊँट, घेर सहित आदि आजीविका के साधनों की नीलामी पर रोक लगा दी गई थी।

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट 1938 के अनुसार, जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थीं तथा 37 साल से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापस दिलाई गई। इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना पत्र देना होता था। इस कानून के अनुसार, मूल राशि का दोगुना धन साहूकार प्राप्त कर चुकी है, तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिए जाने का प्रावधान किया गया।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर मानव भारती संस्था में सेवाएं शुरू कीं, जहां बच्चों के बीच काम करने का अवसर मिला। संस्था के सचिव डॉ. हिमांशु शेखर जी ने पर्यावरण तथा अपने आसपास होने वाली घटनाओं को सरल भाषा में कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। जब भी समय मिलता है, अपने मित्र मोहित उनियाल व गजेंद्र रमोला के साथ पहाड़ के गांवों की यात्राएं करता हूं। ‘डुगडुगी’ नाम से एक पहल के जरिये, हम पहाड़ के विपरीत परिस्थितियों वाले गांवों की, खासकर महिलाओं के अथक परिश्रम की कहानियां सुनाना चाहते हैं। वर्तमान में, गांवों की आर्थिकी में खेतीबाड़ी और पशुपालन के योगदान को समझना चाहते हैं। बदलते मौसम और जंगली जीवों के हमलों से सूनी पड़ी खेती, संसाधनों के अभाव में खाली होते गांवों की पीड़ा को सामने लाने चाहते हैं। मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए ‘डुगडुगी’ नाम से प्रतिदिन डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे। यह स्कूल फिलहाल संचालित नहीं हो रहा है। इसे फिर से शुरू करेंगे, ऐसी उम्मीद है। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी वर्तमान में मानव भारती संस्था, देहरादून में सेवारत संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker