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जब बैर तोड़ने के लिए भरी दोपहरी में करते थे पदयात्रा

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कुड़कावाला मैदान के पास किसी से मिलने गया था। अचानक बचपन के मित्र घनश्याम गुप्ता से मुलाकात हो गई। बहुत दिनों से घनश्याम से मिलना चाह रहा था। भाई बहुत मेहनती है। पहले डोईवाला के एक मेडिकल स्टोर पर वर्षों सेवाएं दीं। मिलनसार दोस्त घनश्याम अब 12 साल से कुड़कावाला में परचून की दुकान चला रहे हैं। अच्छे व्यवहार की वजह से दुकान अच्छी चल रही है। कुछ देर की मुलाकात में बचपन की बहुत सारी बातों को ताजा किया, जैसे कि ताऊजी की दुकान से नमकीन चोरी करके खाना, खेत से गन्ना तोड़ते वक्त पकड़े गए तो खेत वाले ने आधा दिन अपने खेत में मेहनत कराई, बैर तोड़ने के लिए दो किमी. दोपहरी में पदयात्रा करना, टीवी देखने के लिए दोस्ती बढ़ाना, गलियों में दौड़ दौड़कर चोर सिपाही खेलना…, न जाने कितने किस्से हैं हमारे बचपन के।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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