हरीश रावत ने अपना नया नाम रख लिया
उत्तराखंड की राजनीति में सोशल मीडिया से लेकर धरातल तक पर ज्यादा सक्रिय पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अब अपना एक और नाम रखा है, वो है गन्ना मैन। रावत कहते हैं, I am the Ganna man. हालांकि वो अपना नाम गन्ना मैन रखने के पीछे जो वजह बताते हैं, उसके मूल में उतना ही काफी नहीं है।
सबसे पहले तो इस बात को समझना होगा कि गन्ना मैन नाम उन्होंने स्वयं रखा है। यह नाम उनको लोगों से नहीं मिला। न ही कोई ऐसी मिसाल कायम की है, जिससे कहा जा सके कि उत्तराखंड में कोई व्यक्ति गन्ने की खेती और पैदावार को बढ़ाने के लिए इतना सबकुछ कर रहा है, जिससे किसान, खासकर गन्ने की खेती में पहले से ज्यादा समृद्ध हो गए हों। बल्कि जिन वर्षों में हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे, तब गन्ना क्षेत्रफल, गन्ना उत्पादन में लगातार कमी के ही आंकड़ें हैं।
देखिए – गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग के आंकड़ें
Year |
Cane Area (Hec) |
Cane Production (Lac. Ton) |
Yield (Lac. qtl) |
2010-2011 | 104860 | 63.94 | 609.00 |
2011-2012 | 108817 | 64.06 | 588.60 |
2012-2013 | 112394 | 69.71 | 620.20 |
2013-2014 | 109927 | 62.69 | 574.00 |
2014-2015 | 98794 | 60.96 | 617.00 |
2015-2016 | 93066 | 56.76 | 610.00 |
2016-2017 | 84956 | 51.42 | 605.00 |
2017-2018 | 86053 | 59.81 | 695.00 |
2018-2019 | 92938 | 70.17 | 755.00 |
2019-2020 | 84930 | 69.90 | 823.00 |
2020-2021 | 84088 | 62.20 Tentative | 823.00 Tentative |
सबसे पहले हरीश रावत की उस सोशल मीडिया पोस्ट को जानिए, जिसमें उन्होंने स्वयं को गन्ना मैन घोषित किया है। वो लिखते हैं-
आई एम दी गन्ना मैन
शायद आपको मेरा नाम पसंद नहीं आया l उनको भी नहीं आया था, जिनके लिए मैं गन्ना मैन बना l संयोग था सन 2009 में l मैं हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव जीता l दोस्तों ने मुझे निपटाने के लिए हरिद्वार भेजा था, मगर हरिद्वार ने सांसद बना दिया l
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जीत के बाद सोचता था ऐसा क्या करूं, जिससे मैं हरिद्वार का दिल जीत लूं l
एक दिन यकायक अनुभूति हुई कि स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह जी की मृत्यु के बाद ,”गन्ना पुरुष ” का पद खाली है l मैंने सोच विचार कर “गन्ना मैन ” बनने का निश्चय कर डाला, हरिद्वार आते-आते खूब गौर से मैं गन्ने के खेतों में गन्ना ढोने वाली ट्राली , पिराई करने वाली चरखी, गुड़ के ढेरों , चीनी मिलों को देखने लगा l
अपने आप को गन्ना मैन के रूप में तैयार करने लगा l हिंदू और मुसलमान, दलित, स्वर्ण सबका प्यारा गन्ना l सबका दोस्त गन्ना l धर्मनिरपेक्ष जाति निरपेक्ष गन्ना l मैं जितना सोचता मन वाह वाह करता l मुझे खुशी है गन्ना मैन बनने की चाह में मैंने गन्ना किसानों के लिए बहुत कुछ सार्थक कर पाने मैं सफलता पाई l
जय जवान , जय किसान
हरीश रावत राजनीतिक शख्सियत हैं और उनकी सोशल मीडिया पोस्ट भी सियासत से बाहर नहीं होतीं। उन्होंने देश में किसानों के बीच सबसे लोकप्रिय नेता पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह जी का जिक्र करते हुए कहा है कि गन्ना पुरुष का पद खाली है। मैंने सोच विचार कर गन्ना मैन बनने का निश्चय कर डाला। इससे सीधे तौर पर यह संदेश दिया है कि चौधरी चरण सिंह जी के बाद यदि गन्ना किसानों को कोई हितैषी है तो वो हरीश रावत हैं।
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यहां रावत ने स्वयं को गन्ना मैन घोषित करने के बाद, यह भी स्पष्ट किया कि गन्ना हिन्दू और मुसलमान, दलित, स्वर्ण सबको प्यारा है। वो गन्ने को धर्मनिरपेक्ष, जाति निरपेक्ष बताते हैं। और स्वयं को गन्ना मैन। आप आसानी से समझ सकते हो, हरीश रावत आखिर कहना क्या चाहते हैं।
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सियासत करने वाले उत्तराखंड का वोटों के नजरिये से आकलन कर रहे हैं। इसी में एक चुनावी आकलन किसानों को लेकर भी है। यहां बात गन्ना बेल्ट की हो रही है, जिनमें देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर व नैनीताल जिले का मैदानी हिस्सा शामिल हैं।
गन्ना क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे आगे हरिद्वार, उसके बाद ऊधमसिंह नगर, फिर देहरादून और नैनीताल का नंबर आता है। राज्य में वर्ष 2020-21 में कुल गन्ना क्षेत्रफल 84088 हेक्टेयर है, जो कि प्रति वर्ष कम होता जा रहा है। वर्ष 2010-11 में 104860 हेक्टेयर था। पूरे राज्य में लगभग सवा लाख गन्ना किसान हैं।
गन्ना बेल्ट वाले जिन जिलों की बात की जा रही है, वहीं सबसे ज्यादा धर्म, जाति आधारित राजनीति पर फोकस किया जाता रहा है। हरीश रावत ने पद यात्राओं एवं मौन उपवास के माध्यम से गन्ना किसानों के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। वो गन्ना मूल्य घोषित करने की मांग करते हैं और अपनी सरकार के समय गन्ना किसानों के हित में किए गए कार्यों को बताते हैं।
वो एक वीडियो भी जारी करते हैं, जिसमें मंडुए का भी जिक्र करते हुए कहते हैं, मैंने अपने कार्यकाल में मंडुए के साथ गन्ने को भी थामा। अपने कार्यकाल में गन्ने का सर्वाधिक मूल्य घोषित किया। गन्ने की बुआई पद्धति से लेकर मॉर्डनाइजेशन किया। गन्ने का बीज लखनऊ, कोयम्बटूर और अन्य जगहों से लाए। सारा बीज परिवर्तन किया। जिससे प्रति हेक्टेयर उपज एवं रिकवरी बढ़े। इसी का परिणाम है कि किसान पूरी तरह तो नहीं कहूंगा, करीब-करीब संतुष्ट है। उनको उत्तर प्रदेश की तुलना में अच्छा भाव और समय पर मिल जा रहा है।
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किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान समय पर कराने के लिए चीनी मिलों को आसवनी, बिजली बनाने को कहा। इससे cumulative effect लाया, ताकि गन्ना आर्थिक विकास का आधार बने। जब व्यक्ति को घर में रोजगार मिलेगा तो वो घर छोड़कर क्यों जाएगा।
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अब आपको बताते हैं, उत्तराखंड में गन्ने के बारे में कुछ खास जानकारियां-
आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार उत्तराखंड में कुल कृषि का नौ फीसदी गन्ना क्षेत्र है। पर्वतीय क्षेत्र में गन्ना उत्पादन नहीं होता है। राज्य में मैदानी हिस्सों में ही गन्ना उत्पादन होता है।
वहीं राज्य में कुल खेती का सबसे ज्यादा गेहूं 31 फीसदी, धान 23 फीसदी व मंडुआ दस फीसदी क्षेत्रफल में है। क्षेत्रफल के अनुसार गन्ना चौथे नंबर की फसल है।
उत्तराखंड में सात चीनी मिल हैं। इनमें सहकारी व सार्वजनिक क्षेत्र की दो-दो तथा निजी क्षेत्र की तीन चीनी मिल हैं।