Blog LiveFeaturedUttarakhandWomen

मनरेगा लीडर कविता बोलीं, चुनौतियों से लड़ते-लड़ते मजबूत बन गई मैं

2013 की आपदा में पति की मृत्यु के बाद से संघर्ष कर रही कविता ने साझा की अपनी बात

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

“जून 2013 में, केदारघाटी में आई आपदा ने मेरा सबकुछ छीन लिया। आपदा में मेरे पति की मृत्यु हो गई और मेरे सामने चार बच्चों की परवरिश की बड़ी जिम्मेदारी आ गई। मेरे सामने अंधेरा छा गया था, समझ में नहीं आ रहा था क्या करूं। पर, मुझे गांव की महिलाओं ने बहुत हिम्मत बंधाई। अब मैं खेतीबाड़ी कर रही हूं। मनरेगा में काम करने वाली महिलाओं की लीडर हूं और एक सेंटर पर कपड़े बनाती हूं। मेहनत से पीछे नहीं रहती, धीरे-धीरे ही सही जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ा रही हूं। मुझे बहुत मेहनत करनी है, क्योंकि अपने बच्चों के भविष्य को सुखद बनाना है।”

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के स्यूल (त्यूड़ी ग्राम पंचायत) में रहने वालीं लगभग 33 वर्षीय कविता अपने संघर्ष पर बात कर रही थीं। आपदा के समय कविता की आयु 24 वर्ष थी। कविता त्यूड़ी में महिलाओं के आरती स्वयं सहायता समूह की कोषाध्यक्ष हैं। बताती हैं,      ” जब आप जीवन में उन चुनौतियों का सामना कर रहे होते हैं, जिनके बारे में आपने पहले कभी नहीं सोचा था, उस समय आपके सामने “करो या फिर मरो” का सवाल खड़ा हो जाता है। मैंने मरने से ज्यादा अच्छा समझा कि कुछ किया जाए। घर से बाहर निकलकर ही मुसीबतों का सामना कर सकती थी। इसलिए मैं घर से बाहर निकली, महिलाओं के समूह से जुड़ी।”

यह भी पढ़ें- 88 की हो गईं दादी मां, नौ साल की उम्र में जल से भरे लोटे संग हुए थे फेरे
यह भी पढ़ें- सफलता की कहानीः एक आइडिया, जिसने चार ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बना दिया

“सुबह साढ़े पांच बजे से पहले उठ जाती हूं। नाश्ता तैयार करके बच्चों को स्कूल भेजती हूं। फिर करीब एक-डेढ़ घंटा खेतीबाड़ी करती हूं। इसके बाद नौ बजे से लेकर साढ़े 12 बजे तक मनरेगा में काम करती हूं। एक बजे तक कंपनी पहुंच जाती हूं, जहां हम ताना बाना मशीन पर कपड़ा बनाते हैं। शाम को साढ़े आठ बजे घर पहुंचती हूं। वहीं, जब भी समय मिलता है, महिला कीर्तन एवं सार्वजनिक रूप से होने वाले धार्मिक कार्यों में शामिल होती हूं, ” कविता बताती हैं।

यह भी पढ़ें- यह कहते हुए भावुक हो गईं ज्योति, मैंने कभी नहीं सोचा था हवाई जहाज से विदेश जाऊंगी…

यह भी पढ़ें- नियो नारीः 19 साल की सृष्टि से महिलाएं करती हैं अपने मन की बात

उनका कहना है, पहले खेतीबाड़ी में बड़ी दिक्कत आई थीं। खेत में हल लगाने के लिए लोगों से मदद मांगी। निराई गुड़ाई तो मैं खुद कर लेती थी। बाद में, हल भी खुद लगाने लगी।  गांव में एक ट्रैक्टर मशीन लाई गई, जिसमें थोड़ा बहुत योगदान मैंने भी किया था। फिर उस ट्रैक्टर मशीन से हल लगाया।

कहती हैं, पहले घर से नहीं निकलने वाली कविता बैंक में किस्त जमा कराने से लेकर समूह के सभी कार्यों को पूरा कर रही हैं। पहले की कविता और आज की कविता में बहुत अंतर है। मुझे संघर्ष ने मजबूत बना दिया। मैं देहरादून, रुद्रप्रयाग, दिल्ली तक अकेली जा सकती हूं। मैंने गेल इंडिया के दिल्ली मुख्यालय में जाकर लोगों को बताया, हम किस तरह संघर्ष कर रहे हैं, चुनौतियों से लड़ रहे हैं।

रुद्रप्रयाग जिले के त्यूड़ी गांव की कविता देवी (हाथ में कुदाल लिए हुए) खेतीबाड़ी करते हुए, साथ में त्यूड़ी गांव निवासी सुशीला देवी। फोटो- राजेश पांडेय

कविता गांव की उन महिलाओं का आभार बार-बार व्यक्त करती हैं, जो मुसीबत में उनके साथ खड़ी रहीं। बताती हैं, ताई जी (सरिता देवी) ने कहा, हम तुम्हारे साथ हैं। मुझे घर से बाहर निकलकर आजीविका के लिए कुछ सीखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, बच्चों का भविष्य बनाना है तो घर से बाहर निकलना ही होगा। ताई जी ने मेरी जिंदगी को संवार दिया। मुझे जिंदगी के बारे में बहुत कुछ बताया। वो कहती हैं, “जो काम अच्छा है, वो करना। बुरी संगत में नहीं पड़ना। हौसला बनाए रखना।”

यह भी पढ़ें- Uttarakhand: दो लीटर दूध बेचने के लिए रैजा देवी का संघर्ष, बाघ और हमारा रास्ता एक ही है
यह भी पढ़ें-सरिता बोलीं, विपदा आए तो मेरी तरह चट्टान बनकर खड़े हो जाओ

मुझे मानव भारती सोसाइटी (Manava Bharati Society, Dehradun) ने स्वेटर बनाने की मशीन दी। मेरे साथ और महिलाओं ने स्वेटर मशीन चलानी सीखी। हमने स्वेटर बनाकर बिक्री किए। संस्था ने त्यूड़ी की महिलाओं का समूह बनाया, जिसमें मुझे भी शामिल किया गया। समूह से मुझे काफी लाभ मिला। हम समूह में पैसे जमा करते हैं और आंतरिक लोन से जरूरी कार्यों को पूरा कर पाते हैं।

यह भी पढ़ें- बात तरक्की कीः खट-खट वाले ताना बाना से बदल रहा इन महिलाओं का जीवन
यह भी पढ़ें- हम आपको “राम की शबरी” से मिलवाते हैं

एट इंडिया (Appropriate Technology India) ने मुझे ताना-बाना सिखाया, जिस पर हम धागे से कपड़ा बनाते हैं। मैं अपने घर से रोजाना दो किमी. बणसूं मार्ग पर कपड़ा बनाने जाती हूं। इससे पहले सुबह साढ़े नौ बजे से डेढ़ बजे तक मनरेगा (MGNREGA) में होने वाले कार्य करती हूं। मुझे ग्राम प्रधान ने मनरेगा श्रमिकों का लीडर बनाया है। प्रधानजी मनरेगा के जो काम बताते हैं, मैं महिलाओं को बताती हूं और उनके साथ मिलकर करती हूं। मनरेगा में हम पत्थर निकालते हैं, खुदाई करते हैं। इन दिनों गांव में छोटा सा जलाश्य बन रहा है।

यह भी पढ़ें-  मुझे ऐसा लगा, जैसे मैंने अपने बक्से से पैसे निकाले हों
यह भी पढ़ें- खेतीबाड़ी पर बात करते हुए गीता की आंखें नम क्यों हो गईं

मई जून में हम महिलाओं ने ग्राम त्यूड़ी में चौलाई के लड्डू का प्रसाद बनाया। प्रसाद को पैकिंग करके श्रीकेदारनाथ भेजा गया।

कविता कहती हैं, मुझे खुद पर भरोसा है। हम किसी से पीछे नहीं हैं। महिलाएं यह मत समझें कि वो कुछ नहीं कर सकती हैं। हमें सभी के सहयोग से आगे बढ़ना है। बिना सीखे कुछ नहीं होता है। लोगों को सुने और आत्मविश्वास बढ़ाएं। सीखने में समय लगता है और दिमाग में यह बात हमेशा रहनी चाहिए कि मुझे सीखना है।

 

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker