राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
थानो के पास स्थित चकचौबा कल्लूवाला गांव में बिजली, पानी, सड़क सबकुछ है, खेती भी अच्छी होती है, पर यहां के कई परिवार सरकारी सिस्टम से नाराज हैं और उन्होंने विधानसभा चुनाव में मतदान नहीं किया। डोईवाला विधानसभा क्षेत्र में आने वाले इस गांव के लोगों का दावा है कि, मतदान का बहिष्कार करने वालों की संख्या लगभग सौ के आसपास है। उन्होंने 2019 में लोकसभा चुनाव में भी मतदान नहीं किया था। नाराजगी की वजह है, उनका मतदान केंद्र गांव से लगभग दस किमी. दूर होना है। जबकि, इनकी ग्राम पंचायत के अन्य वार्डों का मतदान केंद्र लगभग आधा किमी. दूरी पर है। वैसे, गांववालों की नाराजगी की वजह इससे भी बढ़कर है।
इस गांव पर राजा त्रिशंकु की पौराणिक कथा फिट बैठती है। त्रिशंकु को ऋषि विश्वामित्र ने सशरीर स्वर्ग भेजा था। देवराज इन्द्र ने उसे स्वर्ग से वापस पृथ्वी की ओर धकेल दिया। हालांकि, नीचे गिरते हुए त्रिशंकु को ऋषि विश्वामित्र ने बीच में ही लटका कर उसके लिए स्वर्ग का निर्माण किया। कहा जाता है, वह अपने स्वर्ग के साथ आज भी वास्तविक स्वर्ग और पृथ्वी के बीच लटका हुआ है।
अब आप चकचौबा (कल्लूवाला) का मामला जानिए, यह मामला सिर्फ मतदान स्थल की दूरी का नहीं है। यह गांव एक ऐसे तकनीकी पेंच का सामना कर रहा है, जिसका समाधान उस सरकारी सिस्टम के पास ही है, जिसने शासन के करीब चार माह पहले के आदेश को क्रियान्वित करने की जरूरत महसूस नहीं की। सवाल तो यह भी उठता है कि उत्तराखंड में शासन का आदेश बड़ा है या उसको अमल में लाने के लिए जिम्मेदार जिला प्रशासन और तहसील के अधिकारी।
विधानसभा चुनावः पालिका से बाहर रहते हैं, पर वोटर लिस्ट से नहीं
पहले उन ग्रामीणों से बात करते हैं, जो सरकारी व्यवस्था की कछुआ गति से बेचैन और हैरान हैं। पूर्व सैनिक पदम सिंह पंवार बताते हैं, शासन के आदेश के बाद भी तहसील स्तर से उनकी समस्या का निस्तारण नहीं हुआ।
वो चाहते हैं कि उनके गांव के सभी राजस्व दस्तावेजों को जौलीग्रांट से रामनगर डांडा पटवारी क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।
उनका गांव लगभग आठ साल पहले जौलीग्रांट से कोटीमयचक ग्राम पंचायत का हिस्सा बना है। हम लोगों ने वर्ष 2013 में ग्राम पंचायत के चुनाव में मतदान किया था। ग्राम पंचायत चुनाव के लिए हम कोटीमयचक की वोटर लिस्ट में हैं, पर लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में जौलीग्रांट (जो अब डोईवाला नगर पालिका क्षेत्र में है ) के वोटर हैं।
ग्रामीण सैनपाल के अनुसार, जब हम कोटीमयचक ग्राम पंचायत के निवासी हैं, तो हमारा विधानसभा चुनाव में मतदान केंद्र भी कोटीमयचक में होना चाहिए, जो कि हमारे घरों से मात्र आधा किमी. दूरी पर है, लेकिन हमें अभी भी वोट देने के लिए जौलीग्रांट भेजा जा रहा है।
दस्तावेजों में विसंगतियां सबसे बड़ी दिक्कत
“यह मामला, केवल मतदान केंद्र की दूरी का ही नहीं है, बल्कि यह हमारे दस्तावेजों में विसंगतियों का भी है। हमारे दस्तावेजों में जौलीग्रांट का पता दर्ज है, जबकि हम कोटीमयचक ग्राम पंचायत के निवासी हैं। इस वजह से पटवारी के पास मौजूद दस्तावेजों में हमारी पहचान जौलीग्रांट के निवासी के रूप में हो रही है। यह विसंगति हमारे बच्चों की नौकरियों के आवेदन पत्रों, उनके स्कूल सर्टिफिकेट सहित अन्य पहचान संबंधी दस्तावेजों को प्रभावित करती है।
पर, अधिकारियों को इससे कुछ लेना देना नहीं है। राज्य की सरकार बनाने के लिए प्रतिनिधियों को चुनना कौन नहीं चाहेगा। मतदान नहीं करना किस को अच्छा लगेगा, पर हमें सिस्टम की आंखों को खोलने के लिए मजबूरी में यह निर्णय लेना पड़ा”, स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त जयपाल सिंह नेगी बताते हैं।
यह है पूरा मामला
डोईवाला नगर पालिका के परिसीमन के समय जौलीग्रांट ग्राम पंचायत के गांव चकचौबा (कल्लूवाला) को कोटीमयचक ग्राम पंचायत में वार्ड संख्या सात के रूप में शामिल किया गया था। इस गांव ने नगर पालिका क्षेत्र में शामिल होने पर असहमति व्यक्त की थी। इसके बाद यह गांव ग्राम पंचायत कोटीमयचक का हिस्सा बन गया और ग्राम पंचायत के दो चुनावों में भागीदारी भी कर चुका है, लेकिन इसके दस्तावेज अभी भी जौलीग्रांट पटवारी क्षेत्र में दर्ज हैं, जबकि इसके राजस्व दस्तावेजों को रामनगर डांडा पटवारी क्षेत्र में परिवर्तित किया जाना चाहिए था।
राजस्व दस्तावेजों में जौलीग्रांट का ही हिस्सा बने रहने की वजह से इनको लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में जौलीग्रांट की वोटर लिस्ट में ही शामिल किया जाता रहा है। इसी वजह से इनका पोलिंग बूथ गांव से लगभग आठ से दस किमी. दूर जौलीग्रांट में है। ग्रामीणों के अनुसार, इसी वजह से उन्होंने 2019 के लोकसभा तथा 2022 के विधानसभा चुनाव में मतदान नहीं किया।
” कोटीमयचक ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या सात के निवासी होने के नाते चकचौबा (कल्लूवाला) के निवासी दो चुनावों में भागीदारी कर चुके हैं। इनके दस्तावेज जौलीग्रांट पटवारी क्षेत्र में हैं, इसलिए दिक्कतें तो हैं। इस गांव को सरकार की योजनाओं का लाभ पाने में दिक्कतें उठानी पड़ती है, पर ग्राम पंचायत अपने स्तर से इनकी समस्याओं का समाधान करती है। 23 नवंबर, 2021 में राजस्व सचिव इस गांव के सभी भूलेख रामनगर डांडा पटवारी क्षेत्र में परिवर्तित करने की अधिसूचना जारी कर चुके हैं। अब तहसील प्रशासन को कार्यवाही करनी है। रही बात चुनाव की, तो नवंबर में आदेश होने की वजह से विधानसभा चुनाव की वोटर लिस्ट में परिवर्तन नहीं हो पाया था। इस वजह से इनका नाम जौलीग्रांट स्थित मतदान केंद्र की सूची में था,” कोटीमयचक की ग्राम प्रधान रेखा बहुगुणा बताती हैं।
ग्राम प्रधान ने बताया कि ग्राम पंचायत चुनाव में इस वार्ड में मतदाताओं की संख्या 62 थी, जो अब बढ़ गई है। हालांकि ग्रामीणों का दावा है कि विधानसभा चुनाव में लगभग सौ मतदाताओं ने वोट नहीं दिया।
सरकारी योजनाओं के लाभ में दिक्कतें
ग्राम प्रधान रेखा बहुगुणा का कहना है कि राजस्व दस्तावेजों में पहचान जौलीग्रांट के निवासी की है, इस कारण ग्रामीणों को कोटीमयचक ग्राम पंचायत से सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में दिक्कतें हैं। जल जीवन मिशन योजना का लाभ इस वार्ड को नहीं मिल पाया। पर, अब शासन के आदेश हो चुके हैं, इसलिए जल्द ही समस्या का समाधान हो जाएगा।
निवास रायपुर ब्लॉक में, दस्तावेज डोईवाला के
जौलीग्रांट देहरादून जिला के डोईवाला ब्लाक का हिस्सा है और कोटीमयचक रायपुर ब्लाक में आता है। चकचौबा (कल्लूवाला) के भूलेख जौलीग्रांट पटवारी क्षेत्र यानी डोईवाला ब्लाक के अंतर्गत हैं, जबकि इस गांव की मौजूदा स्थिति रायपुर ब्लाक है। इसका मतलब यह हुआ कि ग्रामीणों के राजस्व सहित विभिन्न दस्तावेजों में उनके निवास की स्थिति डोईवाला ब्लाक में दर्शाई जाती है, जबकि वो वास्तविक रूप में रायपुर ब्लाक में निवास करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनकी समस्या का समाधान नहीं होता, वो चुनाव में भागीदारी नहीं करेंगे। हालांकि उनको इस बात का दुख भी है कि उनको चुनाव में भागीदारी नहीं करने का निर्णय लेना पड़ रहा है, पर उनके पास इसके अलावा कोई और विकल्प भी तो नहीं है।
ग्रामीण कमलेश देवी और मीरा देवी का कहना है कि गांव से कोई भी वोट देने नहीं गया, क्योंकि उनकी समस्या बच्चों के भविष्य से जुड़ी हैं। बच्चों को नौकरियों के लिए फार्म भरने में दिक्कत हो रही है। हम जिस ग्राम पंचायत में निवास कर रहे हैं, वहां का पता हमारे दस्तावेजों में दर्ज नहीं है। सरकारी स्तर पर होने वाली इस गलती का खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। विधानसभा चुनाव में मतदान केंद्र हमारे घरों से बहुत दूर है। रास्ते में जंगल है, हम वहां कैसे जा सकते हैं, जबकि हमारी ही ग्राम पंचायत के अन्य निवासियों का मतदान केंद्र उनके घरों से आधा किमी. की दूरी पर है।