हम आपको “राम की शबरी” से मिलवाते हैं
लिखना नहीं जानतीं, इसलिए बोलकर गीतों की रचना करती हैं सुलोचना
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
57 साल की सुलोचना देवी को अगस्त्यमुनि क्षेत्र में ‘राम की शबरी’ के नाम से पुकारा जाता है। जब, सुलोचना अपने संघर्ष के बारे में जिक्र कर रही थीं, उस समय उनके पास बैठीं महिलाओं की आंखें नम हो रही थीं। मैंने महिलाओं को आंसू पोंछते हुए देखा। वो जितना अच्छा गाती हैं, उतने ही अच्छे गीतों की रचना भी करती हैं। हमें यह जानकर बहुत अचरज हुआ कि उन्होंने किसी भी गीत को कागज पर नहीं उतारा, क्योंकि वो लिखना नहीं जानतीं। सिर्फ बोलकर, गुनगुनाकर गढ़वाली में गीतों की रचना करने वाली सुलोचना को अपना हर गीत पूरा याद रहता है, जो हर धार्मिक कार्यक्रम, कीर्तन में वो मधुर स्वर में गाती-सुनाती हैं।
सुलोचना देवी को ‘राम की शबरी’ के नाम से पुकारने की वजह, उनके संघर्ष और हिम्मत नहीं हारने से जुड़ी है। 1982 में 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ था और उसी वर्ष उनके पति का देहांत हो गया। यहां से उनका संघर्ष शुरू हो गया, जो आज भी चल रहा है। अगस्त्यमुनि में अकेली रहने वालीं सुलोचना बताती हैं, पति की मृत्यु के बाद एक साल के भीतर ही उनको अलग रहना पड़ गया। उस समय, उनको प्रदेश सरकार से 50 रुपये पेंशन मिलती थी, जिससे गुजारा चलता था। भाई भी कुछ सहयोग करते थे। इस पैसे में से कुछ बचाकर पूजा-पाठ, धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल करने लगीं।
उन्होंने बताया, मैंने अकेले रहते हुए भी स्वयं को कभी अकेला महसूस नहीं किया, क्योंकि मैं ईश्वर में आस्था रखती हूं और मानती हूं कि वो मेरे साथ हैं। समाज ने बहुत स्नेह किया, सम्मान किया, इसलिए तमाम चुनौतियों के बाद भी जीवन आगे बढ़ता रहा।
“2013 की आपदा में मेरा घर टूट गया, मैं बेघर हो गई। सरकार ने राहत राशि दी, जिससे दूसरी सुरक्षित जगह घर बनाया, जिस दिन नये घर में पहुंची, तो मैं काफी डरी हुई थी। यह घर बहुत एकांत में था। मैं यह सोचकर डर रही थी कि यहां अकेले कैसे रहूंगी। मैंने खुद को कमरे में बंद कर दिया और नौ दिन तक कुछ नहीं खाया। मैं बहुत दुखी थी। मकान के निर्माण कार्य की देखरेख सही तरीके से नहीं होने की वजह से वो बहुत अच्छा नहीं बन पाया। उसमें अभी से पानी टपकने लगा है ,” सुलोचना देवी बताती हैं।
बताती हैं,घर बनाने में स्वयं मेहनत करके कुछ पैसा जोड़ा है। उन्होंने अपने घर पर श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन कराया था। अगस्त्यमुनि शहर और आसपास के गांवों से लोग वहां पहुंचे। तभी से लोग मुझे ‘राम की शबरी’ कहते हैं। उनका कहना होता है कि सुलोचना ने शबरी की तरह अपने घऱ भगवान को बुलाया है। मुझे अच्छा लगता, जब लोग मुझे इस नाम से पुकारते हैं। यह उनका स्नेह है, सम्मान है।
पाट्यौ गांव की सरिता देवी बताती हैं, ऐसा कोई कीर्तन नहीं है, जिसमें सुलोचना देवी नहीं पहुंची हों। हमें उनका इंतजार रहता है,वो जब भी आती हैं, हमें नया गीत सुनाती हैं। हमने भी उनके साथ कई गीत गुनगुनाते हुए याद किए हैं। जीवनभर संघर्ष करने वाली दीदी (सुलोचना देवी) हम सभी के सामने इसलिए खुश रहती हैं कि वो हमें प्रसन्न देखना चाहती हैं।
सुलोचना देवी बताती हैं, वो नये गीतों पर विचार करती हैं, गुनगुनाती हैं और गाती हैं। उनके बनाए गीत थोड़ा लंबे होते हैं। वो हमें श्रीकेदारनाथ भगवान की महिमा पर रचा गीत- चम चम कदी, बाबा तेरी डोली चम चम कदी… सुनाया।
वो कहती हैं, संघर्ष करने वाले का भगवान साथ देता है। क्या आपने कभी अपने गीतों को एलबम निकालने पर विचार किया, पर उनका कहना था, मैंने कभी इस बारे में नहीं सोचा। मेरा दायरा सीमित है।
सुलोचना बताती हैं, उन्होंने अपने ऊपर आई विपदा पर भी एक गीत बोला है। इस पर पास बैठी महिलाएं कहती हैं, यह गीत सुनकर हम बहुत भावुक हो जाते हैं। सुलोचना गाती हैं- श्री पंचमी माघे की, दशा सुन्याला भागै की…।
गीतों को लेकर आपकी किसी योजना के सवाल पर उनका जवाब है- भगवान से प्रार्थना है कि मुझे अपने धाम में ले जाएं। यहां मेरी जरूरत नहीं है, किस को होगी मेरी जरूरत…।
पाट्यौ निवासी सरोजनी बताती हैं, सुलोचना देवी ने अपनी जमीन लोगों को खेतीबाड़ी के लिए दी है, इसके बदले में किसी से कुछ नहीं लेतीं। उनका मानना है, इससे उनके खेत बंजर नहीं होंगे और कुछ लोगों की मदद भी हो जाएगी।