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बेटे ने पिता को पढ़ाया नैतिकता का पाठ

किसी गांव में एक व्यक्ति रहता था। उसकी मां का काफी समय पहले निधन हो गया था। वृद्ध पिता उसके साथ रहते थे। वह अपने पिता को पर्याप्त खाना नहीं देता था। उसने अपने पिता के लिए मिट्टी का छोटा सा बर्तन रखा था। छोटे से बर्तन में परोसा गया खाना बहुत सारा दिखता था। ऐसे में उसके पिता को भूखा ही रहना पड़ता था। पिता के साथ ऐसा करने वाला वह बहुत बुरा व्यक्ति था।

उसको शराब की लत लगी थी। शराब के नशे में अपने पिता से बुरा व्यवहार करता। उनको अपशब्द कहता। उसके पिता काफी दुखी रहते। उस व्यक्ति का दस साल का एक बेटा था, जो बहुत अच्छा था। वह अपने दादा जी के साथ गलत व्यवहार पर काफी दुखी होता, लेकिन अपने पिता का विरोध करने से डरता था। वह अपने दादा से प्यार करता था। उसके मन में अपने दादा के लिए बहुत सम्मान था।

एक दिन उसके दादा जी अपने मिट्टी के बर्तन में खाना खा रहे थे कि अचानक उनके हाथ से बर्तन गिर गया। बर्तन टूट गया। उसका पिता पास ही कोई काम कर रहा था। उसने बर्तन टूटने की आवाज सुनी तो तुरंत वहां पहुंचा और उनको डांटने लगा। अपने दादा के प्रति पिता के गलत व्यवहार से दुखी बच्चा निराश हो गया। वह हमेशा यह सोचने लगा कि अपने पिता को कैसे समझाए कि दादा जी के साथ अभद्रता न करें।

अगले दिन बच्चे ने लकड़ी के टुकड़े को धारदार औजार से काटने का प्रयास शुरू किया।
उसके पिता ने पूछा, क्या कर रहे हो।
उसने तुरंत जवाब दिया कि आपके लिए प्लेट बना रहा हूं।
पिता ने सवाल किया, लकड़ी की प्लेट किसके लिए।
जवाब मिला- आपके लिए।
पिता ने फिर पूछा, मेरे लिए क्यों।
बच्चे ने जवाब दिया, आप भी बूढ़े होंगे। आपको भी छोटी सी प्लेट की जरूरत होगी। प्लेट अगर मिट्टी की होगी तो आपके हाथों से छूटकर टूट जाएगी। अगर मैं लकड़ी की प्लेट बनाकर आपको दूंगा तो वह टूटेगी भी नहीं औऱ जब तक आप जिंदा रहेंगे, तब तक चलेगी। मुझे आपको कभी डांटने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, क्योंकि लकड़ी की प्लेट कभी नहीं टूटेगी पापा।

बेटे के इस जवाब को सुनकर वह सकते में आ गया। उसको अपनी गलती का अहसास होने लगा। वह सोचने लगा कि जैसे आज मैं अपने बेटे की देखभाल कर रहा हूं। वैसे ही मेरे पिता ने भी मेरी देखभाल की थी। मुझे अपने वृद्ध पिता के साथ गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसने अपने बेटे से कहा, बेटा- तुमने मेरी आंखें खोल दी। उस दिन के बाद से उस व्यक्ति ने अपने वृद्ध पिता की अच्छी तरह से देखभाल करनी शुरू की। उनको पर्याप्त भोजन परोसा जाता। दादाजी के प्रति अपने पिता का व्यवहार बदलता देख बच्चे को काफी खुशी होती।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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