सरिता बोलीं, विपदा आए तो मेरी तरह चट्टान बनकर खड़े हो जाओ
दो बच्चों के साथ अकेली रह गईं सरिता ने घर बनाने के लिए तोड़े 400 कट्टे कंक्रीट
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
“करीब 14 साल पहले पति की मृत्यु हो गई थी। हम उनको इलाज के लिए दिल्ली तक ले गए। आर्थिक हालात यह थे कि उनके इलाज के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे, गांववालों ने सहयोग किया, पर हम उनको नहीं बचा पाए। मेरे सामने अंधेरा छा गया, पर हमें जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए कुछ तो करना था। हौसलों से मुश्किलों में भी राह दिख जाती है। दो बच्चों को पालने, उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी थी। मेरे पास एक भैंस थी, जिसके दूध को बेचकर और कुछ खेतीबाड़ी करके जीवन को आगे बढ़ाना था। कड़ी मेहनत की, संघर्ष के दौर में मिले अनुभवों ने मुझे बहुत कुछ सीखा दिया। आज मैं महिलाओं के स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हूं और अफसरों व जनप्रतिनिधियों के सामने अपने समूह की बात रख सकती हूं, ” त्यूड़ी ग्राम पंचायत के स्यूल गांव में रहने वालीं सरिता देवी बताती हैं।
लगभग 47 वर्षीय सरिता देवी से मुलाकात के लिए हम जल्द सुबह उनके स्यूल गांव स्थित घर पहुंच गए। उस समय सरिता देवी सोल्टी (कंडी) में दूध की कैन रखकर कलेक्शन प्वाइंट पर जा रही थी। जब सुबह करीब साढ़े आठ बजे घर लौटीं तो उनकी सोल्टी में घास थी।बेहद सरल स्वभाव की सरिता देवी से हमने उनके बारे में जानना चाहा। इस समय उनके पास एक गाय है और कुछ खेतीबाड़ी है। इसके अलावा, सरिता मनरेगा में भी श्रम करके कुछ आय अर्जित कर लेती हैं। मई-जून में उन्होंने श्रीकेदारनाथ धाम के लिए चौलाई के लड्डुओं का प्रसाद बनाया था, जिसमें उनको चार हजार रुपये से ज्यादा की आय हुई।
सरिता देवी का बेटा अंकित, इन दिनों रोजगार के सिलसिले में श्रीकेदारनाथ गया है। त्यूड़ी गांव के अधिकतर लोग श्रीकेदारनाथ धाम यात्रा मार्ग पर दुकानें चला रहे हैं या उनमें काम कर रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग खच्चरों से यात्रियों को धाम तक पहुंचाने का व्यवसाय कर रहे हैं।
पीठ पर ठेकी लादकर पहाड़ के रास्तों से होते हुए रोड तक दूध पहुंचाया
सरिता बताती हैं, पति की मृत्यु के समय, मेरे पास एक भैंस थी, जो हमारे लिए अंधेरे में किसी रोशनी से कम नहीं थी। मेरी मां ने यह भैंस दी थी, जिसके सहारे बच्चों को पढ़ाया लिखाया। उस समय भैंस सुबह शाम दस लीटर दूध दे रही थी, इससे हमें घर परिवार चलाने में कुछ मदद मिली। बच्चों को एक बूंद दूध नहीं दिया। पीठ पर ठेकी लादकर तीन-चार किमी. पैदल चलकर त्यूड़ी से श्रीकेदारनाथ हाईवे पर ब्यूंगगाड़ तक दूध पहुंचाती थी, वहां से एक संस्था की गाड़ी आकर दूध ले जाती थी। बाद में, मैंने काफी समय तक गांव से किसी से एक लीटर, किसी से दो लीटर दूध इकट्ठा करके भी ब्यूंगगाड़ सड़क मार्ग तक पहुंचाया। अभी गांव में दूध कम है, जो भी है, सभी से इकट्ठा करके एक अन्य महिला ब्यूंगगाड़ तक पहुंचाती है।
सरिता देवी हमें घर से कुछ दूरी पर बनी गौशाला और अपनी गाय दिखाती हैं। वहां पास में अन्य ग्रामीणों की गौशाला भी बनी हैं। गौशालाओं से आगे खेत हैं, जहां इन दिनों मंडुआ और धान की फसल उगी है। धान हाल ही में बोया गया है। गौशाला और खेत तक के रास्ते में हमने कई महिलाओं को हाथ में दरांतियां और पीठ पर घास से भरी कंडियां ले जाते हुए देखा। बरसात के दिन हैं, इसलिए आसपास काफी हरियाली दिख रही है। स्रोतों और सिंचाई गूलों में भरपूर पानी है। बताते हैं, गर्मियों में पानी काफी कम हो जाता है।
कमरा बनाने के लिए खुद बनाए सीमेंट के ब्लॉकः सरिता
2014-15 में इंदिरा आवास योजना में कमरा बनाने के लिए 45 हजार रुपये मिले। मुझे पता था कि 45 हजार रुपये में घर नहीं बन पाएगा। मैंने बेटे से सलाह ली, क्या करना चाहिए। उसने अपने मामा से खच्चर लिए और रेत-पत्थर खुद ढुलान करके घर तक पहुंचाए। मैंने चार सौ कट्टे कंक्रीट तोड़े हैं। मेरी जैसे विपदा किसी पर नहीं आए। अगर किसी पर आए तो वो चट्टान की तरह खड़ा हो जाए। इंसान को अच्छे काम अपनाने चाहिए, इसलिए वो किसी के सामने नहीं झुकता।
कंक्रीट तोड़कर अपने पिता से जानकारी लेकर खुद ही दो कमरों, लैट्रीन- बाथरूम के लिए ब्लॉक (दीवार बनाने के लिए सीमेंट की ब्रिक्स) बनाए। पिता ने हमारा घर बनाया और लेंटर डालने में गांववालों ने सहयोग किया। गांव ने हमेशा मुझे सहयोग किया। पति की बीमारी के समय गांववालों ने, जिससे जितना बना, हमें सहयोग किया था।
रिंगाल की टोकरी और रस्सियां खुद बनातीं
खेतीबाड़ी करती हूं, साग सब्जी खेतों में ही उगाती हूं। बाजार से कुछ नहीं खरीदती। यहां तक कि घास लाने के लिए सोल्टी (कंडी) और रस्सी भी खुद बनाती हूं। लोग मुझसे कंडी खरीदते हैं। इनको बनाने के लिए पहले रिंगाल बहुत दूर जंगल से लाती थी। मैं अब उतना दूर नहीं जा पाती, इसलिए घर पर ही रिंगाल का एक पौधा लगाया है। कोई ले गया तो ठीक है, नहीं तो अब अपने लिए ही कंडी, रस्सी बनाती हूं।
पहले मायके का बाजार भी नहीं देखा था…
मैंने तो अपने मायके का बाजार भी नहीं देखा था। मुझे अपना नाम लिखना नहीं आता था। अब बैंक से जुड़े समूह के सभी काम कर रही हूं। मुझे पता है कि पासबुक में कितना पैसा है, कितना पैसा निकाला है। पूर्व प्रधान बीना देवी के पति दयाल सिंह सेमवाल ने मुझे सिखाया है कि कितना पैसा खाते में आया है, कितना जमा किया। उनका शुक्रिया करती हूं। मुझे स्वयं सहायता समूह से जोड़ने और मदद करने में मानव भारती संस्था की मैडम शाहिस्ता खान और हिकमत रावत भैया का बड़ा योगदान है। सरिता देवी, कीर्तन सहित विभिन्न सामाजिक कार्यों में भागीदारी करती हैं।
एक शिक्षक ने सिखाया नाम लिखना, नंबरों की पहचान करना
सरिता देवी बताती हैं, 13 महिलाओं के समूह आरती स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष होने के नाते, मुझे बैंक पासबुक में हिसाब किताब देखना होता है। बैंक भी जाती हूं। मैं स्कूल में पढ़ी लिखी नहीं हूं, पर एक शिक्षक, जो तिलवाड़ा के थे, ने मुझे कहा था- “बहिन जी आप अपना नाम नहीं लिखना नहीं सीखोगी, तो ऐसे ही मर जाओगी। स्कूल में ज्ञान गंगा चल रही है तो सभी महिलाएं आकर अपना नाम लिखना सीखो। वो इंगलिश में लिख रहे थे एक, दो, तीन…, वो बता रहे थे कि इन नंबरों को सीखो, नहीं तो आप पैसों को नहीं पहचान पाओगे। जब भी मैं बैंक में जाकर पासबुक हिसाब देखती हूं तो उन शिक्षक भाई की याद आ जाती है, जिन्होंने मुझे सिखाया था, बहनजी, पीछे नहीं रहना है, मरने के बाद साथ केवल ज्ञान ही जाता है।”
मनरेगा में भी काम करती हैं सरिता
आजकल उनके गांव में जलाश्य बनाने का काम चल रहा है। मनरेगा में होने वाले इस काम में सुबह नौ से दोपहर एक बजे तक गांव की कई महिलाएं काम करती हैं। झाड़ियों का कटान करना, पत्थरों को हटाने का काम करते हैं। बहुत अच्छा लगता है, जब सभी लोग एकजुट होकर अपने गांव के लिए काम करते हैं। यह जलाश्य हमारे सभी के काम आएगा। इससे गांव का सौंदर्यीकरण भी होगा। इससे पहले सुबह खेतों में जाकर पशुओं के लिए चारा ले आती हूं।
सरिता के अनुसार, उन्होंने श्रीकेदारनाथ धाम का प्रसाद चौलाई के लड्डू भी बनाए। ग्राम प्रधान सुभाष रावत और गीता रावत ने प्रसाद बनाने का काम गांव की महिलाओं को दिलाया, उनका बहुत-बहुत धन्यवाद। उनका कहना है, मनरेगा में श्रम के पैसों से घर चलता है, बाकि पैसा बचाती हूं।
बेटे और बेटी को समान रूप से पढ़ायाः तमाम संघर्ष के बाद भी, मैंने अपनी बेटी को ठीक उसी तरह पढ़ाया, जैसा कि बेटे को, ताकि बेटी को यह न लगे कि मां ने मेरी साथ भेदभाव किया है। दोनों को इंटर तक पढ़ा सकी। बेटा इन दिनों श्रीकेदारनाथ यात्रा में रोजगार के लिए गया है।