शुक्रवार 25 दिसंबर 2020 को हमारी ऋषिकेश से लेकर लक्ष्मणझूला तक की यात्रा का मकसद था, उन शख्सियत से मुलाकात करना, जिन्होंने हमारे और प्रकृति के बीच संवाद को बढ़ाया है। वो प्रकृति के हर रंग-रूप से हमें रू-ब-रू कराने के लिए ग्लेशियरों, नदियों, पर्वतों और वनों के होकर रह गए। हम बात कर रहे हैं फोटोग्राफी के क्षेत्र में जाने पहचाने हस्ताक्षर त्रिभुवन सिंह चौहान जी की।
चौहान जी से मुलाकात में उत्तराखंड में पर्यटन विकास से समुदायों की आर्थिक आत्मनिर्भरता पर बात हुई। होम स्टे योजना पर चर्चा के साथ उस पूरे मैकेनिज्म को जानने की कोशिश की, जो पर्यटन विकास में स्थानीय लोगों की भागीदारी पर आधारित है। उन्होंने फोटोग्राफी के रील से लेकर रियल टाइम तक के सफर के साथ ही कई तकनीकी जानकारियों को साझा किया।
विश्व प्रसिद्ध फोटोग्राफर, पर्वतारोही और योगी स्वामी सुन्दरानंद जी के ब्रह्मलीन होने पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी सुंदरानंद जी जैसे व्यक्तित्व की कमी हमेशा खलती रहेगी। उनके निधन से फोटोग्राफी का एक युग समाप्त हो गया। उन्हें लगता है कि हजारों वर्ष बाद भी स्वामी सुंदरानंद की तरह महान फोटोग्राफी का युग वापस नहीं आएगा।
ख्यातिप्राप्त फोटोग्राफर त्रिभुवन सिंह चौहान ने युवाओं को फोटोग्राफी के जुनून को बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण टिप्स दी, जिसे आप इस वीडियो ब्लाग में जान सकते हैं।
डोईवाला से लक्ष्मणझूला जाने के लिए आपको पहले ऋषिकेश जाना पड़ेगा। मैं लंबे समय बाद ऋषिकेश गया था, तो बड़े भाई वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार प्रबोध उनियाल जी से मुलाकात होना बनता था। मुझे ऋषिकेश पसंद है और अपने पुराने परिचित भी, जिनसे अक्सर सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़ा रहा हूं। प्रबोध जी ने कोरोना संक्रमण के लॉकडाउन के दौरान मेरा कमरा शीर्षक से एक पुस्तक का प्रकाशन किया था। इस पुस्तक में उत्तराखंड के ख्याति प्राप्त साहित्यकारों, पत्रकारों और नये लेखकों ने अपने कमरे के साथ संबंधों का जिक्र किया है।
प्रबोध जी ने कुछ वर्ष पहले तक बच्चों का नजरिया बाल पत्रिका प्रकाशित की, जो काफी लोकप्रिय रही। उन्होंने मेरा कमरा, डॉ. दिनेश शर्मा की किताब लोहार मामा और बच्चों का नजरिया पत्रिका के कुछ अंक भेंट किए, जो पठनीय हैं। प्रबोध जी के साथ बच्चों के समाचार पत्र डुगडुगी के प्रकाशन पर चर्चा करके उनसे अपने अगले पड़ाव त्रिवेणीघाट के लिए विदा ली। हमारे साथ, रानीपोखरी के पास डांडी गांव निवासी योग गुरु प्रशांत शर्मा भी थे।
साथ-साथ, मैं आपके साथ ऋषिकेश से लेकर लक्ष्मणझूला तक की यात्रा में जो कुछ देखा, महसूस किया, को भी साझा करना आवश्यक समझता हूं।
मैं अपने साथियों को हमेशा यह कहता रहा हूं कि अगर आपने पत्रकारिता की एबीसीडी… को जानना है तो ऋषिकेश को कम से कम दो साल अपना कार्यक्षेत्र जरूर बनाइए। यहां पत्रकारिता बहुआयामी और असीमित संभावनाओं वाली है। यहां की पत्रकारिता आपको उस फ्रेम से बाहर निकालती है, जिससे बाहर के बारे में अमूमन बहुत सारे पत्रकार नहीं सोचते या करना नहीं चाहते। मैं यहां पत्रकारिता की बात कर रहा हूं, न कि किसी समाचार पत्र में नौकरी की।एक अखबार में नौकरी के दौरान वर्ष 2003 में ऋषिकेश से स्थानांतरण हो गया, उसके बाद ऋषिकेश में नौकरी वाली रिपोर्टिंग का मौका नहीं मिला। तब से लेकर आज का ऋषिकेश शहर बहुत बड़े बदलाव की ओर है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है, यह होना चाहिए, इसमें बुरा कुछ भी नहीं है। बाजार तो मांग के अनुसार चलता है और उसके रूप व व्यवहार में यह सबकुछ दिखता है। यह अच्छी बात है कि बाजार में निवेश बढ़ रहा है, यह तो जन सामान्य की आर्थिक प्रगति का संकेत देता है। आर्थिक प्रगति में मां गंगा के प्रवाह की तरह अविरलता बनी रहनी चाहिए। यह अविरलता बनाए रखनी है तो गंगा की स्वच्छता का ध्यान भी हमें ही रखना होगा।
कुछ देर त्रिवेणीघाट पर चहल पहल को देखा और फिर लक्ष्मणझूला क्षेत्र की ओर रुख कर लिया। ऋषिकेश में लक्ष्मणझूला मार्ग की हालत वर्षों पहले जैसी ही है। इसमें कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला। कुछ ही देर में टिहरी गढ़वाल जिला की सीमा में प्रवेश कर लिया।
कैलाश गेट होते हुए गंगा नदी को पार करने के लिए जानकी सेतु पर पहुंचे। यह विशाल पुल हाल ही में निर्माण हुआ है। पुल से गंगा नदी और आसपास के नजारे आपको आकर्षित करते हैं। इस पुल को पैदल या फिर बाइक से पार कर सकते हैं। बीच में पैदल आने-जाने के लिए एक तथा किनारों के दो रास्ते बाइक के लिए बनाए गए हैं।
पुल पर चलते समय केवल बाइक पर ही ध्यान दीजिए, इधऱ-उधऱ देखा तो संतुलन बिगड़ सकता है। सुबह के दस बजे तक तो कम ही लोग पुल के पास नजर आ रहे थे, पर शाम को तो वहां दोनों ओर मेला लगा था। कोई गंगा तटों पर टहल रहा था तो कोई सेल्फी ले रहा था। यहां युवाओं की संख्या ज्यादा थी। परिवार के साथ भी लोग यहां घूमने आए थे। जानकी सेतु पर बाइक्स के लिए बनाए दोनों रास्ते पैदल चलने वाले भी इस्तेमाल कर रहे थे। वो ऐसा इसलिए कर रहे थे कि वहां से गंगा नदी के दर्शन करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी, ठीक रामझूला व लक्ष्मणझूला पुल की तरह।
यहां पर्यटकों से ज्यादा स्थानीय लोग दिखाई दिए। कोविड-19 संक्रमण की वजह से इन दिनों पर्यटक कम हैं। अन्य दिनों की तुलना में इस क्षेत्र में विदेशी पर्यटक भी कम ही दिखाई दिए।
जानकी सेतु पार करके हम पहुंचे पौड़ी जिला स्थित स्वर्गाश्रम क्षेत्र में। यहां वानप्रस्थ आश्रम, परमार्थ निकेतन, गीता भवन और गंगा तटों के बीच से होते हुए रामझूला तक पहुंचते हैं। इस दौरान आप स्वर्गाश्रम बाजार में खरीदारी कर सकते हैं। यह सड़क आज भी उतनी ही चौड़ी है, जितनी मैंने 20 साल पहले या अपने बचपन में देखी थी। सड़क चौड़ी होने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती, जबकि यहां आवागमन पहले से काफी बढ़ा है।
वैसे भी टिहरी हो या पौड़ी गढ़वाल जिला, गंगा के दोनों तटों को आलीशान निर्माण से ढंकना कहां तक सही है, इस पर चर्चा होती रही है और होती रहनी चाहिए। मैं न तो बदलाव का विरोधी हूं और न ही अपने सुख के लिए प्रकृति की किसी भी धरोहर को अपना संसाधन बनाने का पक्षधर। मैं तो जीवन के लिए बहुत आवश्यक गंगा की अविरलता की पैरवी करता हूं। मैं प्रकृति की हर उस सौगात का सम्मान करता हूं, जो उसने हमें जीने के लिए प्रदान की है।
रामझूला के सामने से होते हुए गंगा के शांत प्रवाह के दर्शन करते हुए आगे बढ़ रहे थे। यह क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल की यमकेश्वर तहसील क्षेत्र में स्थित नगर पंचायत जौंक में आता है। मैं तो सुबह और शाम इसी स्थान पर एकटक बैठकर गंगा दर्शन का लाभ उठाना चाहता हूं। यहां जल का ही नहीं स्वच्छ वायु का शांत प्रवाह आपके मन को आनंदित करने वाला है। शाम को यहां बड़ी संख्या में लोगों को गंगा नदी के साथ सेल्फी लेते देखा। गंगा के रेतीले तटों पर मेला लगा था। एक छोटे से बाजार के बीच से होकर लक्ष्मणझूला पुल के पास पहुंचे और फिर आगे बढ़ गए नीलकंठ मार्ग की तरफ। कुछ ही देर में हम अपनी मंजिल पर थे।
लक्ष्मणझूला पटवारी चौकी के पास स्थित आवास पर हमने मुलाकात की ख्यातिप्राप्त फोटोग्राफर त्रिभुवन सिंह चौहान जी से। चौहान जी ने यहां आर्ट गैलरी की स्थापना की है, जिससे युवा फोटोग्राफी को जीवंत करने की प्रेरणा ले सकते हैं। प्रकृति के नजदीक रहने वाला व्यक्तित्व रचनात्मक और सकारात्मक होता है, ऐसा मैंने सुना है।
मैं इस बात में पूर्ण विश्वास रखता हूं कि नेचर की क्लास को ज्वाइन करने के बाद अपने जीवन में बड़े बदलाव को महसूस करेंगे, लेकिन उसकी कक्षा में बने रहने के लिए कुछ नियमों को मानना होगा। संयम और अनुशासन के साथ आपको अपनी आवश्यकताओं को कम करना होगा। जब आप प्रकृति के नियमों को आत्मसात करेंगे तो आप शांत मन, शांत व्यवहार, प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। यह बातें इसलिए बता रहूं, क्योंकि चौहान जी से मुलाकात में इन सभी बातों को महसूस किया। सादगी पसंद त्रिभुवन सिंह चौहान कहते हैं कि नेचर से आप तभी कनेक्ट होते हैं जब आप उसके नियमों को मानते हैं। प्रकृति के नियमों को मानने वाला उससे बहुत कुछ सीखता है और उसके गुणों को आत्मसात करता है।
एक बार फिर आपसे मुलाकात करेंगे, तब तक के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं….।
उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है।
लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली।
बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है।
रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है।
ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं।
बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं।
शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी
संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला
जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140
राजेश पांडेय
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