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कबीले में चुनाव-13: बड़े महाराज ने इतना आशीर्वाद बांट दिया कि गुट ही बंटने लगा

खरगोश ने फुंकनी यंत्र को मैदान में रखा और घास चरते हुए काफी आगे निकल गया। कुछ देर बाद हिरन भी उसके पास पहुंच गया। हिरन ने कहा, दोस्त लगता है तुम काफी पहले से यहां हो। खरगोश बोला, नहीं…, मैं तो अभी अभी पहुंचा। और, आज क्या खबर है कबीले में चुनाव की।

हिरन ने कहा, मैं तो ज्यादा कुछ नहीं समझ पाया, पर फुंकनी यंत्र बताएगा बड़े महाराज की चक्करघिन्नी वाली सियासत के बारे में।

खरगोश ने कहा, चक्करघिन्नी वाली सियासत। कुछ समझ में नहीं आ रहा। बड़े महाराज जितने समझदार हैं, उतनी ही समझदारी वाली बातें करते हैं। सियासत में उनसे बड़ा इस कबीले में कोई नहीं है। उनका जवाब नहीं है।

मैंने सुना है, वो देवता से आशीर्वाद मांग रहे हैं और फिर अपनी तरफ से ढेर सारा आशीर्वाद बांट रहे हैं। इससे वो स्वयं को अपने लोगों के बीच में ही फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं। इससे ज्यादा मेरी समझ में नहीं आ रहा।

हिरन ने कहा, तुम फुंकनी यंत्र से समझो, मेरे दिमाग में भी ज्यादा बातें नहीं घुस पातीं। जितना सुनता हूं, तुम्हें बता देता हूं। वैसे तुम्हारा फुंकनी यंत्र कहां है, दिखाई नहीं दे रहा।

खरगोश अचानक परेशान हो जाता है, कहता है…, अभी तो यहीं रखा था उसको।

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हिरन और खरगोश फुंकनी यंत्र को घास से भरे मैदान में ढूंढते हैं। आवाज लगाते हैं फुंकनी यंत्र तुम कहां हो। क्या तुम हमें सुन रहे हो।

पर, कोई आवाज नहीं सुनाई देता। फुंकनी यंत्र से कोई ध्वनि भी नहीं निकल रही।

काफी खोजने के बाद दोनों निढाल होकर बैठ जाते हैं। कहते हैं, लगता है अब कभी नहीं हो पाएंगी सियासत की बातें। सबकुछ खत्म। अब लक्कड़बग्घा से कैसे निपटूंगा। उसको फुंकनी यंत्र कहां से लाकर दूंगा।

तभी फुंकनी यंत्र से ध्वनियां निकलती हैं। वो कहता है, मैं यहां हूं। जल्दी आओ। मुझे इस तरह कहीं भी फेंक मत दिया करो। आज के जमाने में हमारे जैसे यंत्रों के बिना किसी का काम नहीं चलता।

खरगोश बोला, तुम्हें कितनी आवाज दी, बोले क्यों नहीं। मेरे को प्राण ही निकाल दिए थे तुमने।

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फुंकनी यंत्र बोला, मैं बड़े महाराज के पास था। मेरा मतलब, मैं मन और मस्तिष्क से बड़े महाराज के पास चला गया। वो मौन उपवास कर रहे थे, मैं भी मौन हो गया।

उनको समझने के लिए बहुत शांत होकर मन की गहराइयों में उतरना पड़ता है। वो मौन थे, पर उनके समुद्र रूपी मन की गहराइयों में मुझे कुछ ध्वनियां सुनाईं दीं। उनके भीतर बहुत शोर है, यह शोर उनको राजा की गद्दी तक पहुंचाने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए वो थोड़ा हड़बड़ी कर देते हैं। अपनी पुरानी बातों को भूल भी जाते हैं।

खरगोश ने कहा, अच्छा, अच्छा ज्यादा खोपड़ी मत खाओ। बहुत बातें करते हो, परेशान कर दिया। वैसे ही बड़े महाराज की सियासत समझ से परे है। तुम भी दिमाग पकाने लगे। जल्दी से बताओ, क्या सुनकर आए उनके मन में।

फुंकनी यंत्र बोला, गुस्सा मत करो। ध्यान लगाओ, मौन रखो, जो तुम्हें बिगड़ा हुआ या बिगड़े हुए दिख रहे हैं न, वो एक दिन शांत हो जाएंगे। चलो, बताता हूं।

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बड़े महाराज देवता के दरबार में पहुंचे और आशीर्वाद मांगा कि मुझे राजा की गद्दी दिला दो। इससे पहले बड़े महाराज ने देवता जी के स्थान पर अपनी इच्छा व्यक्त की थी कि राजा तो उस व्यक्ति को बनना चाहिए, जो अभी तक अपने अधिकारों से वंचित रहा है।

वैसे मुझे नहीं लगता कि जिन सियासी व्यक्ति के लिए वो देवता से आशीर्वाद मांग रहे थे, वो कभी अपने अधिकारों से वंचित रहे हों। सियासत में दांव पेंच लड़ाने वाले अपने अधिकारों से कैसे वंचित रहते हैं। हां, प्रजा में तो बहुत सारे लोग हैं, जो अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाते या फिर उनको ऐसा करने से रोका जाता है। इन्हीं प्रजा के नाम पर सियासत करने वाले अपना हित करा लेते हैं। प्रजा का क्या है, उनको तो चुनाव के समय ही याद किया जाता है।

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खरगोश और हिरन ध्यान से फुंकनी यंत्र की बात सुन रहे थे।

हिरन बोला, फिर क्या हुआ दोस्त।

फुंकनी यंत्र ने कहा, क्या होना। बड़े महाराज इनमें से एक बात भूल गए। भूल नहीं गए, इस बात को भुलाना बहुत आवश्यक हो गया था। अब उनको केवल अपने लिए राज गद्दी की बात ही याद है। वो सिर्फ इसी पर केंद्रित हैं।

खरगोश ने पूछा, अधिकारों से वंचित के लिए राज गद्दी की बात क्यों भूल गए बड़े महाराज, कृपया विस्तार से बताइए।

फुंकनी यंत्र बोला, बड़े महाराज ने यह बात परिस्थितियों को देखते हुए की थी। सियासत में परिस्थितियां बदलती रहती हैं और उनके अनुसार की गई बातें और निर्णय भी बदले या भुलाए जाते हैं।

हिरन बोला, प्रजा से किए गए वादे भी।

फुंकनी यंत्र ने कहा, कुछ भी, जो तुम समझ सकते हो। यहां वादे भी भुलाए जाते हैं। और प्रजा को भी भुलाया जा सकता है। यहां कुछ भी झूठ नहीं होता। क्योंकि सियासत सच और झूठ में अंतर स्पष्ट नहीं करती। यहां अगर होता है तो लक्ष्य यानी गद्दी, जिसे पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने का हौसला या दुस्साहस होना चाहिए। सियासत को जानोगे तो हौसले और दुस्साहस में फर्क भी समझ जाओगे।

बड़े महाराज के गुट में बदलू महाराज का आगमन क्या हुआ, उनके लिए अपनी बात का मतलब ही बदल गया, क्योंकि वो बदलू महाराज के प्रभाव को समझते हैं।

बदलू महाराज तो परिस्थितियों के अनुसार, भविष्य का आकलन करने में सक्षम हैं। उनके बार-बार गुट बदलने और हमेशा वजीरों के समूह में ही रहने से, ऐसा कहा जा सकता है। चाहे राजा किसी भी गुट का हो, वो वजीर रहते हैं। चुनाव से पहले वो जिस गुट में जाते हैं, कहा जाता है कि उसी गुट का राजा बनता है। पर, इस बार उनका आकलन सही होगा या नहीं, कुछ भी कहने में जल्दबाजी होगी।

बड़े महाराज मानते हैं कि सियासत में सबकुछ भूल जाओ, पर निगाह हमेशा राज गद्दी पर रहनी चाहिए। वो देवता से सिर्फ अपने लिए आशीर्वाद मांगते हैं। अभी यह नहीं पता कि देवता ने उनको आशीर्वाद दिया है या नहीं। यह तो चुनाव का परिणाम आने पर ही पता चलेगा।

”अब क्या कर रहे हैं बड़े महाराज”, खरगोश ने पूछा।

फुंकनी यंत्र बोला, सही बताऊं, उनको भी नहीं पता, वो क्या कर रहे हैं। वैसे वो यह मान कर चल रहे हैं कि देवता से उनको आशीर्वाद मिल गया है।

बड़े महाराज, अब अपना आशीर्वाद बांट रहे हैं। उनके पास ढेरों आशीर्वाद हैं

जो भी उनको सही लगता है, उसको आशीर्वाद से खुश कर देते हैं।

हिरन ने पूछा, यह आशीर्वाद क्या है। जरा विस्तार से बताओ।

फुंकनी यंत्र ने कहा, पूरा कबीला 70 हिस्सों में बंटा है। हर हिस्से से एक प्रतिनिधि का चुनाव होगा। सियासी गुट हर हिस्से में अपने अपने लोगों को चुनाव लड़ाएंगे। प्रजा में से कुछ ऐसे लोग भी चुनाव में भाग लेंगे, जो किसी भी गुट से नहीं होंगे। या फिर अपने गुट से बगावत करके चुनाव लड़ेंगे। यह भी हो सकता है कि वो विरोधी गुट में जाकर वहां से चुनाव में भाग लें। इसको भी बगावत कहते हैं।

बड़े महाराज वाले गुट में एक-एक हिस्से में चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों की पंक्तियां लगी हैं, जबकि यहां एक हिस्से से सिर्फ एक को ही चुनाव लड़ाया जा सकता है।

बडे़ महाराज के पास तो ढेरों आशीर्वाद हैं, इसलिए वो जिसको चाह रहे हैं, उसको आशीर्वाद दे रहे हैं। उनके आशीर्वाद से जीत को लेकर आत्मविश्वास बढ़ रहा है। तुम तो समझते हो, बड़े महाराज के आशीर्वाद का इतना प्रभाव है कि कोई भी खाली बरतन में छोंक लगाने जैसा आत्मविश्वासी हो जाता है।

खरगोश बोला, इससे क्या होगा। आशीर्वाद पाने और आत्मविश्वास बढ़ने से चुनाव में उनके गुट को ही लाभ मिलेगा। गुट को लाभ मिलने का मतलब बड़े महाराज गद्दी के पास पहुंच जाएंगे।

फुंकनी यंत्र ने कहा, ऐसा नहीं है। एक-एक हिस्से में पंक्तियों में लगे लोगों का जीत के लिए आत्मविश्वास बढ़ने का मतलब है कि वहां बगावत के स्वर तेज हो जाएंगे।

खरगोश ने पूछा, वो कैसे।

फुंकनी यंत्र बोला, बड़े महाराज का गुट हर हिस्से से किसी एक को ही चुनाव लड़ने की अनुमति ही दे सकता है।

हिरन ने पूछा, हर हिस्से में बड़ी पंक्तियों से सिर्फ एक को चुनाव लड़ने की अनुमति। बाकी क्या करेंगे।

फुंकनी यंत्र ने कहा, बाकी नाराज होकर शोर मचाएंगे। कोई बड़े महाराज को बुरा भला कहेगा और कोई किसी और को। पर,  इनमें से कुछ लोग मौन बैठ जाएंगे। मौन बैठने का मतलब यह है कि वो  गुट में रहते हुए भी, गुट के लिए कोई काम नहीं करेंगे।

कुछ ऐसे भी होंगे, जो गुट में रहकर अपनों को हराने के लिए दिनरात परिश्रम करेंगे। इनको भितरघाती कहा जाता है।

वहीं, गुट से नाराज कुछ लोग स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ेंगे। इनको बागी और इनके इस कृत्य को बगावत कहा जाता है। ये बगावत करके अपने ही गुट को हराने में लग जाएंगे। पहले भी बहुत सारे लोग बगावत कर चुके हैं, पर कुछ समय बाद फिर से अपने गुट का हिस्सा बन गए।

खरगोश बोला, इससे तो बड़े महाराज के गुट को नुकसान पहुंचेगा।

फुंकनी यंत्र ने कहा, हो सकता है उनको नुकसान पहुंचे। पर, यह केवल उनके गुट में ही नहीं हो सकता है, बल्कि गुणी महाराज के गुट में भी ऐसी घटनाएं हो सकती हैं।

हिरन बोला, बड़े महाराज को तुम्हारी कोई सलाह है फुंकनी यंत्र।

फुंकनी यंत्र बोला, उनको कोई सलाह नहीं दे सकता। वो किसी की बात नहीं सुनते। वो अपने गुट की नहीं सुनते, मेरी क्या सुनेंगे। कुल मिलाकर उन्होंने आशीर्वाद बांट-बांटकर अपने ही गुट में खेमेबंदी को बढ़ा दिया।

अब मैं थक गया हूं। कल फिर कुछ बात करेंगे।

यह कहते ही फुंकनी यंत्र शांत हो गया। खरगोश और हिरन अपने ठिकानों की ओर दौड़ लिए।

 

  • यह काल्पनिक कहानी है। इसका किसी से कोई संंबंध नहीं है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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